रांची: लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा (Chhath Puja) का आज दूसरा दिन है. खरना के दिन दिनभर छठ व्रती निर्जला उपवास करती हैं. खरना के महाप्रसाद में खीर, फल और अन्य खाद्य सामग्री का भोग शाम में छठी मैया को लगाकर छठ व्रती इसे ग्रहण करती हैं. छठ व्रतियों के पूजा के बाद प्रसाद वितरित किया जाता है जो देर रात तक चलता है. ईटीवी भारत के संवाददाता ने छठ व्रतियों से बातचीत की. जिसमें उन्होंने व्रत को लेकर कई बातें बताईं.
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शुद्धता और पवित्रता का पर्व छठ के अवसर पर खरना का खास महत्व है. सूर्योदयकालीन और अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य के दिन से पहले खरना मनाया जाता है. खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण. इसे लोहंडा भी कहा जाता है. खरना के दिन छठ पूजा का विशेष प्रसाद बनाने की परंपरा रही है. इस वर्ष भी छठ व्रती बड़े ही उत्साह और खुशी के साथ छठ महापर्व के अवसर पर खरना का प्रसाद बनाती हैं. माना जाता है कि जो भी छठ व्रती इस अवसर पर नियमों का पालन करती हैं. उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है.
छठ व्रती रखती हैं 36 घंटे का उपवास
नहाए-खाय के एक दिन बाद खरना होता है. जिस दिन छठ व्रती सुबह स्नान ध्यान कर पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं. इस दिन महिलाएं और छठ व्रती सुबह स्नान कर साफ वस्त्र धारण करती हैं. व्रती नाक से माथे के मांग तक सिंदूर लगाती हैं. खरना के प्रसाद को ग्रहण करने के बाद ही व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. मान्यता यह है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी यानी छठी मैया का आगमन हो जाता है. खरना के दिन व्रती दिनभर व्रत रखती हैं और शाम के समय लकड़ी के चूल्हे पर चावल और गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद तैयार करती हैं. सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करती हैं. उसके बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है.