रांचीः 23 नवंबर 2024 को झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे. 28 नवंबर को चौथी बार हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. 5 दिसंबर को कैबिनेट का पूर्ण विस्तार हो गया था. इस बीच दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे भी आ गये हैं. वहां वर्षों बाद कमल खिला है. ऊपर से झारखंड विधानसभा का बजट सत्र 24 फरवरी से शुरु होने जा रहा है. अच्छा खासा वक्त गुजर चुका है. फिर भी अभी तक सदन को नेता प्रतिपक्ष नहीं मिला है.
अव्वल तो ये कि भाजपा द्वारा विधायक दल का नेता नहीं चुने जाने के अभाव में मुख्य सूचना आयुक्त समेत कई महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति नहीं हो पा रही है. इसी मामले में 7 जनवरी, 2025 को सुप्रीम कोर्ट अपने निर्देश में कह चुका है कि दो सप्ताह के भीतर नेता का चयन कर सूचित करें. फिर भी मामला अटका हुआ है. इधर, भाजपा के तमाम बड़े नेता दिल्ली की ओर नजरें गड़ाए बैठे हैं. पता नहीं किसका भाग्य खुल जाए. अब सवाल है कि नेता प्रतिपक्ष, मुख्य सचेतक और सचेतक की रेस में कौन-कौन हैं. क्या प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जा सकते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार चंदन मिश्रा का मानना है कि इस माह के अंत तक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बदले जा सकते हैं. बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाते हैं तो उनको कोई जगह देनी होगी. रही बात सीपी सिंह की तो उन्हें विधायक निधि अनुश्रवण समिति का सभापति मनोनीत किया जा चुका है. लिहाजा, नेता प्रतिपक्ष के लिए सबसे बड़ी दावेदारी बाबूलाल मरांडी की दिख रही है. वह सीएम भी रह चुके हैं. चंदन मिश्रा के मुताबिक इस बदलाव के बाद प्रदेश अध्यक्ष पद पर नॉन ट्राइबल को लाया जा सकता है. रही बात मुख्य सचेतक और सचेतक की तो इन पदों पर सामाजिक समीकरण के हिसाब से सीनियर विधायकों को एडजस्ट किया जा सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार चंदन मिश्रा का कहना है विधानसभा चुनाव में हार के लिए बाबूलाल मरांडी पर ठीकरा कैसे फोड़ा जा सकता है, क्योंकि चुनाव के वक्त प्रभारी, चुनाव प्रभारी और सह प्रभारी के रुप में कई नेता सक्रिय थे. खुद पीएम और अमित शाह ने रैलियां की थी. सबकुछ दिल्ली के स्तर पर तय हो रहा था. 2019 में केंद्रीय नेतृत्व ने रघुवर दास को खुली छूट दी थी. उन्होंने जो चाहा सो किया. लेकिन कुछ नहीं कर पाए. अब भौकाल बना रहे हैं. इसी तरह का फ्री हैंड बाबूलाल मरांडी को मिला होता, तब सवाल उठाना लाजमी होता.
हालांकि, नाम नहीं लिखने की सूरत में कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने अनुमान जताया है कि सीपी सिंह फिलहाल एक मात्र ऐसे नेता दिख रहे हैं जो नेता प्रतिपक्ष पद के लिए सबसे योग्य हैं. सामाजिक समीकरण के हिसाब से मुख्य सचेतक और सचेतक तय होंगे. रही बात बाबूलाल मरांडी की तो उनके सामने नया विकल्प रखा जा सकता है. क्योंकि भाजपा को अगले पांच साल तक विपक्ष की भूमिका में रहना है. इसके मद्देनजर नेताओं की नई पौध तैयार करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
भाजपा का रटा रटाया जवाब, कांग्रेस-झामुमो ले रहा चुटकी
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद हो रहे विलंब पर कांग्रेस और झामुमो ने जमकर चुटकी ली है. कांग्रेस विधायक सह वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर का कहना है कि नेता प्रतिपक्ष का चयन करना भाजपा का दायित्व है. इसपर टिप्पणी करना उचित नहीं है. लेकिन आश्चर्य है कि कई मामलों में त्वरित निर्णय लेने वाली भाजपा इस मामले में विलंब क्यों कर रही है. वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि नेता प्रतिपक्ष के अभाव में कई संवैधानिक पदों पर चयन नहीं हो पा रहा है. सरकार के गठन हुए दो माह हो चुके हैं. इससे साफ है कि राज्यहित को लेकर भाजपा कितनी गंभीर है.
प्रदेश झामुमो प्रवक्ता मनोज पांडेय का कहना है कि सिर्फ 24 विधायकों में से एक नेता चुनना है. अब सवाल है कि क्या आलाकमान की नजर में सभी नालायक हैं. लेकिन झामुमो की नजर में भाजपा में कई काबिल और अनुभवी नेता हैं. फिर भी विलंब हो रहा है. नेता प्रतिपक्ष की घोषणा जल्द होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की अवमानना हो रही है. वहीं इस मामले में भाजपा का रटा रटाया जवाब आ रहा है. वरिष्ठ भाजपा नेता सी.पी.सिंह का कहना है कि यह फैसला राष्ट्रीय नेतृत्व को करना है. उचित समय पर उचित निर्णय आ जाएगा. उन्होंने अनुमान जताया है कि 24 फरवरी को बजट सत्र शुरु होने से पहले नेता प्रतिपक्ष के नाम की घोषणा हो सकती है.
ये भी पढ़ेंः
नेता प्रतिपक्ष को लेकर सस्पेंस बरकरार, बीजेपी में जारी है मंथन का दौर