रांचीः भारतीय संस्कृति के अनुसार हर पर्व त्यौहार का खास महत्व होता है. वहीं प्रकाश का पर्व दीपावली का महत्व और भी खास होता है. जिसका कुम्हार को खास इंतजार होता है. यही वजह है कि दिन-रात लगकर मिट्टी के दीया बनाने में जुटे हैं. इस दीवाली उनको बेहतरी की उम्मीद है.
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रांची के बोड़ेया बस्ती में 50 से 55 कुम्हार परिवार है, जो पिछले कई दशकों से मिट्टी के दीया, सजावट का सामान, घरेलू सामान, बर्तन जैसे 36 तरह के सामान बनाने का काम करते हैं. कोरोना की मार से ये कुम्हार काफी प्रभावित हुए है, रोजी रोजगार पर आफत आ पड़ी है. लिहाजा इस बार बड़ी उम्मीद के साथ महीनों पहले से ही दीपावली के समान बनाने में जुट गए हैं ताकि अच्छी आमदनी कर कोरोना से प्रभावित हुई जिंदगी को दोबारा पटरी पर ला सके.
सालभर मिट्टी से सराबोर रहने वाले कुम्हार का जीविकोपार्जन मिट्टी से बने सामान को बेचकर होता है. लिहाजा पूरा परिवार इस काम से जुड़े रहते हैं. एक समय था जब ये कुम्हार डंडा के सहारे चाक घुमाकर दीया और मिट्टी के बर्तन बनाया करते थे. लेकिन इनकी जिंदगी में बदलाव तब आया जब पूर्व की रघुवर सरकार ने इन्हें 30% सब्सिडी पर इलेक्ट्रॉनिक चाक मुहैया कराया. इससे एक कुम्हार रोजाना 5 हजार दीया कम मेहनत पर बना रहा है.
दूसरी ओर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'मेक इन इंडिया' और लोकल फॉर वोकर की सोच ने कुम्हार के जीवन में बदलाव लाया है. क्योंकि पिछले कुछ वर्षो से चाइनीज लाइट, दीया और सामानों का लोगों ने खूब बहिष्कार किया है.
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दीपावली में दीप जलाकर घर को रोशन करने की परंपरा सदियों पुरानी है. सभी अपने-अपने घरों में दीप जलाकर मां लक्ष्मी-गणेश की पूजा करते हैं और सुख समृद्धि की कामना करते हैं. जरूरत है कुम्हार समाज के प्रति भी चिंता करने की ताकि दीया बनाने वाले कुम्हार के घर भी खुशियों से रोशन हो सके.