रांची: झारखंड की राजनीति में सोरेन परिवार का शुरू से ही दबदबा रहा है. झारखंड की राजनीति के केंद्र बिंदु में हमेशा से ही सोरेन परिवार रहा है. चाहे वह सत्ता में हो या फिर विपक्ष में. इस परिवार के साथ कई विवाद भी जुड़े हैं. चाहे वह ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में सदस्यता गंवाने का हो या फिर अपहरण और हत्या में संलिप्तता के लिए कारावास की सजा का. इस पूरी रिपोर्ट में जनिए सोरेन परिवार किन विवादों का सामना किया (controversies related to Soren family).
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सोरेन परिवार का विवादों से पुराना नाता रहा है. हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन को आदिवासियों को मसीहा माना जाता है. झारखंड के आदिवासियों को लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया. हालांकि उनकी जिंदगी से भी कई विवाद जुड़े हुए हैं. 28 नवंबर 2006 को दिल्ली की निचली अदालत ने शिबू सोरेन अपने ही सेक्रेटरी शशिनाथ झा को अगवा कर उसकी हत्या करने के मामले में दोषी करार दिया था. सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में कहा था कि 1993 में नरसिम्हा राव की सरकार को समर्थन के बदले उन्होंने पैसे लिए थे और उनके सेक्रेटरी शशिनाथ झा को गैर-कानूनी तरीके से किए गए सारे ट्रांजैक्शन की जानकारी थी. बताया जता है कि झा भी उस काले पैसे में अपना हिस्सा मांग रहे थे, जिसके चलते उनकी हत्या हुई. हालांकि 23 अगस्त 2007 को दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और शिबू सोरेन को इस मामले में बरी कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा.
1993 में नरसिम्हा राव की सरकार चल रही थी तब 28 जुलाई 1993 को बीजेपी ने नरसिम्हाराव के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई. माना जा रहा था कि सरकार निश्चित रूप से गिर जाएगी. लेकिन जब संसद में वोटिंग हुई तो जेएमएम के सांसदों ने सरकार के पक्ष में वोट किया और कांग्रेस की सरकार बच गई. हालांकि इसके बाद नरसिम्हाराव सरकार पर अपनी सरकार बचाने ले लिए सांसदों को घूस देने का आरोप लगा. 1995 की में अटल बिहारी वाजपेयी ने इस घूसकांड का संसद के भीतर खुलासा किया. जेएमएम के सांसद शैलेंद्र महतो ने स्वीकार किया कि शिबू सोरेन समेत उनकी पार्टी के सांसदों ने कांग्रेस की सरकार को बचाने के लिए 50-50 लाख रुपए की घूस ली थी. हालांकि बाद में न्यायिक जांच में कोई भी दोषी नहीं पाया गया.
भारत के लोकपाल ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन को आय से अधिक संपत्ति मामले को लेकर नोटिस जारी किया था. शिबू सोरेन और उनके परिजनों के नाम पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने की शिकायत दो वर्ष पूर्व 5 अगस्त 2020 को ही दायर की गयी थी. इसमें कहा गया था कि सोरेन और उनके परिजनों ने झारखंड के सरकारी खजाने का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार से अर्जित राशि से अनेक संपत्तियां बनायी हैं. इनमें कई बेनामी आवासीय और कमर्शियल परिसंपत्तियां भी हैं.
झारखंड में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का यह कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले शिबू सोरेन बनाम दयानंद सहाय के केस में सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई 2001 को शिबू सोरेन की राज्यसभा सदस्यता को अमान्य करार दे दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि शिबू सोरेन सांसद रहते हुए जैक यानी झारखंड एरिया अटोनॉमस काउंसिल के चेयरमैन के पद पर थे, जो ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के दायरे में था. हालांकि बाद में साल 2002 में शिबू सोरेन दोबारा चुनाव जीत गये थे.
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ खनन पट्टा और शेल कंपनियों से जुड़े मामले में दायर जनहित याचिका को खारिज करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर की गई है. प्रार्थी मस्तराम मीणा ने याचिका दायर की है. दायर याचिका में उन्होंने कहा है कि शिव शंकर शर्मा की दो याचिकाएं जिसकी संख्या 4290 ऑफ 2021 और 727 ऑफ 2022 की मेंटेनेबिलिटी मामले पर 12 अगस्त को शीर्ष अदालत में सुनवाई होनी है.
ताजा मामले में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर रांची के अनगड़ा में पत्थर खदान लीज अपने नाम पर लेने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल से लिखित शिकायत की है. राज्यपाल रमेश बैस को ज्ञापन सौंपते हुए भाजपा शिष्टमंडल ने हेमंत सोरेन पर मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अपने नाम से रांची के अनगड़ा मौजा थाना नंबर 26, खाता नंबर 187 प्लॉट नंबर 482 में पत्थर खनन पट्टा लेने का आरोप लगाया. जिसके बाद राजभवन ने भारत निर्वाचन आयोग से मंतव्य मांगा था. तत्पश्चात भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्य सचिव को चिठ्ठी भेजकर रिपोर्ट मंगवाई. मुख्य सचिव की रिपोर्ट मिलने के बाद भारत निर्वाचन आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नोटिस भेजकर खनन पट्टा मामले में सुनवाई शुरू की.