रांची: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने हिरासत में मौत के एक मामले में मुआवजा नहीं दिए जाने पर झारखंड के मुख्य सचिव डीके तिवारी को शोकॉज किया है. वहीं, डीजीपी कमलनयन चौबे को भी निर्देश दिया है कि हिरासत में मौत के दोषी पुलिसकर्मियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई करें.
दोनों ही अधिकारियों को छह सप्ताह के भीतर संबंधित मामले में रिपोर्ट देने का निर्देश भी एनएचआरसी ने दिया है. एनएचआरसी के ज्वाइंट रजिस्ट्रार लॉ ने इस संबंध में मुख्य सचिव और डीजीपी से पत्राचार किया है.
क्या है मामला
12 सितंबर 2017 को साहिबगंज जिले के बड़हरा पुलिस ने अब्दुल जब्बार को गिरफ्तार किया गया था. आयोग को भेजे गए रिपोर्ट में बताया गया था कि बाइक चोरी के आरोप में अब्दुल जब्बार को दिन के 11.30 बजे थाना लाया गया था, जहां दिन के 12.30 बजे उसने थाने के एक कमरे में रस्सी के सहारे फांसी लगा ली. घटना के अगले ही दिन साहिबगंज के तात्कालिन एसपी ने एनएचआरसी को रिपोर्ट भेजा था, जिसमें पुलिसकर्मियों की लापरवाही का जिक्र था.
वहीं, आयोग को एक दूसरा पत्र भेजा गया था, जिसमें परिजनों ने पुलिस पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था. आयोग ने पूरे मामले में संज्ञान लिया. इसके बाद पाया गया कि पुलिस ने पूरे मामले में लापरवाही की. मृतक के मौत की जानकारी शाम तकरीबन छह बजे परिजनों को दी गई. वहीं, हिरासत में लिए गए व्यक्ति के पास अगर कोई पुलिसकर्मी होता तो खुदकुशी की वारदात नहीं होती.
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तीन लाख के मुआवजे का आदेश
एनएचआरसी ने इस मामले में मुख्य सचिव को आदेश दिया था कि झारखंड सरकार मृतक के परिजनों को तीन लाख का मुआवजा दे, लेकिन मुआवजा मृतक के परिजनों को नहीं मिला. ऐसे में आयोग ने मुख्य सचिव का शोकॉज करते हुए छह हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. वहीं, डीजीपी को लिखा गया है कि मृतक पुलिस की हिरासत में मरा है. ऐसे में उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए. जिनकी लापरवाही के कारण अब्दुल जब्बार की मौत हुई. आयोग ने पुलिसकर्मियों पर हुई कार्रवाई की एक्शन टेकन रिपोर्ट भी 7 फरवरी 2020 तक मांगा है.