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झारखंड में कॉर्निया ट्रांसप्लांट करने वाले डॉक्टरों की कमी, ट्रेनिंग और जागरुकता की कमी

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Published : Sep 19, 2021, 2:17 PM IST

Updated : Sep 19, 2021, 2:27 PM IST

झारखंड में नेत्रदान को लेकर जागरुकता की भारी कमी है. लोग जानकारी के अभाव में नेत्रदान करने से परहेज कर रहे हैं. कुछ चिकित्सकों ने इसके लिए चिकित्सा व्यवस्था में कमी को भी जिम्मेवार ठहराया है और इसे दूर करने की मांग की है.

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झारखंड में कॉर्निया ट्रांसप्लांट

रांची: लंबे समय से अंधेरे में जी रहे हर व्यक्ति की आंखों में रौशनी देने के लिए नेत्रदान बहुत जरूरी होता है. इसीलिए कहा जाता है कि जीते जी रक्तदान और जाते-जाते नेत्रदान जरूर करें, क्योंकि इससे बड़ा दान कुछ नहीं हो सकता. लेकिन झारखंड में इसको लेकर जागरुकता की भारी कमी है. स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जागरुकता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इसको लेकर लोगों के मन में कई शंकाएं मौजूद हैं, जिसको दूर करने की कोशिश की जा रही है.

ये भी पढ़ें- रिम्स में इलाजरत कैदी फरार, हत्या और अपहरण का था आरोपी

नेत्रदान को लेकर जागरुकता की कमी

झारखंड में नेत्रदान को लेकर कितनी जागरुकता है और इसको कैसे बढ़ाया जाय इसको लेकर जब राज्य के विभिन्न नेत्र रोग विशेषज्ञों से बात की गई तो अधिकांश डॉक्टरों ने इसको लेकर जागरुकता की कमी की बात कही है. वहीं कुछ डॉक्टरों ने इसके लिए कॉर्निया ट्रांसप्लांट करने वाले विशेषज्ञों की कमी को भी जिम्मेवार ठहराया है.

देखें वीडियो

परिजन नहीं करते सपोर्ट

इस बारे में धनबाद मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर रजनीकांत सहाय बताते हैं कि आज की तारीख में नेत्रदान को लेकर लोगों में चेतना नहीं है. लोगों को यह पता नहीं है कि नेत्रदान कब करना है और मृत्यु के बाद नेत्रदान करने से किसी की अंधेरी दुनिया रोशन हो सकती है. उन्होंने बताया कि कई बार मेडिकल कॉलेज में सड़क हादसे या अन्य दुर्घटना में आकस्मिक मौत के शिकार हुए लोगों के नेत्रदान के लिए जब उनके परिजन को कहा जाता है तो उनके परिजन सीधा मुकर जाते हैं. उन्होंने कहा कि परिजनों को ये पता नहीं होता है कि उनके एक फैसले से किसी को रौशनी मिल सकती है.

कॉर्निया ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं

पलामू मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इसके लिए झारखंड में सुविधाओं की कमी का हवाला दिया. उन्होंने बताया कि आज की तारीख में झारखंड में कॉर्निया प्रत्यारोपण को लेकर विशेष इंतजाम नहीं हैं. आज भी राज्य के सिर्फ तीन मेडिकल कॉलेज में ही कॉर्निया प्रत्यारोपण की सुविधा उपलब्ध है. डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार कहते हैं कि सिर्फ कॉर्निया प्रत्यारोपण की सुविधा की शुरुआत करने से नेत्रदान को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है. इसके लिए विभिन्न मेडिकल कॉलेज में कार्यरत चिकित्सकों को विशेष ट्रेनिंग देने की आवश्यकता है, क्योंकि आज भी रिम्स और अन्य मेडिकल कॉलेज में वरिष्ठ चिकित्सकों को छोड़कर अन्य डॉक्टरों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जानकारी नहीं है.

आई बैंक के निर्माण की मांग

वहीं राज्य में सबसे ज्यादा नेत्र ट्रांसप्लांट कर चुके रिम्स के नेत्र रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर राजीव गुप्ता बताते हैं कि आज की तारीख में लोग कॉर्निया प्रत्यारोपण को लेकर सजग नहीं हैं. कई ऐसे लोग हैं जो वर्षों से अंधेपन के शिकार हैं लेकिन उसके बावजूद उनके परिजन और वह खुद कॉर्निया प्रत्यारोपण कराने के लिए तैयार नहीं होते, क्योंकि जानकारी के अभाव में वह अपनी जिंदगी में अंधेरे को स्वीकार कर लेते हैं. राजीव गुप्ता ने स्वास्थ्य विभाग से राज्य के सभी जिला अस्पतालों में आई बैंक के निर्माण की मांग की है. ताकि प्रत्यारोपण के लिए सही समय पर मृत व्यक्ति का कॉर्निया निकाला जा सके. राज्य के कई नेत्र रोग विशेषज्ञों ने भी सभी जिलों में आई बैंक के निर्माण की मांग की. डॉक्टरों ने बताया कि किसी व्यक्ति की मौत के 6 घंटे के भीतर अगर कॉर्निया बाहर नहीं निकाला जाए तो फिर वह किसी उपयोग का नहीं रह जाता. इसीलिए जरूरी है कि जिला अस्पताल में कार्यरत नेत्र सर्जन को इसकी विशेष ट्रेनिंग दी जाए.

जागरुकता के लिए ट्रेनिंग कैंप की जरूरत

एमजीएम के नेत्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर एमएम जमाल बताते हैं कि कॉर्निया ट्रांसप्लांट के लिए सरकार को बीच-बीच में ट्रेनिंग कैंप चलाने की जरूरत है, ताकि राज्य के युवा चिकित्सकों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट करने के बारे में जानकारी दी जा सके. बता दें कि राज्य में फिलहाल रिम्स, धनबाद मेडिकल कॉलेज और जमशेदपुर मेडिकल कॉलेज में ट्रांसप्लांट होता है जो नाकाफी है. ऐसे में लोगों को जागरूक करने के साथ सुविधा बढ़ाने की भी जरूरत है. तभी बड़ी संख्या में लोगों के अंधेपन को दूर किया जा सकेगा.

रांची: लंबे समय से अंधेरे में जी रहे हर व्यक्ति की आंखों में रौशनी देने के लिए नेत्रदान बहुत जरूरी होता है. इसीलिए कहा जाता है कि जीते जी रक्तदान और जाते-जाते नेत्रदान जरूर करें, क्योंकि इससे बड़ा दान कुछ नहीं हो सकता. लेकिन झारखंड में इसको लेकर जागरुकता की भारी कमी है. स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जागरुकता बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इसको लेकर लोगों के मन में कई शंकाएं मौजूद हैं, जिसको दूर करने की कोशिश की जा रही है.

ये भी पढ़ें- रिम्स में इलाजरत कैदी फरार, हत्या और अपहरण का था आरोपी

नेत्रदान को लेकर जागरुकता की कमी

झारखंड में नेत्रदान को लेकर कितनी जागरुकता है और इसको कैसे बढ़ाया जाय इसको लेकर जब राज्य के विभिन्न नेत्र रोग विशेषज्ञों से बात की गई तो अधिकांश डॉक्टरों ने इसको लेकर जागरुकता की कमी की बात कही है. वहीं कुछ डॉक्टरों ने इसके लिए कॉर्निया ट्रांसप्लांट करने वाले विशेषज्ञों की कमी को भी जिम्मेवार ठहराया है.

देखें वीडियो

परिजन नहीं करते सपोर्ट

इस बारे में धनबाद मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर रजनीकांत सहाय बताते हैं कि आज की तारीख में नेत्रदान को लेकर लोगों में चेतना नहीं है. लोगों को यह पता नहीं है कि नेत्रदान कब करना है और मृत्यु के बाद नेत्रदान करने से किसी की अंधेरी दुनिया रोशन हो सकती है. उन्होंने बताया कि कई बार मेडिकल कॉलेज में सड़क हादसे या अन्य दुर्घटना में आकस्मिक मौत के शिकार हुए लोगों के नेत्रदान के लिए जब उनके परिजन को कहा जाता है तो उनके परिजन सीधा मुकर जाते हैं. उन्होंने कहा कि परिजनों को ये पता नहीं होता है कि उनके एक फैसले से किसी को रौशनी मिल सकती है.

कॉर्निया ट्रांसप्लांट की सुविधा नहीं

पलामू मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इसके लिए झारखंड में सुविधाओं की कमी का हवाला दिया. उन्होंने बताया कि आज की तारीख में झारखंड में कॉर्निया प्रत्यारोपण को लेकर विशेष इंतजाम नहीं हैं. आज भी राज्य के सिर्फ तीन मेडिकल कॉलेज में ही कॉर्निया प्रत्यारोपण की सुविधा उपलब्ध है. डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार कहते हैं कि सिर्फ कॉर्निया प्रत्यारोपण की सुविधा की शुरुआत करने से नेत्रदान को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है. इसके लिए विभिन्न मेडिकल कॉलेज में कार्यरत चिकित्सकों को विशेष ट्रेनिंग देने की आवश्यकता है, क्योंकि आज भी रिम्स और अन्य मेडिकल कॉलेज में वरिष्ठ चिकित्सकों को छोड़कर अन्य डॉक्टरों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जानकारी नहीं है.

आई बैंक के निर्माण की मांग

वहीं राज्य में सबसे ज्यादा नेत्र ट्रांसप्लांट कर चुके रिम्स के नेत्र रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर राजीव गुप्ता बताते हैं कि आज की तारीख में लोग कॉर्निया प्रत्यारोपण को लेकर सजग नहीं हैं. कई ऐसे लोग हैं जो वर्षों से अंधेपन के शिकार हैं लेकिन उसके बावजूद उनके परिजन और वह खुद कॉर्निया प्रत्यारोपण कराने के लिए तैयार नहीं होते, क्योंकि जानकारी के अभाव में वह अपनी जिंदगी में अंधेरे को स्वीकार कर लेते हैं. राजीव गुप्ता ने स्वास्थ्य विभाग से राज्य के सभी जिला अस्पतालों में आई बैंक के निर्माण की मांग की है. ताकि प्रत्यारोपण के लिए सही समय पर मृत व्यक्ति का कॉर्निया निकाला जा सके. राज्य के कई नेत्र रोग विशेषज्ञों ने भी सभी जिलों में आई बैंक के निर्माण की मांग की. डॉक्टरों ने बताया कि किसी व्यक्ति की मौत के 6 घंटे के भीतर अगर कॉर्निया बाहर नहीं निकाला जाए तो फिर वह किसी उपयोग का नहीं रह जाता. इसीलिए जरूरी है कि जिला अस्पताल में कार्यरत नेत्र सर्जन को इसकी विशेष ट्रेनिंग दी जाए.

जागरुकता के लिए ट्रेनिंग कैंप की जरूरत

एमजीएम के नेत्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर एमएम जमाल बताते हैं कि कॉर्निया ट्रांसप्लांट के लिए सरकार को बीच-बीच में ट्रेनिंग कैंप चलाने की जरूरत है, ताकि राज्य के युवा चिकित्सकों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट करने के बारे में जानकारी दी जा सके. बता दें कि राज्य में फिलहाल रिम्स, धनबाद मेडिकल कॉलेज और जमशेदपुर मेडिकल कॉलेज में ट्रांसप्लांट होता है जो नाकाफी है. ऐसे में लोगों को जागरूक करने के साथ सुविधा बढ़ाने की भी जरूरत है. तभी बड़ी संख्या में लोगों के अंधेपन को दूर किया जा सकेगा.

Last Updated : Sep 19, 2021, 2:27 PM IST
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