रांची: सनातन (हिंदू) धर्मावलंबियों के लिए पूर्णिमा का खास महत्व है. वैसे तो हर माह की पूर्णिमा पर लोग तमाम धार्मिक कार्य करते हैं. लेकिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा का खास महत्व है. अगहन माह यानी पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के साथ उनके स्वरूप श्रीकृष्ण की भी उपासना की जाती है. इसलिए अगहन पूर्णिमा या मार्गशीर्ष पूर्णिमा को सबसे अधिक पावन पूर्णिमा माना जाता है. जबकि आमतौर पर हर महीने पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इस साल मार्गशीर्ष पूर्णिमा 2021 दो दिन 18 दिसंबर और 19 दिसंबर को मनाई जा रही है.
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रांची के पंडित जितेंद्र महाराज बताते हैं कि अगहन मास की पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा को सबसे पवित्र पूर्णिमा माना जाता है. मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की पूजा विधि विधान के साथ पूजा करनी चाहिए. भक्तों को भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए धूप, दीप, नैवेद्य और जल का उपयोग करते हुए पूजा की शुरुआत करनी चाहिए. इससे भगवान विष्णु अपने भक्तों पर प्रसन्न होते हैं और उनकी हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं.
सूर्योदय के समय पूर्णिमा का स्नान किया जा रहा है
पंडित बताते हैं कि अगहन मास पूर्णिमा पर पूजा करने से लोगों को धन की प्राप्ति, मन की स्थिरता, समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता है. इस वर्ष मार्गशीर्ष की पूर्णिमा 2 दिन मनाई जा रही है, जो कि 18 दिसंबर की शाम से शुरू हो रहा है और 19 दिसंबर तक रहेगी. 19 दिसंबर को सूर्योदय के समय पूर्णिमा का स्नान किया जा रहा है. मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की कथा सुननी चाहिए. जो भक्त सत्यनारायण भगवान की कथा को खुद पढ़ते हैं उसे पुण्य मिलता है. आज के दिन भगवान नारायण की पूजा धूप, दीप, नैवेद्य, पंचामृत, स्नान, पुष्प, बेलपत्र, सिंदूर, चंदन से अवश्य करें.
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मार्गशीर्ष (अगहन) पूर्णिमा पर इन मंत्रों का करें उच्चारण
ॐ नमो: भगवते वासुदेवाय
ॐ नमो: नारायणाय
ॐ विष्णवे नमः
मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि शुभ मुहूर्त
की ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि चंद्रोदय 18 दिसंबर की शाम को होगा, जिसके बाद पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा. 19 दिसंबर को स्नान-दान करना शुभ रहेगा. इसका मुहूर्त सुबह 10 बजकर 05 मिनट तक था और सूर्योदय इसी तिथि यानी उदयातिथि में मार्गशीर्ष पूर्णिमा 19 दिसंबर को पड़ने से इस दिन ही स्नान पूजा आदि करनी चाहिए.
भारतीय कालगणना
दरअसल, भारतीय कालगणना में सेकेंड को भी कई हिस्सों में बांटा जाता है और उसके आधार पर समय का निर्धारण होता है. साथ ही भारतीय कालगणना में दिन की गणना सूर्योदय से अगले सूर्योदय के पहले तक के समय से होती है. इसलिए सूर्योदय के वक्त जो तिथि होती है, उसे उदयातिथि कहते हैं. इसी से कई बार जब कोई तिथि सूर्योदय के बाद या शाम को शुरू होती है तो अगले दिन उदयातिथि पर उसे मनाते हैं. हालांकि उस दिन कम समय के मुहूर्त तक उसकी अवधि होती है, फिर दूसरी तिथि शुरू हो जाती है.