रांचीः केंद्रीय निर्वाचन आयोग के दिये एक निर्देश के बाद झारखंड में राजनीतिक घमासान जारी है. भारतीय जनता पार्टी ने जहां निर्वाचन आयोग को संवैधानिक संस्था बताते हुए उसके द्वारा दिये फैसले का पालन करने की मांग सरकार से की है तो सत्ताधारी दल कांग्रेस और झामुमो ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग अपने कार्य क्षेत्र से बाहर जाकर फैसला दे रही है जो ठीक नहीं है.
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा यह स्थापित परंपरा रही है कि जब चुनावी प्रक्रिया शुरू होती है तब आयोग की भूमिका शुरू होती है. लेकिन अब बार-बार आयोग ऐसा काम कर रहा है जो संवैधानिक परंपरा के खिलाफ है. राजीव रंजन ने कहा कि सरकार कानूनविदों से राय लेकर अगला कदम उठाए. कांग्रेस नेता ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि आयोग के कार्यशैली पर बहस शुरू हो.
वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग के फैसले को लेकर पार्टी ने सरकार को अपनी इच्छा से अवगत करा दिया है. झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि निर्वाचन आयोग भले ही संवैधानिक संस्था है पर वह न्यायालय थोड़े न है. उन्होंने कहा कि जब आयोग इस तरह का फैसला देने लगेगा तो हाई कोर्ट-सुप्रीम कोर्ट और CAT का क्या रोल होगा. सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि सभी संवैधानिक संस्थाओं का अपना अपना कार्य है. अगर मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लगा होता तो और बात होती पर अभी इस तरह का फैसला कई सवाल खड़ा करता है.
सरकार संवैधानिक संस्था का करे सम्मान- भाजपा
भाजपा विधायक और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने कहा कि संवैधानिक संस्था निर्वाचन आयोग के द्वारा चुनाव से ही विधायक सांसद का निर्वाचन होता है. ऐसे में उसके आदेश का पालन करना जरूरी है.
क्या कहते हैं कानूनविद
भारत निर्वाचन आयोग के देवघर डीसी मंजूनाथ भजंत्री को हटाने के फैसले को मानने की राज्य सरकार और कार्यपालिका की बाध्यता बताते हुए झारखंड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता राजीव कुमार कहते हैं कि चूंकि मामला उस समय का है, जब राज्य में चुनावी प्राक्रिया चल रही थी, भले ही आयोग का फैसला अभी आया है. ऐसे में निर्वाचन आयोग का अधिकार है कि वह दंडात्मक कार्रवाई का आदेश दे सकता है और उसको मानने के लिए कार्यपालिका बाध्य है.
बता दें कि देवघर डीसी मंजूनाथ भजंत्री के आदेश पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ अलग अलग थानों में FIR दर्ज कराए गए थे. वो भी मधुपुर उपचुनाव के 6 महीने के बाद. इसे लेकर बीजेपी ने एक ज्ञापन निर्वाचन आयोग को सौंपा था. इस मामले पर भारत निर्वाचन आयोग ने सुनवाई के बाद देवघर डीसी को पद से हटाने और भविष्य में उन्हें निर्वाचन कार्यों से दूर रखने का आदेश दिया है. इसके साथ ही राज्य सरकार के मुख्य सचिव को यह भी निर्देश दिया है कि बिना आयोग की सहमति के उन्हें कहीं भी नियुक्त नहीं किया जाय.