रांची: राजधानी में आए दिन जमीन विवाद के मामले सुर्खियों में रहते हैं. अधिकारी पर जमीन विवाद से संबंधित आरोप-प्रत्यारोप लगते ही रहते हैं. ऐसे ही रांची के पुनदाग मौजा के खाता संख्या 383 की जमीन से संबंधित एक मामले में झारखंड हाई कोर्ट ने रांची डीसी और नगरी सीओ के आदेश को निरस्त कर दिया है. अदालत ने यह माना कि जिला प्रशासन यह साबित नहीं कर सका कि जमीन सरकारी है.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जिला प्रशासन ने जमीन को सरकारी बताकर अतिक्रमण मुक्त करने का जो आदेश दिया था वह उचित नहीं प्रतीत होता है. इसलिए रांची डीसी के आदेश को निरस्त किया गया है. हालांकि, कोर्ट ने राज्य सरकार को यह छूट दी है कि वे इस जमीन पर दावे के लिए सिविल सूट दायर करे.
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झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश राजेश शंकर की अदालत में इस विवाद से संबंधित मामले पर सुनवाई हुई अदालत में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा अदालत को जानकारी दी गई कि यह जमीन सरकारी नहीं है. यह रैयती जमीन है. इसे जानबूझकर विवादित बनाया जा रहा है. उन्होंने कुछ साक्ष्य दिखाते हुए कहा कि रैयत केदारनाथ सिंह पिछले 37 वर्षों से अधिक समय से बिना बाधा और शांतिपूर्ण दखल कवच के साथ इस जमीन पर रहते आ रहे हैं. उनका रजिस्टर्ड सेल डीड है. वह जमीन की जमाबंदी कायम है. यह रैयती जमीन है. यह सरकारी जमीन नहीं है. जिला प्रशासन ने बिना उनका पक्ष सुने ही उस जमीन को सरकारी बताते हुए उस पर निर्माण को अवैध करते हुए उसे हटाने का आदेश दिया है जो कि गलत है. इसलिए जिला प्रशासन द्वारा दिए गए आदेश को निरस्त कर दिया जाए.
अदालत ने प्रार्थी के पक्ष को सुनने के बाद सरकार के अधिवक्ता से उनका पक्ष सुना. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने जिला प्रशासन के आदेश को निरस्त कर दिया. नगरी अंचल के पुनदाग मौजा के खाता संख्या 383 की 25 डिसमिल जमीन को रांची डीसी और नगड़ी सीओ ने सरकारी जमीन बताते हुए उस पर जो निर्माण है उसे अवैध ठहराते हुए उसे अतिक्रमण मुक्त करने का आदेश दिया. उसी आदेश को रश्मि कुमारी ने झारखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी उसी याचिका पर सुनने के उपरांत अदालत ने यह आदेश दिया है.