रांचीः साल 2014 के विधानसभा चुनाव में स्थाई सरकार सबसे बड़ा मुद्दा था. 14 साल की राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार से राज्य विकास की दौर में पिछड़ता चला गया. जनता को भी ये बात समझ आ चुकी थी, लिहाजा वोटरों ने एक ओर जहां कई दिग्गज नेताओं को हार का स्वाद चखाया तो वहीं दूसरी ओर स्पष्ट जनादेश देते हुए मोदी लहर में झारखंड का भी बेड़ा पार कर दिया. आदिवासी बहुल राज्य में रघुवर दास पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए गए.
झारखंड विधानसभा चुनाव 2014 कई मायनों में निर्णायक साबित हुआ. पहली बार राज्य में किसी एक गठबंधन को बहुमत मिला था. इस चुनाव में बीजेपी की झोली में 37 सीटें आईं. इसके साथ ही सहयोगी आजसू को 5 सीटों पर कामयाबी मिली. जेएमएम को 19, कांग्रेस को 7, जेवीएम को 8 और अन्य को 5 सीटें हासिल हुई.
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पूर्व मुख्यमंत्रियों की हार
ये पहला ऐसा चुनाव था जब वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, राज्य के सबसे पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा सभी को जनता ने हार का स्वाद चखा दिया. सुदेश महतो, सिमोन मरांडी, हेमलाल मुर्मू, अन्नपूर्णा देवी और सुखदेव भगत जैसे कई दिग्गज भी अपनी सीट नहीं बचा सके. इसके साथ ही आरजेडी, जेडीयू का सूपड़ा साफ हो गया. जनता ने चुनाव में खड़े 6 पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों को भी नकार दिया. इन नतीजों ने झारखंड की राजनीति को एक नई दिशा दी. राज्य में पहली बार गैर आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाया गया और 28 दिसंबर 2014 को रघुवर दास ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली.
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प्रेरणादायक राजनीतिक सफर
रघुवर दास पर बीजेपी के बेहद भरोसेमंद रहे हैं. 2014 में जब अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब रघुवर दास को बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था. रघुवर दास कभी मामूली कर्मचारी हुआ करते थे. उनका सीएम बनने का सफर रोचक और प्रेरणादायक है.
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रघुवर दास मूल रूप से छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के बोईरडीह के रहने वाले हैं. इनके पिता चमन दास रोजगार के लिए जमशेदपुर शिफ्ट हो गए थे. रघुवर दास का जन्म 3 मई 1955 को जमशेदपुर में हुआ था. लॉ की पढ़ाई के बाद रघुवर दास ने टाटा स्टील के रोलिंग मिल में मजदूरी करने लगे. इसी दौरान रघुवर ने मजदूरों के हक में लड़ना शुरू किया. उन्होंने टाटा स्टील के कब्जे में 86 बस्तियों का मालिकाना हक मजदूरों को दिलाया. धीरे-धीरे इनका रुझान राजनीति की ओर होने लगा. रघुवर दास जेपी आंदोलन के दौरान 1975 के आपातकाल के समय जेल भी गए.
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अब तक नहीं हारे चुनाव
रघुवर 1977 में जनता पार्टी के सदस्य बने और1980 में बीजेपी की स्थापना के साथ सक्रिय राजनीति में आ गए. इसी साल रघुवर दास बीजेपी प्रत्याशी दीनानाथ पांडे के लिए पोलिंग एजेंट बने, जिसके बाद बीजेपी ने उन्हें बूथ मैनेजमेंट की जिम्मेदारी सौंप दी और फिर उन्हें जिला महामंत्री बना दिया गया. बीजेपी विचारक गोविंदाचार्य की नजर रघुवर पर गई तो 1995 में जमशेदपुर (पूर्वी) सीट का टिकट मिल गया. उन्होंने बीजेपी के भरोसे को टूटने नहीं दिया और पहले चुनाव में ही भारी मतों से जीत हासिल की. इसके बाद वे इस सीट से लगातार चुनाव जीत रहे हैं. मुख्यमंत्री बनने से पहले वे बीजेपी सरकार में कई विभागों के मंत्री और 30 दिसंबर 2009 से 29 मई 2010 तक उपमुख्यमंत्री भी रहे हैं.
झारखंड में रघुवर सरकार के पहले घोर राजनीतिक अनिश्चितता थी. विधायकों को जोड़तोड़ कर बनी सरकार का कोई ठिकाना नहीं था. सियासी अस्थिरता की वजह से राज्य के विकास का पहिया थम सा गया था. रघुवर सरकार के आने के बाद पहली बार किसी सरकार ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया है. अब एक बार फिर जनता की बारी है और सभी दिग्गज अग्निपरीक्षा के लिए तैयार हैं.