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झारखंड के ढांचे का बीस साल, उद्योग का हाल बेहाल

झारखंड बने 20 साल हो गए. अब तक व्यवसाय के मामले में राज्य को जहां खड़ा होना चाहिए था. वहां तक नहीं पहुंच पाया. इन बीस साल में से 14 साल सरकार अस्थिर रही. पिछले 6 सालों से सरकार स्थिर है तो ऐसे में व्यापारी के साथ-साथ आम लोग भी झारखंड में उद्योग धंधों को फूलते-फलते देखना चाहते हैं. देखिए झारखंड में उद्योग की रिपोर्ट...

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Published : Nov 15, 2020, 6:18 AM IST

रांची: झारखंड राज्य बनने से लेकर अब तक व्यवसाय के मामले में झारखंड को जहां खड़ा होना चाहिए था. वहां तक राज्य नहीं पहुंच पाया है. राज्य अलग होने के बाद उद्योग धंधे खुलने चाहिए थे, लेकिन उसकी जगह वह बंद होते चले गए. सैंकड़ों स्मॉल स्केल इंडस्ट्री के साथ-साथ दर्जन भर लार्ज स्केल इंडस्ट्री बंद हो गये हैं. कई सरकारें आई और गई, उनके द्वारा इंडस्ट्री लगाने और व्यवसाय को बढ़ाने की पहल भी की गई, लेकिन वह सिर्फ कागजों पर ही सीमित रहे. आलम यह है कि राज्य स्थापना के 20 वर्ष होने को है, फिर भी खनिज संपदा होने के बावजूद झारखंड राज्य को जिस मुकाम पर होना चाहिए था. वह हासिल करने में नाकाम रही है.

देखिए पूरी खबर

व्यापारियों की नजर में झारखंड

इस सवाल को लेकर झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष कुणाल अजमानी ने साफ कहा है कि व्यवसाय के मामले में राज्य को जहां पर होना चाहिए था. वहां नहीं पहुंच पाई है. खासकर झारखंड राज्य में व्यवसाय के लिए सुरक्षित वातावरण नहीं होना, इसकी बड़ी वजह रही है. उन्होंने कहा कि राज्य अलग गठन होने के बाद उद्योग व्यापार जरूर बढ़ा, लेकिन जिस गति से बढ़ना चाहिए था. वह गति धीमी होती गई. उन्होंने कहा कि कई एमओयू भी हुए, जिससे हजारों करोड़ के राज्य में निवेश की उम्मीद बढ़ी, लेकिन निवेश नहीं हो पाया. उन्होंने कहा कि खनिज संपदा, वन भूमि, इको टूरिज्म के क्षेत्र में झारखंड राज्य देश में अग्रणी राज्य हो सकता था. नए राज्य के रूप में वरदान तो मिला, लेकिन यह अभिशाप बन गया. पूरे देश में झारखंड के कोयले से बिजली उत्पन्न होती है, लेकिन विडंबना है कि राजधानी रांची में भी 24 घंटे बिजली उपलब्ध नहीं हो पा रही है.

'सरकार ने नहीं किया प्रयास'

वहीं, स्थानीय लोगों का मानना है कि झारखंड राज्य अलग होने के बाद बड़े और छोटे उद्योग धंधे बंद हुए हैं. ऐसे उद्योग धंधे को फिर से शुरू करने का प्रयास सरकारों द्वारा नहीं किया गया. अगर यह प्रयास किया जाता तो बंद हुए उद्योग धंधे फिर से शुरू होते, जिससे बेरोजगारी भी खत्म होती. राज्य अलग होने के बाद जितनी भी सरकारें आई उन्होंने उद्योग धंधे खोलने के लिए पहल नहीं की, जिसकी वजह से राज्य में उद्योग धंधों की स्थिति जर्जर है.

रांची औद्योगिक क्षेत्र के पूर्व निदेशक सुरेन राम ने कहा कि वर्तमान में राज्य में बड़े बड़े इंडस्ट्री की भी स्थिति दयनीय हो गई है और बंद के कगार पर पहुंच गयी है. इंडस्ट्री को फिर से शुरू करने की पहल नहीं की जा रही है. उन्होंने कहा कि राज्य के विकास के लिए इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए और जनता के हित में उद्योग धंधे बढ़ाए जाने चाहिए.

ये भी पढ़ें: बाजार में लौटने लगे ग्राहक, व्यापारियों को त्योहार पर कारोबार अच्छा होने की बंधी आस

रांची के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय ने कहा कि झारखंड राज्य की स्थापना पर जो खुशी हुई थी और उम्मीद थी कि बहुत कुछ परिवर्तन होगा, लेकिन 14 वर्षों तक अल्पमत की सरकार रही. जिसकी वजह से 8 सरकारें बनी. यही वजह रही कि विकास अवरुद्ध हुआ और व्यवसाई गतिविधियां धीमी पड़ गयी. कई उद्योग धंधे जो झारखंड में स्थापित होने थे. वह दूसरे राज्यों में चले गए. बहरहाल, राज्य में व्यवसाई वर्ग मानते हैं कि राज्य गठन के बाद उद्योग धंधे विकसित नहीं हो पाए. बल्कि कई उद्योग धंधे बंदी की कगार पर है. इसके पीछे की कई वजहें भी हैं, जिस पर सरकार को संज्ञान लेते हुए उद्योग धंधों को बढ़ावा देना चाहिए ताकि रोजगार भी बढ़ सके.

रांची: झारखंड राज्य बनने से लेकर अब तक व्यवसाय के मामले में झारखंड को जहां खड़ा होना चाहिए था. वहां तक राज्य नहीं पहुंच पाया है. राज्य अलग होने के बाद उद्योग धंधे खुलने चाहिए थे, लेकिन उसकी जगह वह बंद होते चले गए. सैंकड़ों स्मॉल स्केल इंडस्ट्री के साथ-साथ दर्जन भर लार्ज स्केल इंडस्ट्री बंद हो गये हैं. कई सरकारें आई और गई, उनके द्वारा इंडस्ट्री लगाने और व्यवसाय को बढ़ाने की पहल भी की गई, लेकिन वह सिर्फ कागजों पर ही सीमित रहे. आलम यह है कि राज्य स्थापना के 20 वर्ष होने को है, फिर भी खनिज संपदा होने के बावजूद झारखंड राज्य को जिस मुकाम पर होना चाहिए था. वह हासिल करने में नाकाम रही है.

देखिए पूरी खबर

व्यापारियों की नजर में झारखंड

इस सवाल को लेकर झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष कुणाल अजमानी ने साफ कहा है कि व्यवसाय के मामले में राज्य को जहां पर होना चाहिए था. वहां नहीं पहुंच पाई है. खासकर झारखंड राज्य में व्यवसाय के लिए सुरक्षित वातावरण नहीं होना, इसकी बड़ी वजह रही है. उन्होंने कहा कि राज्य अलग गठन होने के बाद उद्योग व्यापार जरूर बढ़ा, लेकिन जिस गति से बढ़ना चाहिए था. वह गति धीमी होती गई. उन्होंने कहा कि कई एमओयू भी हुए, जिससे हजारों करोड़ के राज्य में निवेश की उम्मीद बढ़ी, लेकिन निवेश नहीं हो पाया. उन्होंने कहा कि खनिज संपदा, वन भूमि, इको टूरिज्म के क्षेत्र में झारखंड राज्य देश में अग्रणी राज्य हो सकता था. नए राज्य के रूप में वरदान तो मिला, लेकिन यह अभिशाप बन गया. पूरे देश में झारखंड के कोयले से बिजली उत्पन्न होती है, लेकिन विडंबना है कि राजधानी रांची में भी 24 घंटे बिजली उपलब्ध नहीं हो पा रही है.

'सरकार ने नहीं किया प्रयास'

वहीं, स्थानीय लोगों का मानना है कि झारखंड राज्य अलग होने के बाद बड़े और छोटे उद्योग धंधे बंद हुए हैं. ऐसे उद्योग धंधे को फिर से शुरू करने का प्रयास सरकारों द्वारा नहीं किया गया. अगर यह प्रयास किया जाता तो बंद हुए उद्योग धंधे फिर से शुरू होते, जिससे बेरोजगारी भी खत्म होती. राज्य अलग होने के बाद जितनी भी सरकारें आई उन्होंने उद्योग धंधे खोलने के लिए पहल नहीं की, जिसकी वजह से राज्य में उद्योग धंधों की स्थिति जर्जर है.

रांची औद्योगिक क्षेत्र के पूर्व निदेशक सुरेन राम ने कहा कि वर्तमान में राज्य में बड़े बड़े इंडस्ट्री की भी स्थिति दयनीय हो गई है और बंद के कगार पर पहुंच गयी है. इंडस्ट्री को फिर से शुरू करने की पहल नहीं की जा रही है. उन्होंने कहा कि राज्य के विकास के लिए इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए और जनता के हित में उद्योग धंधे बढ़ाए जाने चाहिए.

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रांची के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय ने कहा कि झारखंड राज्य की स्थापना पर जो खुशी हुई थी और उम्मीद थी कि बहुत कुछ परिवर्तन होगा, लेकिन 14 वर्षों तक अल्पमत की सरकार रही. जिसकी वजह से 8 सरकारें बनी. यही वजह रही कि विकास अवरुद्ध हुआ और व्यवसाई गतिविधियां धीमी पड़ गयी. कई उद्योग धंधे जो झारखंड में स्थापित होने थे. वह दूसरे राज्यों में चले गए. बहरहाल, राज्य में व्यवसाई वर्ग मानते हैं कि राज्य गठन के बाद उद्योग धंधे विकसित नहीं हो पाए. बल्कि कई उद्योग धंधे बंदी की कगार पर है. इसके पीछे की कई वजहें भी हैं, जिस पर सरकार को संज्ञान लेते हुए उद्योग धंधों को बढ़ावा देना चाहिए ताकि रोजगार भी बढ़ सके.

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