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जड़ी-बूटी से भरा है झारखंड का जंगल, साग-सब्जियों को औषधि के रूप में लोग करते हैं इस्तेमाल

झारखंड के हाट बाजारों में कुछ आदिवासी औषधीय गुणों से भरपूर साग सब्जियों को जड़ी-बूटी बनाकर बेचते हैं. इन बूटियों का इस्तेमाल करने वालों का दावा है कि इससे डायबिटीज और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां नियंत्रण में रहती हैं.

Jharkhand  forest is full of herbs
साग सब्जियां बेचते हुई महिला
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Published : Jan 17, 2020, 11:23 PM IST

Updated : Jan 17, 2020, 11:30 PM IST

रांची: झारखंड का जंगल जड़ी-बूटी से भरा है. गांव और जंगलों में ऐसे बहुत से पेड़ पौधे पाए जाते हैं जो औषधि के रूप में काम आते हैं. उन पौधों की जानकारी सबसे ज्यादा गांव और जंगल में रहने वाले आदिवासियों को होती है. आदिवासी, औषधीय पौधे के बारे में बेहतर तरीके से जानते हैं और इनका इस्तेमाल भी दवा के रूप में करते हैं. कई तरह की जड़ी बूटी बनाकर हाट बाजारों में बेचते हैं.

देखें पूरी खबर

छोटी-छोटी पोटलियों में रखी गई सूखी पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर हैं. इन सूखे साग और औषधियों का नाम थोड़ा सा सुनकर अटपटा जरूर लगेगा और यह सिर्फ झारखंड के बाजार हाट में ही उपलब्ध हो पाता है. आदिवासी इन सूखे सागों को औषधि के रूप में इस्तेमाल करते हैं.

स्थानीय भाषा में सागों के कई है नाम
बेंग साग, सनई फूल, चाकोड साग, शकरकंद साग, चना साग, कटाई ऐसे साग हैं जो सिर्फ बीमारियां दूर ही नहीं करती, बल्कि बीमारियों को लोगों के आसपास तक नहीं भटकने देती. वही जंगलों में मिलने वाले चिरैता, बालम खीरा, जैसी औषधि शरीर के ब्लड को भी रिफाइन करता है.

बाजार में सूखे साग बेच रही महिला का कहना है कि यह साग दवा के रूप में काम करता है, इसमें विटामिन डी भरपूर मात्रा में रहती है. इसके साथ ही ब्लड प्रेशर, डायबिटीज जैसी बीमारी को अपने आसपास आने तक नहीं देती है. वहीं, यह साग खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होता है.

बाजार में औषधि खरीदने पहुंचे बुजुर्ग का कहना है कि सदियों से हमारे पूर्वज इन्हीं साग सब्जियों को खाकर तमाम बीमारियों से निजात पाते थे, लेकिन अब समय धीरे-धीरे बदलता जा रहा है और लोग डॉक्टरों पर आश्रित हो गए हैं. आज भी इन सब्जियों को इस्तेमाल किया जाए तो लोगों को शुगर, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी नहीं होगी.

ये भी देखें- केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ जेपीसीसी का कार्यक्रम, 23, 26 और 30 जनवरी को राज्यभर में आयोजन

वहीं झारखंड में कई ऐसे साग सब्जी है जिसे जड़ी-बूटी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन यह धीरे-धीरे लुप्त होता चला जा रहा है और इसका वजह है की जंगलों को काटकर शहरीकरण की ओर लोग बढ़ रहे हैं.

रांची: झारखंड का जंगल जड़ी-बूटी से भरा है. गांव और जंगलों में ऐसे बहुत से पेड़ पौधे पाए जाते हैं जो औषधि के रूप में काम आते हैं. उन पौधों की जानकारी सबसे ज्यादा गांव और जंगल में रहने वाले आदिवासियों को होती है. आदिवासी, औषधीय पौधे के बारे में बेहतर तरीके से जानते हैं और इनका इस्तेमाल भी दवा के रूप में करते हैं. कई तरह की जड़ी बूटी बनाकर हाट बाजारों में बेचते हैं.

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छोटी-छोटी पोटलियों में रखी गई सूखी पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर हैं. इन सूखे साग और औषधियों का नाम थोड़ा सा सुनकर अटपटा जरूर लगेगा और यह सिर्फ झारखंड के बाजार हाट में ही उपलब्ध हो पाता है. आदिवासी इन सूखे सागों को औषधि के रूप में इस्तेमाल करते हैं.

स्थानीय भाषा में सागों के कई है नाम
बेंग साग, सनई फूल, चाकोड साग, शकरकंद साग, चना साग, कटाई ऐसे साग हैं जो सिर्फ बीमारियां दूर ही नहीं करती, बल्कि बीमारियों को लोगों के आसपास तक नहीं भटकने देती. वही जंगलों में मिलने वाले चिरैता, बालम खीरा, जैसी औषधि शरीर के ब्लड को भी रिफाइन करता है.

बाजार में सूखे साग बेच रही महिला का कहना है कि यह साग दवा के रूप में काम करता है, इसमें विटामिन डी भरपूर मात्रा में रहती है. इसके साथ ही ब्लड प्रेशर, डायबिटीज जैसी बीमारी को अपने आसपास आने तक नहीं देती है. वहीं, यह साग खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होता है.

बाजार में औषधि खरीदने पहुंचे बुजुर्ग का कहना है कि सदियों से हमारे पूर्वज इन्हीं साग सब्जियों को खाकर तमाम बीमारियों से निजात पाते थे, लेकिन अब समय धीरे-धीरे बदलता जा रहा है और लोग डॉक्टरों पर आश्रित हो गए हैं. आज भी इन सब्जियों को इस्तेमाल किया जाए तो लोगों को शुगर, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी नहीं होगी.

ये भी देखें- केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ जेपीसीसी का कार्यक्रम, 23, 26 और 30 जनवरी को राज्यभर में आयोजन

वहीं झारखंड में कई ऐसे साग सब्जी है जिसे जड़ी-बूटी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन यह धीरे-धीरे लुप्त होता चला जा रहा है और इसका वजह है की जंगलों को काटकर शहरीकरण की ओर लोग बढ़ रहे हैं.

Intro:रांची///jh_ran_live u_tribal_herb_pkg_jh10015

बाइट---राधा देवी साग बेच रही महिला
बाइट---सुमरा मुंडा पुरूष
बाइट--श्रीचंद नायक पुरूष


विसुअल live से गई है....



समय के साथ लोगों की जीवनशैली बदल रही है. खानपान का तौर तरीका बदल रहा है. नतीजतन, शुगर और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी आम हो गई है. यही दो ऐसी बीमारियां है जो अन्य बड़ी बीमारियों को जन्म देती हैं. आदिवासी बहुल झारखंड के लोगों ने सदियों पहले इन 2 बीमारियों से निपटने का रास्ता कुछ विशेष तरह की साग सब्जियों में ढूंढ निकाला था. झारखंड के हाट बाजारों में कुछ आदिवासी इन औषधीय गुणों से भरपूर साग सब्जियों को जड़ी बूटी बनाकर बेचते हैं. इन बूटियों का इस्तेमाल करने वालों का दावा है कि इससे शुगर और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां नियंत्रण में रहती हैं.


Body:छोटी-छोटी पोटलियों में रखी गई सूखी पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर हैं. इन सूखे साग और औषधियों का नाम थोड़ा सा आपको सुनकर अटपटा जरूर लगेगा । और यह सिर्फ झारखंड के बाजार हाट नहीं उपलब्ध हो पाता है स्थानीय भाषा में इन सूखे सागो को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है बेंग साग,सनई फूल, चाकोड साग, शकरकंद साग, चना साग,कटाई ऐसे साथ हैं जो सिर्फ बीमारियां दूर ही नहीं करती बल्कि बीमारियों को अपने आसपास तक नहीं भटकने देती,वही जंगलों में मिलने वाले चिरैता, बालम खीरा, जैसे औषधि शरीर के ब्लड को भी रिफाइन करता है

बाजार में सूखे साग बेच रही महिला की माने तो यह साग दावा के रूप में काम करता है इसमें विटामिन डी भरपूर मात्रा में रहता है इसके साथ ही ब्लड प्रेशर शुगर जैसी बीमारी को अपने आसपास तक नहीं भटकने देता है इसको बनाने का सरल तरीका है चावल बनाने के बाद जो बचा हुआ माल बज जाता है उसी में मिर्चा लहसुन टमाटर डालकर सुखा साग को बनाया जाता है खाने में इतना स्वादिष्ट होता है की एक बार इसे खा लेंगे तो वह वह करते नही थकेंगे.... वहीं की माने तो झारखंड में कई ऐसे साग सब्जी है जिसे जड़ी-बूटी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन यह धीरे-धीरे लुप्त होता चला जा रहा है और इसका वजह है की जंगलों को काटकर शहरीकरण की ओर लोग बढ़ रहे हैं।


वहीं बाजार में औषधि खरीदने पहुंचे बुजुर्ग की माने तो कहना है कि सदियों से हमारे पूर्वज इन्हीं सात सब्जियों को खाकर तमाम बीमारियों से निजात पाते थे लेकिन अब समय धीरे-धीरे बदल जा चला गया है और लोग डॉक्टरों पर आश्रित हो गए हैं लेकिन आज भी इन सब्जियों को इस्तेमाल किया जाए तो लोगों को शुगर ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी नहीं होगी।


Conclusion:झारखंड के गांव एवं जंगलों में ऐसे बहुत से पेड़ पौधे पाए जाते हैं जो औषधि के रूप में काम आते हैं उन पौधों की जानकारी सबसे ज्यादा गांव और जंगल में रहने वाले आदिवासियों को होती है यह हर एक पेड़ को पहचान सकते हैं और बता सकते हैं कि कौन सी पौधे किस रोग के लिए प्रयोग किया जा सकता है आदिवासी औषधीय पौधे के बारे में बेहतर तरीके से जाते हैं और इनकी इस्तेमाल भी दवा के रूप में करते हैं।
Last Updated : Jan 17, 2020, 11:30 PM IST
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