रांची: पत्थलगड़ी करने के क्रम में जिन लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर मुकदमे दायर किए गए हैं, उन सभी दर्ज कांडों के प्रत्याहरण से संबंधित गृह विभाग के प्रस्तावित संकल्प प्रारूप को मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने स्वीकृति दे दी है. इस व्यवस्था से छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम में संशोधन का विरोध करने पर जिन लोगों के खिलाफ प्राथमिक की हुई थी उन्हें भी राहत मिलेगी. 29 दिसंबर 2019 को मंत्रिमंडल की बैठक में पत्थलगड़ी से जुड़े सभी दर्ज कांड को वापस लेने का निर्णय लिया गया था.
ये भी पढ़ें: एयरपोर्ट थाना क्षेत्र के टुंगरी में ग्रामीणों ने की पत्थलगड़ी, हालात संभालने के लिए फोर्स तैनात
जिला स्तरीय समिति बनी थी
पत्थलगड़ी को लेकर विभिन्न थानों में दर्ज मुकदमों को वापस लेने के सिलसिले में जिलों में त्रिस्तरीय समिति का गठन किया गया था. इस समिति में अध्यक्ष के रूप में उपायुक्त सह जिला दंडाधिकारी और सदस्य के रूप में पुलिस अधीक्षक और लोक अभियोजक को रखा गया था. इस सिलसिले में सरायकेला खरसावां, खूंटी, चाईबासा, दुमका और साहिबगंज से प्राप्त प्रतिवेदन के आलोक में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम में संशोधन का विरोध करने और पत्थलगड़ी करने से संबंधित मुकदमों को वापस लेने का निर्णय सरकार द्वारा लिया गया है. विभिन्न थानों में पत्थलगड़ी को लेकर 23 मुकदमे दर्ज हैं.
क्या है पत्थलगड़ी आंदोलन
झारखंड के कई आदिवासी इलाकों में ग्रामसभा में आदिवासी गोलबंद हुए और पत्थलगड़ी के माध्यम से स्वशासन की मांग करने लगे. ग्राम सभाएं कई किस्म का फरमान तक जारी करने लगीं. इनके अलावा कई गांवों में पुलिस वालों को घंटों बंधक बना लिए जाने की कई घटनाएं भी सामने आईं. खूंटी के कोचांग समेत छह गांवों में पत्थलगड़ी कर आदिवासियों ने अपनी कथित हुकूमत की हुंकार भरी थी.
क्या है पत्थलगड़ी
आदिवासी समुदाय और गांवों में विधि-विधान/संस्कार के साथ पत्थलगड़ी (बड़ा शिलालेख गाड़ने) की परंपरा पुरानी है. इनमें मौजा, सीमाना, ग्रामसभा और अधिकार की जानकारी रहती है. वंशावली, पुरखे और मरनी (मृत व्यक्ति) की याद संजोए रखने के लिए भी पत्थलगड़ी की जाती है. कई जगहों पर अंग्रेजों या दुश्मनों के खिलाफ लड़कर शहीद होने वाले वीर सूपतों के सम्मान में भी पत्थलगड़ी की जाती रही है.