रांचीः झारखंड की राजनीति 2005 से 2009 के बीच झंझावातों से जूझती रही. खंडित जनादेश के चलते राजनीति के समीकरण बनते-बिगड़ते रहे. गठबंधन के नेताओं में मनमुटाव और आपसी स्वार्थ इतनी पैठ बना चुकी थी कि आखिरकार एक निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा. हालांकि झारखंड की राजनीति में ये प्रयोग सफल नहीं रहा. ये वो दौर था जब झारखंड की सबसे ज्यादा बदनामी हुई.
वीडियो में देखिए पूरी जानकारी देश में ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री बनाया गया. यूपीए किसी भी कीमत पर एनडीए को सत्ता में आने से रोकना चाहता था. निर्दलीय विधायकों की समर्थन वापसी के बाद अर्जुन मुंडा को इस्तीफा देना पड़ा था. आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव की पहल पर जगन्नाथपुर से निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को सहयोगी दलों ने समर्थन दिया और सरकार बन गई. सिंहभूम में जन्मे मधु कोड़ा ने बतौर छात्र अपनी राजनीति शुरू की थी. वे ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन में सक्रिय रहे और फिर संघ से जुड़ गए. मजदूरों के बीच नेतागिरी के दौरान वे बाबूलाल मरांडी के संपर्क में आए और 2000 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर जगन्नाथपुर से विधायक चुने गए.
ये भी पढ़ें-झारखंड में सबसे ज्यादा वक्त तक संभाली सीएम की कुर्सी, अब केंद्र की सियासत में सक्रिय
टिकट कटा तो हो गए बागी
विधानसभा चुनाव 2005 में बीजेपी ने कोड़ा को टिकट नहीं दिया, जिससे नाराज होकर वे निर्दलीय चुनावी मैदान में कूद पड़े और जीत भी हासिल की. मधु कोड़ा बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. 14 सितंबर 2006 को मधु कोड़ा ने सीएम की कुर्सी संभाली और 23 अगस्त 2008 तक कुल 709 दिनों तक झारखंड में राज किया. इस सरकार में ज्यादातर मंत्री निर्दलीय विधायकों को ही बनाया गया था. पूरे कार्यकाल के दौरान सरकार ने ऐसे फैसले लिए जो जनहित में नहीं थे. विधायक अपने वेतन-भत्ते बढ़ाते रहे और सदन को बेवजह बाधित कर विधानसभा की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई. इसके बाद जेएमएम ने समर्थन वापस ले लिया और मधु कोड़ा की गद्दी छिन गई.
इसके बाद मधु कोड़ा ने अपनी पार्टी बनाई और 2009 के लोकसभा चुनाव में चाईबासा सीट से जीत हासिल की, वहीं जगन्नाथपुर की विरासत को उन्होंने अपनी पत्नी गीता कोड़ा को सौंप दी. मधु कोड़ा विवादों से भी घिरे रहे हैं. इनका नाम कोयला घोटाले में भी आया था. इस मामले में साल 2017 में अदालत ने 3 साल जेल और 25 लाख जुर्माने की सजा सुनाई थी. आज भी मधु कोड़ा भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर जेल और अदालत के चक्कर लगा रहे हैं. बहरहाल अगली कड़ी में जरूर देखिए हेमंत सोरेन की सरकार.
रांचीः झारखंड की राजनीति 2005 से 2009 के बीच झंझावातों से जूझती रही. खंडित जनादेश के चलते राजनीति के समीकरण बनते-बिगड़ते रहे. गठबंधन के नेताओं में मनमुटाव और आपसी स्वार्थ इतनी पैठ बना चुकी थी कि आखिरकार एक निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा. हालांकि झारखंड की राजनीति में ये प्रयोग सफल नहीं रहा. ये वो दौर था जब झारखंड की सबसे ज्यादा बदनामी हुई.
वीडियो में देखिए पूरी जानकारी देश में ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री बनाया गया. यूपीए किसी भी कीमत पर एनडीए को सत्ता में आने से रोकना चाहता था. निर्दलीय विधायकों की समर्थन वापसी के बाद अर्जुन मुंडा को इस्तीफा देना पड़ा था. आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव की पहल पर जगन्नाथपुर से निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को सहयोगी दलों ने समर्थन दिया और सरकार बन गई. सिंहभूम में जन्मे मधु कोड़ा ने बतौर छात्र अपनी राजनीति शुरू की थी. वे ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन में सक्रिय रहे और फिर संघ से जुड़ गए. मजदूरों के बीच नेतागिरी के दौरान वे बाबूलाल मरांडी के संपर्क में आए और 2000 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर जगन्नाथपुर से विधायक चुने गए.
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टिकट कटा तो हो गए बागी
विधानसभा चुनाव 2005 में बीजेपी ने कोड़ा को टिकट नहीं दिया, जिससे नाराज होकर वे निर्दलीय चुनावी मैदान में कूद पड़े और जीत भी हासिल की. मधु कोड़ा बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. 14 सितंबर 2006 को मधु कोड़ा ने सीएम की कुर्सी संभाली और 23 अगस्त 2008 तक कुल 709 दिनों तक झारखंड में राज किया. इस सरकार में ज्यादातर मंत्री निर्दलीय विधायकों को ही बनाया गया था. पूरे कार्यकाल के दौरान सरकार ने ऐसे फैसले लिए जो जनहित में नहीं थे. विधायक अपने वेतन-भत्ते बढ़ाते रहे और सदन को बेवजह बाधित कर विधानसभा की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई. इसके बाद जेएमएम ने समर्थन वापस ले लिया और मधु कोड़ा की गद्दी छिन गई.
इसके बाद मधु कोड़ा ने अपनी पार्टी बनाई और 2009 के लोकसभा चुनाव में चाईबासा सीट से जीत हासिल की, वहीं जगन्नाथपुर की विरासत को उन्होंने अपनी पत्नी गीता कोड़ा को सौंप दी. मधु कोड़ा विवादों से भी घिरे रहे हैं. इनका नाम कोयला घोटाले में भी आया था. इस मामले में साल 2017 में अदालत ने 3 साल जेल और 25 लाख जुर्माने की सजा सुनाई थी. आज भी मधु कोड़ा भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर जेल और अदालत के चक्कर लगा रहे हैं. बहरहाल अगली कड़ी में जरूर देखिए हेमंत सोरेन की सरकार.
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जब एक निर्दलीय विधायक को सौंप दी गई राज्य की कमान, मधु कोड़ा का कैंपस से कुर्सी तक का सफर
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समरी- झारखंड की धरती राजनीति की प्रयोगशाला से कम नहीं. 19 सालों में जितने प्रयोग यहां हुए, शायद ही कहीं और हुए होंगे. इसी कड़ी में ऐसा पहली बार हुआ जब एक निर्दलीय विधायक को राज्य की कमान सौंपनी पड़ी. देखिए मधु कोड़ा का राजनीतिक सफर...
रांचीः झारखंड की राजनीति 2005 से 2009 के बीच झंझावातों से जूझती रही. खंडित जनादेश के चलते राजनीति के समीकरण बनते-बिगड़ते रहे. गठबंधन के नेताओं में मनमुटाव और आपसी स्वार्थ इतनी पैठ बना चुकी थी कि आखिरकार एक निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा. हालांकि झारखंड की राजनीति में ये प्रयोग सफल नहीं रहा. ये वो दौर था जब झारखंड की सबसे ज्यादा बदनामी हुई.
देश में ऐसा पहली बार हुआ था, जब किसी निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री बनाया गया. यूपीए किसी भी कीमत पर एनडीए को सत्ता में आने से रोकना चाहता था. निर्दलीय विधायकों की समर्थन वापसी के बाद अर्जुन मुंडा को इस्तीफा देना पड़ा था. आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव की पहल पर जगन्नाथपुर से निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को सहयोगी दलों ने समर्थन दिया और सरकार बन गई. सिंहभूम में जन्मे मधु कोड़ा ने बतौर छात्र अपनी राजनीति शुरू की थी. वे ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन में सक्रिय रहे और फिर संघ से जुड़ गए. मजदूरों के बीच नेतागिरी के दौरान वे बाबूलाल मरांडी के संपर्क में आए और 2000 में पहली बार बीजेपी के टिकट पर जगन्नाथपुर से विधायक चुने गए.
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टिकट कटा तो हो गए बागी
विधानसभा चुनाव 2005 में बीजेपी ने कोड़ा को टिकट नहीं दिया, जिससे नाराज होकर वे निर्दलीय चुनावी मैदान में कूद पड़े और जीत भी हासिल की. मधु कोड़ा बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. 14 सितंबर 2006 को मधु कोड़ा ने सीएम की कुर्सी संभाली और 23 अगस्त 2008 तक कुल 709 दिनों तक झारखंड में राज किया. इस सरकार में ज्यादातर मंत्री निर्दलीय विधायकों को ही बनाया गया था. पूरे कार्यकाल के दौरान सरकार ने ऐसे फैसले लिए जो जनहित में नहीं थे. विधायक अपने वेतन-भत्ते बढ़ाते रहे और सदन को बेवजह बाधित कर विधानसभा की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई. इसके बाद जेएमएम ने समर्थन वापस ले लिया और मधु कोड़ा की गद्दी छिन गई.
इसके बाद मधु कोड़ा ने अपनी पार्टी बनाई और 2009 के लोकसभा चुनाव में चाईबासा सीट से जीत हासिल की, वहीं जगन्नाथपुर की विरासत को उन्होंने अपनी पत्नी गीता कोड़ा को सौंप दी. मधु कोड़ा विवादों से भी घिरे रहे हैं. इनका नाम कोयला घोटाले में भी आया था. इस मामले में साल 2017 में अदालत ने 3 साल जेल और 25 लाख जुर्माने की सजा सुनाई थी. आज भी मधु कोड़ा भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर जेल और अदालत के चक्कर लगा रहे हैं. बहरहाल अगली कड़ी में जरूर देखिए हेमंत सोरेन की सरकार.
Conclusion: