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झारखंड की धरती से शुरू हुआ था अंग्रेजों के खिलाफ पहला विद्रोह, राजपाट छोड़ इस वीर ने अंग्रेजों से लिया था लोहा - झारखंड में 1857 की लड़ाई

15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की दासता से मुक्त हो गया. इस दिन दुनिया की फलक पर भारत एक स्वतंत्र देश के रूप में उभरा. इस दिन हम अपने राष्ट्र गौरव तिरंगे को सम्मान तो देते ही हैं, साथ ही उन वीर स्वतंत्रता सेनानियों को भी याद करते हैं, जिनकी बदौलत हमें गुलामी से मुक्ति मिली. ऐसा कहा जाता है कि 1857 की क्रांति से पहसे झारखंड के उत्तरी छोटानागपुर में भी एक क्रांति हुई थी जिसके नायक थे ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव.

martyr Thakur Vishwanath Shahdev role in the battle of 1857 in jharkhand
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव
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Published : Aug 15, 2020, 6:02 AM IST

रांची: ऐसा कहा जाता है कि 1857 की क्रांति से पहसे झारखंड के उत्तरी छोटानागपुर में भी एक क्रांति हुई थी, जिसके नायक थे ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव. शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का जन्म 12 अगस्त 1817 को बड़का गढ़ की राजधानी सतरंजी में हुआ. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के पिता का नाम रघुनाथ शाह देव और माता का नाम वानेश्वरी कुंवर था. उस समय ठाकुर रघुनाथ शाहदेव 97 गांवों के मालिक थे. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा शाही शानो शौकत से हुआ. इसके साथ ही ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव युद्ध कला और राजकाज संभालने में भी निपुण थे. 1840 में रघुनाथ शाहदेव का का निधन हो गया, जिसके बाद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने राजपाट संभाला.

देखिए पूरी खबर

अंग्रेजों से लड़ने के लिए राजपाट से बनाई दूरी

राजपाट संभालने के बाद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को ऐसा लगा कि वो भले ही उस क्षेत्र के राजा है, लेकिन सारी शक्तियां अंग्रेजों के पास है और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने की ठानी. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव 1853 से ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने लगे. उन्होंने 1855 में ब्रिटिश सरकार के निर्देशों को मानने से साफ इंकार कर दिया और अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की घोषणा से अंग्रेज प्रशासन तिलमिला उठे. अंग्रेजी सेनानी दंड देने के लिए हटिया स्थित गढ़ पर हमला कर दिया और इस लड़ाई में ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की जीत हुई. उसके बाद से ही अंग्रेजों के खिलाफ लगातार ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने विरोध जारी रखा.

martyr Thakur Vishwanath Shahdev role in the battle of 1857 in jharkhand
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव
1857 में सिपाही विद्रोह

इसी के साथ 1857 में सिपाही विद्रोह शुरू हुआ. भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत इसी समय से मानी जाती है. पूरा देश सेनानियों और राष्ट्र भक्तों को भारत की रक्षा के लिए पुकार रही थी. ऐसे में झारखंड के शूरवीर भी अंग्रेजों के खिलाफ मैदान में उतर गए. इस विद्रोह का विस्तार चतरा, हजारीबाग, पलामू, रांची, चाईबासा और संथाल परगना में शुरू हो गया. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और उनके सेनापति पांडे गणपत राय का 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अतुलनीय माना जाता है.

martyr Thakur Vishwanath Shahdev role in the battle of 1857 in jharkhand
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव

ये भी पढे़ं: झारखंड सरकार का नया लोगो राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने किया लॉन्च, जानें विशेषताएं

16 अप्रैल 1858 को ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को फांसी

सन 1858 में जब ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव चतरा तालाब के पास अंग्रजों से युद्ध कर रहे थे, तभी धोखे से उन्हें घेर कर पकड़ लिया गया. इसके बाद 16 अप्रैल 1858 को ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को रांची जिला स्कूल के गेट के पास एक कदंब पेड़ की डाली से लटका कर फांसी दी गई और यह महायोद्धा सदा के लिए अमर हो गया. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी प्रवीर नाथ शाहदेव ने कहा कि भले ही हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं, लेकिन आज भी वह आजादी हमें नहीं मिली है और इसी सम्मान को शहीदों के परिवार को दिलाने के लिए शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव फाउंडेशन ट्रस्ट बनाया गया. इसके तहत 1857 के जितने भी शहीद के परिवार थे उन्हें खोजा गया और एक जगह लाया गया कि उन परिवारों को भी उचित सम्मान मिल सके.

रांची: ऐसा कहा जाता है कि 1857 की क्रांति से पहसे झारखंड के उत्तरी छोटानागपुर में भी एक क्रांति हुई थी, जिसके नायक थे ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव. शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का जन्म 12 अगस्त 1817 को बड़का गढ़ की राजधानी सतरंजी में हुआ. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के पिता का नाम रघुनाथ शाह देव और माता का नाम वानेश्वरी कुंवर था. उस समय ठाकुर रघुनाथ शाहदेव 97 गांवों के मालिक थे. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा शाही शानो शौकत से हुआ. इसके साथ ही ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव युद्ध कला और राजकाज संभालने में भी निपुण थे. 1840 में रघुनाथ शाहदेव का का निधन हो गया, जिसके बाद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने राजपाट संभाला.

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अंग्रेजों से लड़ने के लिए राजपाट से बनाई दूरी

राजपाट संभालने के बाद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को ऐसा लगा कि वो भले ही उस क्षेत्र के राजा है, लेकिन सारी शक्तियां अंग्रेजों के पास है और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने की ठानी. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव 1853 से ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने लगे. उन्होंने 1855 में ब्रिटिश सरकार के निर्देशों को मानने से साफ इंकार कर दिया और अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की घोषणा से अंग्रेज प्रशासन तिलमिला उठे. अंग्रेजी सेनानी दंड देने के लिए हटिया स्थित गढ़ पर हमला कर दिया और इस लड़ाई में ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की जीत हुई. उसके बाद से ही अंग्रेजों के खिलाफ लगातार ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने विरोध जारी रखा.

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ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव
1857 में सिपाही विद्रोह

इसी के साथ 1857 में सिपाही विद्रोह शुरू हुआ. भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत इसी समय से मानी जाती है. पूरा देश सेनानियों और राष्ट्र भक्तों को भारत की रक्षा के लिए पुकार रही थी. ऐसे में झारखंड के शूरवीर भी अंग्रेजों के खिलाफ मैदान में उतर गए. इस विद्रोह का विस्तार चतरा, हजारीबाग, पलामू, रांची, चाईबासा और संथाल परगना में शुरू हो गया. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और उनके सेनापति पांडे गणपत राय का 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अतुलनीय माना जाता है.

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ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव

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16 अप्रैल 1858 को ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को फांसी

सन 1858 में जब ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव चतरा तालाब के पास अंग्रजों से युद्ध कर रहे थे, तभी धोखे से उन्हें घेर कर पकड़ लिया गया. इसके बाद 16 अप्रैल 1858 को ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को रांची जिला स्कूल के गेट के पास एक कदंब पेड़ की डाली से लटका कर फांसी दी गई और यह महायोद्धा सदा के लिए अमर हो गया. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के प्रत्यक्ष उत्तराधिकारी प्रवीर नाथ शाहदेव ने कहा कि भले ही हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं, लेकिन आज भी वह आजादी हमें नहीं मिली है और इसी सम्मान को शहीदों के परिवार को दिलाने के लिए शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव फाउंडेशन ट्रस्ट बनाया गया. इसके तहत 1857 के जितने भी शहीद के परिवार थे उन्हें खोजा गया और एक जगह लाया गया कि उन परिवारों को भी उचित सम्मान मिल सके.

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