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नरक भोग रहे पूर्वजों को ऐसे होती है स्वर्ग प्राप्ति, गया सिर-गया कूप वेदी की ये है पौराणिक मान्यता

गया कूप वेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध करने से प्रेतों का मोक्ष होता हैं एवं गया निमित्तक श्राद्ध करने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता हैं. इस वेदी में एक कूप है, जिसे गया सुर की नाभि कहा जाता है. यहां पितरों से प्रेत योनि से मुक्ति मिलता है.

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Published : Sep 23, 2019, 9:40 AM IST

गया: मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के 11वें दिन गया सिर और गया कूप नामक दो तीर्थों में पिंडदान होता है. गया सिर की ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से नरक भोग रहे पूर्वजों को भी स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, गया कूप के बारे में कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से जो स्वर्गस्थ पितर हैं, उन्हें मोक्ष को प्राप्त होता है. दोनों तीर्थों की पौराणिक कथा भी प्रचलित है.

गया सिर और गया कूप से खास रिपोर्ट

कहा जाता है कि विशाल पुरी में पूर्व काल में विशाल नामक एक राजा निसंतान थे. उन्होंने एक ब्राह्मण से पूछा कि हे! श्रेष्ठ ब्राह्मण हमारे कुल को पुत्र कैसे प्राप्त होगा. ब्राह्मण ने कहा गया श्राद्ध से होगा. विशाल राजा ने भी गया सिर में पिंडदान किया और अब पुत्रवान हो गए. पिंडदान करने के पश्चात जब उन्होंने आकाश की ओर देखा, तो राजा को श्वेत, कृष्ण और रक्त के ये तीन पुरूष दिखाई दिए.

know the importance of 11th day of pitru paksha
गया कूप वेदी

ऐसे मिली राजा के पूर्वजों को स्वर्ग में जगह
विशाल ने पूछा आप लोग कौन हैं. उनमें से एक श्वेत वर्ण ने कहा मैं श्वेत वर्ण का तुम्हारा पिता हूं. इंद्रलोक से यहां आया हूं. लाल वर्ण वाले मेरे पिता हैं यानी तुम्हारे पितामाह, जिन्होंने ब्राह्मण हत्या रूप का पाप किया है और एक कृष्ण वर्ण वाले मेरे पितामाह जिन्होंने ऋषियों को मारा है. ये सब अविचि नामक नरक में पड़े हुए थे. तुम्हारे पिंडदान करने से इनकी मुक्ति हो गई है. इन्हें ही साथ लेकर जा रहा हूं.

  • गया सिर पर शमी के पत्ते के बराबर कंद, मूल, फल अथवा किसी पदार्थ से दिया हुआ पिंड पितरों को स्वर्ग पहुंचा देता है.
    know the importance of 11th day of pitru paksha
    इनसे मिलती है प्रेत योनि से मुक्ति

ऐसे करें गया कूप में पिंडदान
गया कूप वेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध करने से प्रेतों का मोक्ष होता हैं एवं गया निमित्तक श्राद्ध करने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता हैं. इस वेदी में एक कूप है, जिसे गया सुर की नाभि कहा जाता है. यहां पितरों से प्रेत योनि से मुक्ति मिलता है. नारियल में पितर को आह्वान कर कर्मकांड का विधि विधान करके नारियल को उस कूप में छोड़ दिया जाता है.

इस वेदी पर पिंडदानी पर प्रेतों का साया आ जाता है. ऐसे में वेदी के पास कूप के निकट दीवारों में लोहे का सिक्का रखा रहता है. उससे बांध दिया जाता है. उसके बाद वहां के पंडित मन्त्रों से प्रेत से मुक्ति दिलाते हैं. झूलन बाबा बताते हैं जैसे मनुष्य कई प्रकार के होते हैं. उसी तरह प्रेत भी कई प्रकार का होता है, जो जल्दी नहीं मानता है.

  • गया सिर वेदी पर प्रतिनिधि पिंडदान किया जाता है. किसी अक्षम और असहाय का पिंडदान प्रतिनिधि बनकर इस वेदी पर पिंडदान कर पूर्वजों को मोक्ष दिला सकते हैं.

गया: मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के 11वें दिन गया सिर और गया कूप नामक दो तीर्थों में पिंडदान होता है. गया सिर की ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से नरक भोग रहे पूर्वजों को भी स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, गया कूप के बारे में कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से जो स्वर्गस्थ पितर हैं, उन्हें मोक्ष को प्राप्त होता है. दोनों तीर्थों की पौराणिक कथा भी प्रचलित है.

गया सिर और गया कूप से खास रिपोर्ट

कहा जाता है कि विशाल पुरी में पूर्व काल में विशाल नामक एक राजा निसंतान थे. उन्होंने एक ब्राह्मण से पूछा कि हे! श्रेष्ठ ब्राह्मण हमारे कुल को पुत्र कैसे प्राप्त होगा. ब्राह्मण ने कहा गया श्राद्ध से होगा. विशाल राजा ने भी गया सिर में पिंडदान किया और अब पुत्रवान हो गए. पिंडदान करने के पश्चात जब उन्होंने आकाश की ओर देखा, तो राजा को श्वेत, कृष्ण और रक्त के ये तीन पुरूष दिखाई दिए.

know the importance of 11th day of pitru paksha
गया कूप वेदी

ऐसे मिली राजा के पूर्वजों को स्वर्ग में जगह
विशाल ने पूछा आप लोग कौन हैं. उनमें से एक श्वेत वर्ण ने कहा मैं श्वेत वर्ण का तुम्हारा पिता हूं. इंद्रलोक से यहां आया हूं. लाल वर्ण वाले मेरे पिता हैं यानी तुम्हारे पितामाह, जिन्होंने ब्राह्मण हत्या रूप का पाप किया है और एक कृष्ण वर्ण वाले मेरे पितामाह जिन्होंने ऋषियों को मारा है. ये सब अविचि नामक नरक में पड़े हुए थे. तुम्हारे पिंडदान करने से इनकी मुक्ति हो गई है. इन्हें ही साथ लेकर जा रहा हूं.

  • गया सिर पर शमी के पत्ते के बराबर कंद, मूल, फल अथवा किसी पदार्थ से दिया हुआ पिंड पितरों को स्वर्ग पहुंचा देता है.
    know the importance of 11th day of pitru paksha
    इनसे मिलती है प्रेत योनि से मुक्ति

ऐसे करें गया कूप में पिंडदान
गया कूप वेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध करने से प्रेतों का मोक्ष होता हैं एवं गया निमित्तक श्राद्ध करने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता हैं. इस वेदी में एक कूप है, जिसे गया सुर की नाभि कहा जाता है. यहां पितरों से प्रेत योनि से मुक्ति मिलता है. नारियल में पितर को आह्वान कर कर्मकांड का विधि विधान करके नारियल को उस कूप में छोड़ दिया जाता है.

इस वेदी पर पिंडदानी पर प्रेतों का साया आ जाता है. ऐसे में वेदी के पास कूप के निकट दीवारों में लोहे का सिक्का रखा रहता है. उससे बांध दिया जाता है. उसके बाद वहां के पंडित मन्त्रों से प्रेत से मुक्ति दिलाते हैं. झूलन बाबा बताते हैं जैसे मनुष्य कई प्रकार के होते हैं. उसी तरह प्रेत भी कई प्रकार का होता है, जो जल्दी नहीं मानता है.

  • गया सिर वेदी पर प्रतिनिधि पिंडदान किया जाता है. किसी अक्षम और असहाय का पिंडदान प्रतिनिधि बनकर इस वेदी पर पिंडदान कर पूर्वजों को मोक्ष दिला सकते हैं.
Intro:गयाजी में ग्यारहवें दिन गया सिर और गया कूप नामक दो तीर्थों में पिंडदान होता है गया सिर पर जो जिस किसी के नाम से पिंडदान करता है वह यदि नर्क में है तो स्वर्ग में चला जाता है और जो स्वर्गस्थ है पित्र मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। गया सिर पर शमी के पत्ते के बराबर कंद, मूल,फल अथवा किसी पदार्थ से दिया हुआ पिंड पितरों को स्वर्ग पहुंचा देता है।


Body:विशाल पुरी में पूर्व काल में विशाल नामक एक राजा ने निसंतान थे उन्होंने एक ब्राह्मण से पूछा कि हे श्रेष्ठ ब्राह्मण हमारे कुल में पुत्र कैसे प्राप्त होगा। ब्राह्मण ने कहा गया श्राद्ध से होगा।विशाल राजा ने भी गयाशिर में पिंडदान किया और अब पुत्र वान हो गया। पिंडदान करने के पश्चात जब आकाश की ओर देखा तो राजा को श्वेत,कृष्ण और रक्त के ये तीन पुरूष दिखाई दिए। विशाल ने पूछा आप लोग कौन हैं उनमें से एक श्वेत वर्ण वाला बोला मैं श्वेत वर्ण का तुम्हारा पीता हूं इंद्रलोक से यहां आया हूं, लाल वर्ण वाले मेरे पिता था तुम्हारे पितामाह है और जिन्होंने ब्राह्मण हत्या रूप का पाप किया है और एक कृष्ण वर्ण वाले मेरे पितामाह जिन्होंने ऋषियों को मारा है। ये सब अविचि नामक नरक में पड़े हुए थे। तुम्हारे पिंडदान करने से इनकी मुक्ति हो गई।

गया कूप वेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध करने से प्रेतों का मोक्ष होता हैं एवं गया निमित्तक श्राद्ध करने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता हैं। इस वेदी एक कूप जिसे गया सुर का नाभि कहा जाता है। यहां पितरों से प्रेत योनि से मुक्ति मिलता है। नारियल में पितर को आह्वान करके कर्मकांड का विधि विधान करके नारियल को उस कूप में छोड़ दिया जाता है।

इस वेदी पर पिंडदानी पर प्रेतों का साया आ जाता है। ऐसे में वेदी के पास कूप के निकट दीवारों में लोहे का सिक्कड़ रखा रहता है। उससे बांध दिया जाता है। उसके बाद वहां के पंडित द्वारा मन्त्रो से प्रेत से मुक्ति दिलाया जाता है। झूलन बाबा बताते हैं जैसे मनुष्य कई प्रकार के होते हैं उसी तरह प्रेत भी कई प्रकार का होता है जो जल्दी नही मानता है।

गया सिर वेदी पर प्रतिनिधि पिंडदान किया जाता है किसी अक्षम और असहाय का पिंडदान प्रतिनिधि बनकर इस वेदी पर करके पितरों को मोक्ष दिला सकते हैं।


Conclusion:बाइट- झूलन पांडेय ,गया कुप वेदी के पंडित
बाइट- राजाचार्य , पुरोहित
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