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12 साल में तीन बार बदल गया एक योजना का नाम, झारखंड में किशोरियों के नाम पर होती रही है राजनीति - SCHEMES IN NAME OF WOMEN

झारखंड में पिछले 12 सालों में एक ही योजना का नाम तीन बार बदल दिया गया. क्या है वह योजना जानिए इस रिपोर्ट में.

SCHEMES IN NAME OF WOMEN
प्रतीकात्मक तस्वीर (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Feb 14, 2025, 6:22 PM IST

रांची: झारखंड में पिछले 12 सालों में एक ही योजना का नाम तीन बार बदल दिया गया. आम तौर पर झारखंड में आधी आबादी का जिक्र होते ही सिर्फ एक योजना का नाम सबकी जुबान पर आ जाता है, वह है ‘मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना‘. कहा जाता है कि नवंबर, 2024 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों पर इस योजना का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है. क्योंकि इसके लाभुकों को हर माह 2500 रुपए मिलते हैं. दिसंबर 2024 तक लाभुकों की संख्या 56 लाख से ज्यादा थी.

मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना का लाभ 18 साल से 50 साल तक की युवती और महिलाओं को मिलता है. मतलब पहला क्राइटेरिया है ‘वोटर होना’. सीधे तौर पर कहें तो यह योजना महिला वोटर को प्रभावित करती है. लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि झारखंड में किशोरियों के नाम पर भी राजनीति हो रही है. एक परंपरा सी बन गई है. सरकारें अपनी सुविधा के हिसाब से योजना का नाम और फॉर्मेट बदलकर पेश करती आई हैं.

अर्जुन मुंडा सरकार लाई थी मुख्यमंत्री लक्ष्मी लाडली योजना

झारखंड में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवार की बच्चियों की चिंता सबसे पहले तत्कालीन अर्जुन मुंडा सरकार ने की थी. उन्होंने 11 सितंबर 2010 से शुरू हुए अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान नवंबर 2011 में मुख्यमंत्री लक्ष्मी लाडली योजना को लॉन्च किया था. इसके तहत बच्ची के नाम से पोस्ट ऑफिस में खाता खुलवाना और जन्म से पांच वर्ष तक हर साल 6000 रुपए देने का प्रावधान था.

बच्ची के छठी कक्षा में प्रवेश पर 2000 रुपए और नौवीं में प्रवेश पर एकमुश्त 4000 रुपए का भुगतान देना था. 11वीं में पहुंचने पर 7500 रुपए दिया जा रहा था. यही नहीं 12वीं तक की पढ़ाई के दौरान 200 रुपए प्रतिमाह छात्रवृत्ति देने का भी प्रावधान था. बच्ची के 12वीं की परीक्षा में शामिल होने और 21 साल की आयु पूरी करने पर एकमुश्त 1 लाख 08 हजार 600 रुपए देने का प्रावधान था. तत्कालीन अर्जुन मुंडा सरकार में झामुमो भी शामिल था. तब हेमंत सोरेन उस सरकार में उप-मुख्यमंत्री थे.

रघुवर कार्यकाल में लक्ष्मी लाडली बन गई थी सुकन्या योजना

2014 में सत्ता की कमान रघुवर दास के हाथ में आते ही इस योजना का नाम बदल गया. राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर जनवरी 2019 में तत्कालीन सीएम रघुवर दास ने अर्जुन मुंडा सरकार की मुख्यमंत्री लक्ष्मी लाडली योजना का नाम बदलकर मुख्यमंत्री सुकन्या योजना नाम दे दिया. क्राइटेरिया में भी कुछ बदलाव कर दिया गया. रघुवर सरकार की सुकन्या योजना के तहत बच्ची के जन्म पर पांच हजार, पहली कक्षा में दाखिला पर 5 हजार, 5वीं कक्षा पास करने पर 5 हजार, 8वीं कक्षा पास करने पर 5 हजार, 10वीं कक्षा पास करने पर 5 हजार रुपए और 12वीं पास करने पर 5 हजार रुपए देने का प्रावधान था. यानी जन्म से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी करने पर 30 हजार रुपए देने थे. इसके साथ ही 18 साल की आयु पूरी करने पर एकमुश्त 10 हजार रुपए देने का नियम था. यह ऐसी योजना थी जिसका तत्कालीन रघुवर सरकार ने जोर-शोर से प्रचार प्रसार किया था.

हेमंत कार्यकाल में सुकन्या बन गई सावित्री बाई फुले समृद्धि योजना

रघुवर सरकार की विदाई के कुछ वर्ष के भीतर सुकन्या योजना का नाम सावित्री बाई फुले किशोरी समृद्धि योजना हो गया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 11 अक्टूबर 2022 को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर देश पर प्रथम शिक्षिका रहीं सावित्रीबाई फुले के नाम पर किशोरियों के लिए योजना का शुभारंभ कर दिया. लाभ लेने के तौर तरीके भी बदल दिए गये. रघुवर कार्यकाल में जन्म से ही बच्ची के खाते में पैसे ट्रांसफर करने की बात थी, जिसे बदलकर 8वीं में दाखिला लेते ही 2500 रुपए देने का नियम बना दिया गया. इसके बाद 9वीं कक्षा में नामांकन पर 2500 रुपए 10वीं में नामांकन पर 5000 रुपए, 11वीं में नामांकन पर 5000 रुपए 12वीं में नामांकन पर 5000 रुपए देने का प्रावधान कर दिया गया. बच्ची के 18 या 19 साल की आयु पूरा करते ही एकमुश्त 20,000 रु. दिए जा रहे हैं.

तीनों योजनाओं का लब्बो लुआब एक ही है कि बच्ची के लिए पढ़ाई का रास्ता खुल जाए, परिवार पर पढ़ाई के खर्च का बोझ ना पड़े, बच्ची को भविष्य का सफर तय करने के लिए प्रेरित किया जा सके ताकि बच्ची बाल विवाह से भी बच जाए और समय पर धूमधाम से शादी भी हो जाए. फिर भी अलग-अलग सरकारों के सामने नाम और फॉर्मेट में बदलाव कर परोसा जा रहा है. ऐसा काम कौन कर रहा है, यह समझना मुश्किल नहीं है. आश्चर्य की बात है कि एक ही योजना को अलग-अलग नाम और फॉर्मेट बदलकर पेश करने के सवाल पर महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग के अफसर चुप्पी साध लेते हैं.

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रांची: झारखंड में पिछले 12 सालों में एक ही योजना का नाम तीन बार बदल दिया गया. आम तौर पर झारखंड में आधी आबादी का जिक्र होते ही सिर्फ एक योजना का नाम सबकी जुबान पर आ जाता है, वह है ‘मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना‘. कहा जाता है कि नवंबर, 2024 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों पर इस योजना का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है. क्योंकि इसके लाभुकों को हर माह 2500 रुपए मिलते हैं. दिसंबर 2024 तक लाभुकों की संख्या 56 लाख से ज्यादा थी.

मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना का लाभ 18 साल से 50 साल तक की युवती और महिलाओं को मिलता है. मतलब पहला क्राइटेरिया है ‘वोटर होना’. सीधे तौर पर कहें तो यह योजना महिला वोटर को प्रभावित करती है. लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि झारखंड में किशोरियों के नाम पर भी राजनीति हो रही है. एक परंपरा सी बन गई है. सरकारें अपनी सुविधा के हिसाब से योजना का नाम और फॉर्मेट बदलकर पेश करती आई हैं.

अर्जुन मुंडा सरकार लाई थी मुख्यमंत्री लक्ष्मी लाडली योजना

झारखंड में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवार की बच्चियों की चिंता सबसे पहले तत्कालीन अर्जुन मुंडा सरकार ने की थी. उन्होंने 11 सितंबर 2010 से शुरू हुए अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान नवंबर 2011 में मुख्यमंत्री लक्ष्मी लाडली योजना को लॉन्च किया था. इसके तहत बच्ची के नाम से पोस्ट ऑफिस में खाता खुलवाना और जन्म से पांच वर्ष तक हर साल 6000 रुपए देने का प्रावधान था.

बच्ची के छठी कक्षा में प्रवेश पर 2000 रुपए और नौवीं में प्रवेश पर एकमुश्त 4000 रुपए का भुगतान देना था. 11वीं में पहुंचने पर 7500 रुपए दिया जा रहा था. यही नहीं 12वीं तक की पढ़ाई के दौरान 200 रुपए प्रतिमाह छात्रवृत्ति देने का भी प्रावधान था. बच्ची के 12वीं की परीक्षा में शामिल होने और 21 साल की आयु पूरी करने पर एकमुश्त 1 लाख 08 हजार 600 रुपए देने का प्रावधान था. तत्कालीन अर्जुन मुंडा सरकार में झामुमो भी शामिल था. तब हेमंत सोरेन उस सरकार में उप-मुख्यमंत्री थे.

रघुवर कार्यकाल में लक्ष्मी लाडली बन गई थी सुकन्या योजना

2014 में सत्ता की कमान रघुवर दास के हाथ में आते ही इस योजना का नाम बदल गया. राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर जनवरी 2019 में तत्कालीन सीएम रघुवर दास ने अर्जुन मुंडा सरकार की मुख्यमंत्री लक्ष्मी लाडली योजना का नाम बदलकर मुख्यमंत्री सुकन्या योजना नाम दे दिया. क्राइटेरिया में भी कुछ बदलाव कर दिया गया. रघुवर सरकार की सुकन्या योजना के तहत बच्ची के जन्म पर पांच हजार, पहली कक्षा में दाखिला पर 5 हजार, 5वीं कक्षा पास करने पर 5 हजार, 8वीं कक्षा पास करने पर 5 हजार, 10वीं कक्षा पास करने पर 5 हजार रुपए और 12वीं पास करने पर 5 हजार रुपए देने का प्रावधान था. यानी जन्म से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी करने पर 30 हजार रुपए देने थे. इसके साथ ही 18 साल की आयु पूरी करने पर एकमुश्त 10 हजार रुपए देने का नियम था. यह ऐसी योजना थी जिसका तत्कालीन रघुवर सरकार ने जोर-शोर से प्रचार प्रसार किया था.

हेमंत कार्यकाल में सुकन्या बन गई सावित्री बाई फुले समृद्धि योजना

रघुवर सरकार की विदाई के कुछ वर्ष के भीतर सुकन्या योजना का नाम सावित्री बाई फुले किशोरी समृद्धि योजना हो गया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 11 अक्टूबर 2022 को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर देश पर प्रथम शिक्षिका रहीं सावित्रीबाई फुले के नाम पर किशोरियों के लिए योजना का शुभारंभ कर दिया. लाभ लेने के तौर तरीके भी बदल दिए गये. रघुवर कार्यकाल में जन्म से ही बच्ची के खाते में पैसे ट्रांसफर करने की बात थी, जिसे बदलकर 8वीं में दाखिला लेते ही 2500 रुपए देने का नियम बना दिया गया. इसके बाद 9वीं कक्षा में नामांकन पर 2500 रुपए 10वीं में नामांकन पर 5000 रुपए, 11वीं में नामांकन पर 5000 रुपए 12वीं में नामांकन पर 5000 रुपए देने का प्रावधान कर दिया गया. बच्ची के 18 या 19 साल की आयु पूरा करते ही एकमुश्त 20,000 रु. दिए जा रहे हैं.

तीनों योजनाओं का लब्बो लुआब एक ही है कि बच्ची के लिए पढ़ाई का रास्ता खुल जाए, परिवार पर पढ़ाई के खर्च का बोझ ना पड़े, बच्ची को भविष्य का सफर तय करने के लिए प्रेरित किया जा सके ताकि बच्ची बाल विवाह से भी बच जाए और समय पर धूमधाम से शादी भी हो जाए. फिर भी अलग-अलग सरकारों के सामने नाम और फॉर्मेट में बदलाव कर परोसा जा रहा है. ऐसा काम कौन कर रहा है, यह समझना मुश्किल नहीं है. आश्चर्य की बात है कि एक ही योजना को अलग-अलग नाम और फॉर्मेट बदलकर पेश करने के सवाल पर महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग के अफसर चुप्पी साध लेते हैं.

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