धनबादः 10 साल से राष्ट्रीय पारा एथलेटिक्स चैंपियनशिप (National Para Athletics Championship) में देश का प्रतिनिधित्व करने वाला एथलीट आज दाने-दाने को मोहताज है. गरीबी और लाचारी का आलम ऐसा कि महज पांच हजार के लिए वो अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप (International Championship) से चूक गया. ना उसके पास पैसे थे और ना ही किसी ने उसकी मदद की.
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अजय कुमार पासवान दिव्यांग होने के बावजूद खेलकूद में अव्वल रहा और धीरे-धीरे वो एथलीट बन गया. अपने 10 साल के करियर में उन्होंने राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 100मी, 200मी और 400मी की दौड़ में कई मेडल (Medal) अपने नाम किए. झारखंड का नाम रौशन करने वाला राष्ट्रीय पारा एथलीट अजय कुमार पासवान (National Para Athlete Ajay Kumar Paswan) आज आर्थिक तंगी और सिस्टम के आगे बेबस है.
पारा राष्ट्रीय एथलीट दाने-दाने को मोहताज
दलित परिवार से आने वाला अजय बाघमारा प्रखंड अंतर्गत मालकेरा दक्षिण पंचायत के मालकेरा 4 नंबर निवासी यमुना पासवान का पुत्र है. पेट की आग बुझाने के लिए देश के लिए खेल कर जो मेडल हासिल किया है. आज वह विवश होकर उस मेडल तक को बेचने की ठान ली है.
भले सरकार ने खिलाड़ियों को मुकाम तक पहुंचाने, हरसंभव मदद करने, जीवन स्तर ऊंचा उठाने की सिर्फ बड़ी-बड़ी घोषणा की हो. लेकिन उनकी यह घोषणा धरातल पर इसके उलट ही दिखती है. राष्ट्रीय पारा एथलीट अजय पासवान इसका जीता जागता उदाहरण है. गरीबी रेखा और दलित समाज से आने के बावजूद इस परिवार को एक पीएम आवास तक नसीब नहीं हुआ.
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महज 5 हजार रुपये की वजह से अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप से चूके
अजय पासवान के समक्ष उस समय अजीबोगरीब स्थिति उत्पन्न हो गई, जब महज 5 हजार रुपया के कारण अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप (International Championship) में भाग नहीं ले सके. साल 2015 में अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप के लिए उनका चयन हुआ था. ये चैंपियनशिप बेलरूश में होना था. एसोसिएशन की ओर से चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए निजी खर्च पर जाने का फरमान जारी किया. किसी तरह अजय ने दौड़-भाग कर पासपोर्ट (Passport) बना लिया. लेकिन 5 हजार रुपये के लिए उसका वीजा (Visa) नहीं बन पाया. वो 5 हजार रुपये का ना तो इंतजाम कर पाया और ना ही किसी ने उसकी मदद की. इस वजह से अजय को एक बड़ी प्रतियोगिता से हाथ धोना पड़ा, जबकि उसे विश्वास था कि वो इस प्रतियोगिता में मेडल हासिल कर देश और प्रदेश का नाम रौशन करेगा.
अजय के पिता यमुना घर-घर पानी देकर अपना घर चलाते हैं. यमुना को एक बेटा और चार बेटियां हैं. बेटा दिव्यांग होने के बावजूद शुरू से ही खेलकूद में अव्वल रहा. इसके प्रतिभा को देख पिता यमुना पासवान ने उसे प्रोत्साहित किया. हर तरह का सहयोग मिलने से अजय आगे बढ़ता गया. पिता भी इसी कमाई में पेट की रोटी काट बेटा के लिए संसाधन की व्यवस्था करते रहे. लेकिन जैसे-जैसे सफलता मिलने लगी, जरूरतें भी बढ़ती गईं, इसके साथ ही घर में परेशानियां भी बढ़ती गईं. इसके बावजूद अजय को खेल से रोका नहीं गया.
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अजय के पिता यमुना घर-घर पानी देकर अपना घर चलाते हैं. लाचार अजय अब घर में बैठा-बैठा पिता के काम में हाथ बंटाता है. अजय की 4 बहनें हैं. अपने भाई अजय के लिए उसकी बहन ने भी सरकार से मदद की गुहार लगाई है. बहन का कहना है कि पिता का काम अब पहले की तरह नहीं चलता है. एक भाई थोड़ा-बहुत कमाता है, जिससे बड़ी मुश्किल से परिवार का भरण पोषण हो पाता है. बहन ने अजय के लिए सरकार से नौकरी देने की मांग की है. ताकि झारखंड को गौरव दिलाने वाला अजय भी सम्मान की जिंदगी जी सके और परिवार के हालात भी सुधार आ सके.