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गजब है रघुवर सरकार! सस्ते निजी स्कूलों पर नियमों की मार, कांवेंट स्कूलों का बेड़ा पार

झारखंड में निजी स्कूल संचालन के नियमों को लेकर कई स्कूलों की मान्यता रद्द की जा चुकी है. हालांकि इसका असर कांवेंट स्कूलों पर नहीं पड़ रहा है. सस्ते निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य अधर में लटक रहा है.

नियमों को लेकर कई स्कूलों की मान्यता रद्द
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Published : Oct 3, 2019, 8:04 PM IST

रांची: सब पढ़ें-सब बढ़ें के स्लोगन के साथ सरकार देश से अशिक्षा को खत्म करना चाहती है. लेकिन झारखंड में अब निजी स्कूल संचालित करना स्कूल संचालकों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है. स्कूल संचालन के लिए सरकारी नियम बेहद ही पेचीदा कर दिए गए हैं. निजी स्कूल संचालकों के लिए ये कांटो भरा रास्ता है, जिससे पार पाना बेहद मुश्किल हो रहा है. वर्ष 2011 से ऐसे कई निजी स्कूल है, जिनकी मान्यता तक इन नियमों के चलते रद्द हो गई है. हालांकि निजी स्कूल संचालक अब भी अपने हक और अधिकार के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

वैसे तो निजी स्कूल चार कैटेगरी में बंटे हुए हैं और पूंजीपतियों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं. हालांकि इन निजी स्कूलों पर सरकारी नियम कानून का कोई वास्ता नहीं है. इनके पास फंड है, जमीन है, बिल्डिंग भी उपलब्ध है. ऐसे में सरकार निजी स्कूलों के लिए नियम और कानून को कितना भी जटिल और कड़े कर दे, इससे इन स्कूल संचालकों को फर्क नहीं पड़ने वाला. निम्न तबके के निजी स्कूल संचालकों ने कई बेरोजगार शिक्षित युवाओं को रोजगार दे रखा है. उनके लिए सरकारी नियम कानून सिरदर्द साबित हो रहा है. इन स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मात्र 150 से 300 रुपये तक फीस भरनी पड़ती है. यह मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए रामबाण साबित होता है.

इससे उनके बच्चों की सही तरीके से देखरेख के अलावा पढ़ाई और नर्सरी का ज्ञान इन स्कूलों की ओर से दिया जाता है. कमोबेश अब इन स्कूलों को झारखंड सरकार से मान्यता नहीं मिल पा रही है. नियम और शर्तें इतनी कड़ी हैं कि संचालक चाहकर भी अपने स्कूलों को झारखंड सरकार से मान्यता दिलाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- शारदीय नवरात्र: यहां गुड्डे-गुड़ियों के रुप में होती है मां आदिशक्ति की आराधना, ये है मान्यता

निजी स्कूल संचालन के लिए ये हैं नियम

  • कक्षा 1 से 5 तक के लिए शहरी क्षेत्र में 30 डिसमिल जमीन होना अनिवार्य.
  • कक्षा 1 से 5 तक के लिए ग्रामीण क्षेत्र के लिए 60 डिसमिल जमीन.
  • सभी कमरे 22 /18 फीट के हो.
  • सभी शिक्षकों का TET पास होना अनिवार्य.
  • स्कूल संचालन के लिए अग्निशमन विभाग से एनओसी का सर्टिफिकेट.
  • जिला शिक्षा विभाग के पास 1 लाख रुपये का डिपाजिट अनिवार्य.
  • 7 सदस्यीय समिति के पास रजिस्ट्रेशन फॉर्म जमा करना.
  • रजिस्ट्रेशन आवेदन के लिए 25 हजार की राशि.
  • जमीन नहीं खरीद सकते तो स्कूल के नाम से 30 साल की लीज.

हालांकि, पड़ोसी राज्य बिहार समेत कई राज्यों में इन कानूनों में थोड़ी ढील दे रखी है. इससे कि पढ़ाई भी सुचारू तरीके से हो और शिक्षित बेरोजगार युवाओं को रोजगार भी आसानी से मिल सके. इसको लेकर झारखंड सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है. उल्टा इस कानून को झारखंड सरकार द्वारा बिना संशोधित किए ही लागू कर दिया गया. झारखंड एकेडमिक काउंसिल सरकार और विभाग का हवाला देते हुए इस पूरे मामले को लेकर अपने हाथ खड़े कर रहा है. वहीं, कक्षा 1 से 8 तक की मान्यता संबंधित निर्णय लेने वाली कमेटी ने इस दिशा में कदम बढ़ाने की बात कही है.

कमेटी के अध्यक्ष जीतू चरण राम की मानें, तो इस दिशा में सरकार काम कर रही है. निजी स्कूल संचालकों को राहत देने पर विचार विमर्श किया जा रहा है. जल्द ही फैसला निजी स्कूल संचालकों के हित में आएगा. गौरतलब है कि कक्षा 1 से 8 तक की मान्यता संबंधित फैसला जिले के अधिकारी लेते हैं. इस कमेटी में दो विधायक, एक सांसद, जिले के डीसी, जिले के डीईओ, जिले के डीडीसी और जिला परिवहन पदाधिकारी शामिल होते हैं.

रांची: सब पढ़ें-सब बढ़ें के स्लोगन के साथ सरकार देश से अशिक्षा को खत्म करना चाहती है. लेकिन झारखंड में अब निजी स्कूल संचालित करना स्कूल संचालकों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है. स्कूल संचालन के लिए सरकारी नियम बेहद ही पेचीदा कर दिए गए हैं. निजी स्कूल संचालकों के लिए ये कांटो भरा रास्ता है, जिससे पार पाना बेहद मुश्किल हो रहा है. वर्ष 2011 से ऐसे कई निजी स्कूल है, जिनकी मान्यता तक इन नियमों के चलते रद्द हो गई है. हालांकि निजी स्कूल संचालक अब भी अपने हक और अधिकार के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

वैसे तो निजी स्कूल चार कैटेगरी में बंटे हुए हैं और पूंजीपतियों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं. हालांकि इन निजी स्कूलों पर सरकारी नियम कानून का कोई वास्ता नहीं है. इनके पास फंड है, जमीन है, बिल्डिंग भी उपलब्ध है. ऐसे में सरकार निजी स्कूलों के लिए नियम और कानून को कितना भी जटिल और कड़े कर दे, इससे इन स्कूल संचालकों को फर्क नहीं पड़ने वाला. निम्न तबके के निजी स्कूल संचालकों ने कई बेरोजगार शिक्षित युवाओं को रोजगार दे रखा है. उनके लिए सरकारी नियम कानून सिरदर्द साबित हो रहा है. इन स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मात्र 150 से 300 रुपये तक फीस भरनी पड़ती है. यह मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए रामबाण साबित होता है.

इससे उनके बच्चों की सही तरीके से देखरेख के अलावा पढ़ाई और नर्सरी का ज्ञान इन स्कूलों की ओर से दिया जाता है. कमोबेश अब इन स्कूलों को झारखंड सरकार से मान्यता नहीं मिल पा रही है. नियम और शर्तें इतनी कड़ी हैं कि संचालक चाहकर भी अपने स्कूलों को झारखंड सरकार से मान्यता दिलाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- शारदीय नवरात्र: यहां गुड्डे-गुड़ियों के रुप में होती है मां आदिशक्ति की आराधना, ये है मान्यता

निजी स्कूल संचालन के लिए ये हैं नियम

  • कक्षा 1 से 5 तक के लिए शहरी क्षेत्र में 30 डिसमिल जमीन होना अनिवार्य.
  • कक्षा 1 से 5 तक के लिए ग्रामीण क्षेत्र के लिए 60 डिसमिल जमीन.
  • सभी कमरे 22 /18 फीट के हो.
  • सभी शिक्षकों का TET पास होना अनिवार्य.
  • स्कूल संचालन के लिए अग्निशमन विभाग से एनओसी का सर्टिफिकेट.
  • जिला शिक्षा विभाग के पास 1 लाख रुपये का डिपाजिट अनिवार्य.
  • 7 सदस्यीय समिति के पास रजिस्ट्रेशन फॉर्म जमा करना.
  • रजिस्ट्रेशन आवेदन के लिए 25 हजार की राशि.
  • जमीन नहीं खरीद सकते तो स्कूल के नाम से 30 साल की लीज.

हालांकि, पड़ोसी राज्य बिहार समेत कई राज्यों में इन कानूनों में थोड़ी ढील दे रखी है. इससे कि पढ़ाई भी सुचारू तरीके से हो और शिक्षित बेरोजगार युवाओं को रोजगार भी आसानी से मिल सके. इसको लेकर झारखंड सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है. उल्टा इस कानून को झारखंड सरकार द्वारा बिना संशोधित किए ही लागू कर दिया गया. झारखंड एकेडमिक काउंसिल सरकार और विभाग का हवाला देते हुए इस पूरे मामले को लेकर अपने हाथ खड़े कर रहा है. वहीं, कक्षा 1 से 8 तक की मान्यता संबंधित निर्णय लेने वाली कमेटी ने इस दिशा में कदम बढ़ाने की बात कही है.

कमेटी के अध्यक्ष जीतू चरण राम की मानें, तो इस दिशा में सरकार काम कर रही है. निजी स्कूल संचालकों को राहत देने पर विचार विमर्श किया जा रहा है. जल्द ही फैसला निजी स्कूल संचालकों के हित में आएगा. गौरतलब है कि कक्षा 1 से 8 तक की मान्यता संबंधित फैसला जिले के अधिकारी लेते हैं. इस कमेटी में दो विधायक, एक सांसद, जिले के डीसी, जिले के डीईओ, जिले के डीडीसी और जिला परिवहन पदाधिकारी शामिल होते हैं.

Intro:स्पेशल स्टोरी...


रांची।

झारखंड में अब निजी स्कूल संचालित करना स्कूल संचालकों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है. क्योंकि इसके लिए सरकारी नियम और कायदे इतने जटिल बनाए गए हैं .जिससे पार पाना निजी स्कूल संचालकों के लिए काफी कठिन साबित हो रहा है. वर्ष 2011 से ही ऐसे कई निजी स्कूल है .जिसके मान्यता तक इस नियम और कानून को लेकर रद्द हो गई है. हालांकि निजी स्कूल संचालक अब भी अपने हक और अधिकार के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं और सरकार से नियम कानून में ढिलाई देने को लेकर गुहार भी लगा रहे हैं.


Body:वैसे तो निजी स्कूल चार कैटेगरी में बंटे हुए हैं और पूंजीपतियों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं.लेकिन इन निजी स्कूलों पर सरकारी नियम कानून का कोई वास्ता नहीं है .इनके पास फण्ड है जमीन है बिल्डिंग भी उपलब्ध है .ऐसे में सरकार निजी स्कूलो के लिए नियम और कानून को कितना भी जटिल और कड़े कर दें. इससे इन स्कूल संचालकों को फर्क नहीं पड़ने वाला है .लेकिन जो निम्न तबके के निजी स्कूल संचालक हैं जो मोहल्लों में छोटे स्तर पर संचालित हो रहे हैं. साथ ही कई बेरोजगार शिक्षित युवाओं को रोजगार दे रखा है .उनके लिए सरकारी नियम कानून सिरदर्द साबित हो रहा है .इन स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मात्र 150 से 300 रुपये तक फीस भरना पड़ता है और यह मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए रामबाण साबित होता है. जिससे उनके बच्चों का सही तरीके से देखरेख के अलावे पठन-पाठन और नर्सरी का ज्ञान इन स्कूलों के द्वारा दिया जाता है. लेकिन अब इन स्कूलों को झारखंड सरकार से मान्यता नहीं मिल पा रही है. नियम और शर्तें इतने कड़े हैं. संचालक चाहकर भी अपने स्कूलों को झारखंड सरकार से मान्यता दिलाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं.

निजी स्कूल संचालन के लिए ये है नियम:

*कक्षा 1 से 5 तक के लिए शहरी क्षेत्र में 30 डिसमिल जमीन होना अनिवार्य है.

*कक्षा 1 से 5 तक के लिए ग्रामीण क्षेत्र के लिए 60 डिसमिल जमीन.

*सभी कमरे 22 /18 फीट की हो .

*सभी शिक्षकों को टेट पास होना अनिवार्य.

*स्कूल संचालन के लिए अग्निशमन विभाग से एनओसी का सर्टिफिकेट .

*जिला शिक्षा विभाग के पास एक लाख रुपये का डिपाजिट अनिवार्य.

*7 सदस्य समिति के पास रजिस्ट्रेशन फॉर्म जमा करना .

*रजिस्ट्रेशन आवेदन के लिए 25 हजार की राशि का होना .

*यदि जमीन नहीं खरीद सकते है. तो स्कूल से नाम से 30 साल की लीज.

हालांकि पड़ोसी राज्य बिहार समेत ऐसे कई राज्यों में आरटीई के इस कानून को सही तो ठहराया है .लेकिन अपने नियमों को ढील दे रखी है. जिससे कि पठन-पाठन भी सुचारू तरीके से हो और शिक्षित बेरोजगार युवाओं को रोजगार भी आसानी से मिल सके. लेकिन इस दिशा में झारखंड सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है. उल्टा इस कानून को झारखंड सरकार द्वारा बिना संशोधित किए ही लागू कर दिया गया है. झारखंड एकेडमिक काउंसिल सरकार और विभाग का हवाला देते हुए इस पूरे मामले को लेकर अपने हाथ खड़े कर रहे हैं. लेकिन कक्षा 1 से 8 तक की मान्यता संबंधित निर्णय लेने वाले कमेटी ने इस दिशा में कदम बढ़ाने की बात कही है .कमेटी के पदेन अध्यक्ष जीतू चरण राम की माने तो इस दिशा में सरकार काम कर रही है .निजी स्कूल संचालकों को राहत देने पर विचार विमर्श किया जा रहा है .जल्द ही फैसला निजी स्कूल संचालकों के हित में आएगा.


Conclusion:बता दूं कि कक्षा 1 से 8 तक की मान्यता संबंधित फैसला जिले के अधिकारी लेते हैं और इस कमेटी में दो विधायक एक सांसद जिले के डीसी जिले के डीईओ जिले के डीडीसी और जिला परिवहन पदाधिकारी शामिल होते हैं.

बाइट-अविनाश कुमार वर्मा अध्यक्ष झारखंड निजी स्कूल संघ

बाइट- जीतू चरण राम, पदेन अध्यक्ष, मान्यता कमेटी।
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