रांची: झारखंड में कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत जिस मोहल्ले से हुई थी वह अब पूरी तरह से संक्रमण मुक्त माना जा रहा है. राजधानी रांची के रिहायशी समझे जाने वाले महात्मा गांधी पथ के पीछे पड़ने वाले हिंदपीढ़ी इलाके में सबसे पहला कोरोना संक्रमण का मामला सामने आया था. 31 मार्च को तबलीगी जमात से लौटी एक महिला में सबसे पहले संक्रमण पाया गया. जिसके बाद उसके बाद जांच का सिलसिला शुरू हुआ तो संक्रमण के मामले बढ़ते चले गए.
शहर का प्राचीनतम सरना स्थल
हालांकि, सरकारी आंकड़ों में अब यह इलाका संक्रमण मुक्त है. पिछले तीन हफ्ते से इस इलाके में एक भी कोरोना पॉजिटिव केस सामने नहीं आया है. घनी आबादी और कई मोहल्लों को खुद में समेटे हुए है रांची का हिंदपीढ़ी. हिंदपीढ़ी घनी आबादी वाला इलाका है, यहां लगभग 70000 की आबादी है. अलग-अलग मोहल्लों में बंटा हुआ यह इलाका पुराने लोगों के अनुसार मुंडारी शब्द इंदी पीढ़ी से हिंदपीढ़ी हुआ है. अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाले इस इलाके में शहर का प्राचीनतम सरना स्थल भी स्थित है.
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हिंदपीढ़ी जाने के कई रास्ते
शहरीकरण के दृष्टिकोण से आगे चलकर इस इलाके की आबादी घनी होती गई. शहर के मेन रोड से इस इलाके में जाने के छह अलग-अलग एंट्री पॉइंट हैं. राजधानी रांची की चौहद्दी को अगर नापें तो मेन रोड के पीपी कंपाउंड से होकर पहला रास्ता हिंदपीढ़ी की ओर जाता है. पीपी कंपाउंड में ही गुरु नानक स्कूल को उस इलाके के लिए कंट्रोल रूम बनाया गया था. मेन रोड से फिरायालाल चौक की तरफ बढ़ने पर पीपी कंपाउंड के रास्ते को मिलाकर छह अलग-अलग एंट्री पॉइंट हैं जो हिंदपीढ़ी के विभिन्न मोहल्लों में जाकर मिलते हैं.
हिंदपीढ़ी जिन इलाकों को को खुद में समेटे हुए है उनमें मुजाहिद नगर, निजाम नगर, नूर नगर, सेंट्रल स्ट्रीट, मल्लाह टोली, बंगाली मोहल्ला, हरिजन टोली और स्ट्रीट नंबर 1, 2, 3 समेत खेत मोहल्ला शामिल है. इसके अलावा नाला रोड और लाह फैक्ट्री रोड जैसी कुछ प्रमुख सड़के हैं जो इस इलाके में अवस्थित हैं. सबसे बड़ी बात है कि शहर के बीचों-बीच बसे इस इलाके में दिहाड़ी मजदूर से लेकर शिक्षाविद, कलाकार और इंजीनियर रहते हैं. इतना ही नहीं राजधानी रांची समेत अलग-अलग जिलों में भी हिंदपीढ़ी के बैंड की धुन ही बारात में सुनाई पड़ती है.
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मुकम्मल व्यवस्था नहीं
वहीं, कुछ चर्चित नामों की चर्चा करें तो हुसैन कच्छी का नाम सबसे पहले आता है, जिन्हें रांची का इनसाइक्लोपीडिया बताया जाता है. हिंदपीढ़ी उर्दू के मशहूर शायर सिद्दीक मुजीबी का भी घर रहा है. इलाके में पहली सड़क पूर्व मंत्री राम रतन राम ने बनाई थी. अब यह युवा कलाकार सना परवीन का भी पता है. हैरत की बात यह कि इस इलाके में न तो शिक्षा की कोई मजबूत व्यवस्था और न हीं चिकित्सा की कोई मुकम्मल व्यवस्था है. लगभग डेढ़ महीने से अधिक तक के लॉकडाउन में बंद रहे इस इलाके में चार बच्चों ने मां की गर्भ में अपना दम तोड़ दिया.
क्या कहते हैं निवासी और नगर निकाय की मुखिया
हिंदपीढ़ी के अजय सर्राफ ने कहा कि ऐसा दिन कभी देखने को नहीं मिला कि कभी इतने दिन तक पूरा इलाका सीलबंद रहा हो. उन्होंने बताया कि कई वर्षों से वो यहां रह रहे हैं. बड़ी परिस्थियों में भी ज्यादा से ज्यादा चार-पांच दिन तक बंदी हुई है. यह पहला मौका है जब हिंदपीढ़ी के लोग इतने लंबे समय तक फंसे रहें. उन्होंने कहा कि दरअसल लोग बीमारी को समझ नहीं पाए. सरकार की नाकामी की वजह से इतने दिनों तक यहां के लोगों को समस्याएं झेलनी पड़ी.
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'जिस रफ्तार से जांच होनी चाहिए थी वह भी नहीं हुई'
इधर, रांची नगर निगम की मेयर आशा लाकड़ा ने कहा कि हिंदपीढ़ी को एक बार में पूरा नहीं खोलना चाहिए था. उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन से डिटेल मांगी गई थी. इस बाबत में पत्र भी लिखा गया था और पूरे इलाके में हर व्यक्ति की जांच कराने के बाद ही लोगों को संतुष्ट कर खोलना चाहिए था. मेयर ने यह भी कहा कि जिस रफ्तार से जांच होनी चाहिए थी वह भी नहीं हो पाया.
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क्या कहते हैं आंकड़े
आंकड़ों पर गौर करें तो हिंदपीढ़ी में 65 पॉजिटिव केस आए. अप्रैल महीने में उस इलाके में 3600 लोगों के सैंपल की जांच की गई. वहीं मई में 364 लोगों की जांच हुई है. इसके अलावे बड़ी संख्या में लोगों की स्क्रीनिंग भी हुई. लगभग डेढ़ महीने तक हिंदपीढ़ी के लोग घरों में कैद रहे.