रांची: राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी खड़ा करने के मुद्दे पर जेएमएम-कांग्रेस के बीच उठा विवाद फिलहाल शांत होता नहीं दिख रहा है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी खड़ा किए जाने से नाराज कांग्रेस ने आज दिनभर अपने विधायक और सीनियर लीडर के साथ रायशुमारी की. इस दौरान विधायक और पार्टी नेताओं ने कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे को अपने विचारों से अवगत कराया और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में राज्य में चल रही सरकार में कांग्रेस की हो रही बदनामी के नफा नुकसान से अवगत कराया.
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कांग्रेस के कई नेताओं ने राज्यसभा चुनाव में झामुमो के एकतरफा प्रत्याशी खड़ा किए जाने को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का अपमान बताया है. कांग्रेस प्रभारी के समक्ष अधिकांश विधायक और नेताओं ने इसे गंभीरता से लेते हुए गठबंधन पर पुर्नविचार करने का आग्रह किया है. कांग्रेस प्रभारी के सामने विधायक अनूप सिंह और प्रदीप यादव को छोड़कर बाकी सभी विधायकों ने बातें रखीं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुबोधकांत सहाय, पूर्व मंत्री के एन त्रिपाठी, सांसद गीता कोड़ा, पूर्व मंत्री बंधु तिर्की, पूर्व विधायक सुखदेव भगत ने भी अपनी राय से अविनाश पांडे को अवगत कराया.
कांग्रेस कोटे के मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव, आलमगीर आलम, बन्ना गुप्ता और बादल पत्रलेख ने कांग्रेस प्रभारी के सामने अलग-अलग राय रखी. विधायक इरफान अंसारी, दीपिका सिंह पांडे, पूर्णिमा सिंह सहित कई विधायकों ने कांग्रेस कोटे के मंत्रियों को इस्तीफा देकर सरकार से बाहर होने की भी बात कही. हालांकि कांग्रेस भवन में विधायक और पार्टी के सीनियर नेताओं से राय शुमारी के बाद प्रभारी अविनाश पांडे ने कहा कि विधायक की नाराजगी अपने क्षेत्र की समस्या और कुछ अन्य मुद्दों को लेकर है. कांग्रेस ने राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी संख्या बल नहीं होने की वजह से नहीं उतारा है. अविनाश पांडे ने कहा कि संगठन के कार्यक्रमों को लेकर भी विधायक से चर्चा हुई है.
इधर, कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने कहा कि सरकार और संगठन दोनों में पहली प्राथमिकता संगठन है जिसके बल पर हम सरकार के मंत्री बने हैं इसलिए विधायक की जो भी शिकायत है उसे दूर करना भी संगठन का काम है और वह किया जाएगा. आलमगीर आलम ने कहा कि संगठन की मजबूती को लेकर चर्चा की गई है और सरकार से समन्वय बनाकर आगे काम किया जाएगा. उन्होंने सरकार को लेकर चल रही बातों को सीरे से खारिज किया है.
बहरहाल कांग्रेस के बड़े नेता भले ही अपने नेताओं की नाराजगी के मुद्दे अपनी जुबान नहीं खोल रहे हों, मगर जिस तरह से दोनों दलों में खटास बढ़ी है उससे साफ लग रहा है कि महागठबंधन में ऑल इज वेल नहीं है. जिसका नतीजा आनेवाले दिनों में देखने को मिल सकता है.