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वाह रे 'धरती के भगवान' ले ली एक मरीज की जान!, परिजनों ने कहा- RIMS से उठ गया भरोसा

राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में इलाज के अभाव में फिर एक मरीज की मौत हो गई. मरीज के परिजनों ने बताया कि डॉक्टर यहां से वहां दौड़ाते रहे, घंटों मरीज पड़ा रहा पर किसी ने भी इलाज करना मुनासिब नहीं समझा और मरीज ने आखिर में दम तोड़ दिया.

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रिम्स में पड़ा मरीज का शव
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Published : Sep 26, 2020, 4:34 AM IST

रांची: राजधानी का सबसे बड़ा अस्पताल रिम्स अब जान गंवाने वाला अस्पताल बन गया है. क्योंकि यहां पर आने वाले मरीजों को जिंदगी नहीं, बल्कि मौत मिल रही है.

देखें पूरी खबर

कोडरमा से इलाज के लिए पहुंचे थे रिम्स
कोडरमा के रहने वाले मरीज रामकुमार यादव की 2 दिन पहले अचानक तबीयत काफी खराब हो गई. वह किडनी की बीमारी से ग्रसित थे. जिसके बाद परिजनों ने रामकुमार यादव की गंभीरता को देखते हुए रांची के किडनी क्लिनिक में भर्ती कराया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मेदांता अस्पताल भेज दिया.

व्यवस्था की मार
मेदांता अस्पताल में कुछ देर इलाज करने के बाद मरीज कोरोना पॉजिटिव पाया गया. जिसके बाद मेदांता अस्पताल के प्रबंधन ने मरीज के परिजनों को बताया कि अगर इस अस्पताल में इलाज कराना है तो उन्हें प्रति दिन 40 से 50 हजार रुपए का खर्च लगेगा. मेदांता अस्पताल की फीस ज्यादा होने की वजह से परिजनों ने मरीज को रिम्स लाने का फैसला किया. रिम्स लाने के बाद रिम्स की व्यवस्था की मार झेलते-झेलते परिजन परेशान हो गए.

ये भी पढ़ें- पुलिस मुख्यालय के पास महिला पुलिसकर्मी से झपटा हुआ मोबाइल रखा था ऑन, एक धराया

दौड़ते रहे मरीज के परिजन
मरीज कोरोना पॉजिटिव होने की वजह से परिजन सीधा ट्रॉमा सेंटर के कोविड वार्ड पहुंचे. लेकिन न्यू ट्रॉमा सेंटर में मरीज को गंभीर बताकर डॉक्टरों ने परिजनों को पुराना इमरजेंसी भेज दिया. पुराना इमरजेंसी पहुंचने के बाद मरीज के परिजनों को यह कहा गया कि इतना सीरियस मरीज का इलाज यहां पर नहीं हो सकता, इस लिए इसे न्यू ट्रॉमा सेंटर ही लेकर जाएं और परिजन वापस मरीज को न्यू ट्रॉमा सेंटर लेकर पहुंचे. लेकिन यहां आखिर तक एडमिट नहीं ही लिया गया.

आखिर में इलाज के अभाव में मौत
परिजन को रिम्स अस्पताल में जगह नहीं होने का हवाला देते हुए डॉक्टर ने डोरंडा भेज दिया. डोरंडा में भी मरीज को इलाज नहीं मिल पाया. जिसके बाद मरीज के परिजनों को डोरंडा से धुर्वा के पारस अस्पताल भेज दिया गया. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण मरीज गुरुवार को रात भर पारस अस्पताल में इलाज का इंतजार करता रहा, लेकिन वहां भी उस मरीज को इलाज नहीं मिल पाया. जिसके बाद मरीज के परिजन थक हारकर शुक्रवार सुबह फिर से रिम्स पहुंचे तो जरूर, लेकिन रिम्स के ट्रॉमा सेंटर में घंटो तक इलाज के लिए मरीज तरसता रहा पर उसे इलाज नसीब नहीं हो पाया और आखिर में उसकी मौत हो गई.

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रिम्स की व्यवस्था सुधारने की जरूरत

राजधानी का सबसे बड़ा अस्पताल रिम्स गरीब मरीजों के लिए इलाज का एकमात्र उम्मीद है. लेकिन यहां पर काम करने वाले कर्मचारी कोरोना के बहाने से मरीज का इलाज करने से साफ मना कर रहे हैं, जो कि निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसे में जरूरत है कि स्वास्थ्य विभाग रिम्स में कार्यरत ऐसे दोषी कर्मचारियों पर कार्रवाई करे और रिम्स की व्यवस्था सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए, ताकि राज्य के गरीब मरीजों और उनके परिजनों का भरोसा सरकार और रिम्स पर बना रहे.

रांची: राजधानी का सबसे बड़ा अस्पताल रिम्स अब जान गंवाने वाला अस्पताल बन गया है. क्योंकि यहां पर आने वाले मरीजों को जिंदगी नहीं, बल्कि मौत मिल रही है.

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कोडरमा से इलाज के लिए पहुंचे थे रिम्स
कोडरमा के रहने वाले मरीज रामकुमार यादव की 2 दिन पहले अचानक तबीयत काफी खराब हो गई. वह किडनी की बीमारी से ग्रसित थे. जिसके बाद परिजनों ने रामकुमार यादव की गंभीरता को देखते हुए रांची के किडनी क्लिनिक में भर्ती कराया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मेदांता अस्पताल भेज दिया.

व्यवस्था की मार
मेदांता अस्पताल में कुछ देर इलाज करने के बाद मरीज कोरोना पॉजिटिव पाया गया. जिसके बाद मेदांता अस्पताल के प्रबंधन ने मरीज के परिजनों को बताया कि अगर इस अस्पताल में इलाज कराना है तो उन्हें प्रति दिन 40 से 50 हजार रुपए का खर्च लगेगा. मेदांता अस्पताल की फीस ज्यादा होने की वजह से परिजनों ने मरीज को रिम्स लाने का फैसला किया. रिम्स लाने के बाद रिम्स की व्यवस्था की मार झेलते-झेलते परिजन परेशान हो गए.

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दौड़ते रहे मरीज के परिजन
मरीज कोरोना पॉजिटिव होने की वजह से परिजन सीधा ट्रॉमा सेंटर के कोविड वार्ड पहुंचे. लेकिन न्यू ट्रॉमा सेंटर में मरीज को गंभीर बताकर डॉक्टरों ने परिजनों को पुराना इमरजेंसी भेज दिया. पुराना इमरजेंसी पहुंचने के बाद मरीज के परिजनों को यह कहा गया कि इतना सीरियस मरीज का इलाज यहां पर नहीं हो सकता, इस लिए इसे न्यू ट्रॉमा सेंटर ही लेकर जाएं और परिजन वापस मरीज को न्यू ट्रॉमा सेंटर लेकर पहुंचे. लेकिन यहां आखिर तक एडमिट नहीं ही लिया गया.

आखिर में इलाज के अभाव में मौत
परिजन को रिम्स अस्पताल में जगह नहीं होने का हवाला देते हुए डॉक्टर ने डोरंडा भेज दिया. डोरंडा में भी मरीज को इलाज नहीं मिल पाया. जिसके बाद मरीज के परिजनों को डोरंडा से धुर्वा के पारस अस्पताल भेज दिया गया. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण मरीज गुरुवार को रात भर पारस अस्पताल में इलाज का इंतजार करता रहा, लेकिन वहां भी उस मरीज को इलाज नहीं मिल पाया. जिसके बाद मरीज के परिजन थक हारकर शुक्रवार सुबह फिर से रिम्स पहुंचे तो जरूर, लेकिन रिम्स के ट्रॉमा सेंटर में घंटो तक इलाज के लिए मरीज तरसता रहा पर उसे इलाज नसीब नहीं हो पाया और आखिर में उसकी मौत हो गई.

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रिम्स की व्यवस्था सुधारने की जरूरत

राजधानी का सबसे बड़ा अस्पताल रिम्स गरीब मरीजों के लिए इलाज का एकमात्र उम्मीद है. लेकिन यहां पर काम करने वाले कर्मचारी कोरोना के बहाने से मरीज का इलाज करने से साफ मना कर रहे हैं, जो कि निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसे में जरूरत है कि स्वास्थ्य विभाग रिम्स में कार्यरत ऐसे दोषी कर्मचारियों पर कार्रवाई करे और रिम्स की व्यवस्था सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए, ताकि राज्य के गरीब मरीजों और उनके परिजनों का भरोसा सरकार और रिम्स पर बना रहे.

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