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झारखंड में जूनियर सिविल जज का पद संभालेंगी रूबी, कहा- मेहनत लाई रंग

झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली पानीपत की एक बिटिया झारखंड में जूनियर सिविल जज का पद संभालने वाली हैं. रूबी की कहानी बेहद भावुक और प्रेरणा देने वाली है. सुनिए रूबी की संघर्ष की कहानी खुद उन्हीं की जुबानी.

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जूनियर सिविल जज रूबी
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Published : Feb 15, 2020, 10:39 AM IST

पानीपत: चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है, आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन की लाइनें पानीपत की झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली रूबी पर सटीक बैठती है. गुरबत में पली-बढ़ी रूबी ने झारखंड सिविल जज परीक्षा में 52 वीं रैंक हासिल कर यह कीर्तिमान स्थापित किया.

देखें पूरी खबर

कच्चे घर में देखा पक्का सपना

पानीपत के जीटी रोड पर ही अनाजमंडी के पास कुछ कच्चे घर (झुग्गी) हैं. इन्हीं कुछ झुग्गी झोपड़ियों में से एक में रहता है रूबी का परिवार. घरों में इस्तेमाल हो चुके फटे-पुराने कपड़ों को वो इकट्ठा करते हैं, जिनसे धागा बनाया जा सकता है, लेकिन रूबी बचपन से ही एक सपना बुनती आई थी, रूबी के सिर से कुछ साल पहले पिता का साया भी उठ चुका था. इन सब के बावजूद उसकी कहानी अब दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई है.

...जब दो वक्त की रोटी भी मुहाल थी

चार बहनों में सबसे छोटी रूबी ने दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाना, जीवन की सबसे बड़ी बाधा बताया. उनका कहना है कि वालिद अल्लाउद्दीन की 2004 में असामयिक मौत के बाद अम्मी जाहिदा बेगम ने हम पांच भाई-बहनों को बड़ा किया. मां ने तंगी झेलकर उसकी हर ख्वाहिश पूरी की. रूबी का कहना है कि भाई मोहम्मद रफी ने हमेशा हौसला बढ़ाया.

फुटपाथ पर बैठकर की परीक्षा की तैयारी

रूबी ने अंग्रेजी संकाय में एमए किया. संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा भी दी, पर सफल नहीं हुई. दिल्ली विश्वविद्यालय से साल 2016 में एलएलबी की पढ़ाई पूरी की. साल 2018 में उत्तर प्रदेश और हरियाणा न्यायिक सेवा की परीक्षा में बैठी, पर सफलता अभी दूर थी. वो पढ़-लिखकर अफसर बनना चाहती थी. मगर रूबी एक अवैध कॉलोनी में रहती थी. यही वजह थी कि उसका घर बार-बार उजाड़ा गया. एक बार नहीं, 16-17 बार. 27 अप्रैल, 2019 को उनकी झुग्गी में आग लग गई. और सड़क पर आने की नौबत आई. परेशानियां इतनी बढ़ीं कि एक माह बाद 27 मई को झारखंड न्यायिक सेवा की परीक्षा थी और फुटपाथ पर बैठकर पढ़ना पड़ा.

रिजल्ट देख रो पड़ी रूबी

इन सब परेशानियों को सहते हुए रूबी ने प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा पास करने के बाद 10 जनवरी 2020 को साक्षात्कार दिया. इस बार रूबी के मन में सफलता की आस थी. गुरुवार सुबह जब रूबी सोकर उठी और वाट्सएप देखा तो रिजल्ट का मैसेज देखकर एक बार आंखें नम हो गईं.

सपने पूरे हुए, अब दिन बदल जाएंगे- रूबी

आज भी रूबी का परिवार एक टिन-छप्पर के घर में गुजारा कर रहा है. कबाड़ का काम करने वाले उसके भाई ने रूबी को लेकर जो सपने देखे थे वह अब पूरे हो गए हैं. रूबी की मां जाहिदा बेगम, भाई, भाभी सभी का खुशी का ठिकाना नही है. परिवार ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह सब अल्लाह की रहमत है.

ये भी पढ़ें- शहीद विजय सोरेंग की शहादत को एक साल पूरे, जिंदगी काट रहे बूढ़े मां-बाप घोषणा के सहारे

रूबी का कहना है कि मुस्लिम समुदाय में लड़कियों को शिक्षा से दूर रखा जाता है. बड़े होने पर उन्हें बुरके में रखा जाता है. मगर रूबी के पिता अलाउद्दीन का शुरू से ही सपना था कि वह उन्हें पढ़ा लिखा कर एक अच्छा इंसान बनाए. पिता के गुजर जाने के बाद मां और भाई ने मिलकर उनके सपने को पूरा करते हुए उसे अच्छी तालीम हासिल करवाई. पानीपत के एसडी कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद रूबी दिल्ली आईएएस की पढ़ाई करने निकल गई. मगर इसी बीच उनकी पूरी बस्ती में भी आग लगा दी गई. आर्थिक संकट की वजह से उन्हें आईएस की तैयारी अधूरी ही छोड़नी पड़ी. बाद में दिल्ली में ही उन्होंने एलएलबी की डिग्री हासिल की और उसके बाद स्थिति संभलने पर फिर से परीक्षाओं की तैयारियों में जुट गई.

रूबी का लक्ष्य था न्यायपालिका में अपर पोस्ट के लिए परीक्षा देना और जज बनकर पानीपत ही नहीं बल्कि हरियाणा का नाम रौशन कर महिलाओं के लिए आदर्श बनना. रूबी का कहना है कि वह अपने पूरे कार्य को पूरी निष्ठा के साथ करेगी.

पानीपत: चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है, आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन की लाइनें पानीपत की झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली रूबी पर सटीक बैठती है. गुरबत में पली-बढ़ी रूबी ने झारखंड सिविल जज परीक्षा में 52 वीं रैंक हासिल कर यह कीर्तिमान स्थापित किया.

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कच्चे घर में देखा पक्का सपना

पानीपत के जीटी रोड पर ही अनाजमंडी के पास कुछ कच्चे घर (झुग्गी) हैं. इन्हीं कुछ झुग्गी झोपड़ियों में से एक में रहता है रूबी का परिवार. घरों में इस्तेमाल हो चुके फटे-पुराने कपड़ों को वो इकट्ठा करते हैं, जिनसे धागा बनाया जा सकता है, लेकिन रूबी बचपन से ही एक सपना बुनती आई थी, रूबी के सिर से कुछ साल पहले पिता का साया भी उठ चुका था. इन सब के बावजूद उसकी कहानी अब दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई है.

...जब दो वक्त की रोटी भी मुहाल थी

चार बहनों में सबसे छोटी रूबी ने दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाना, जीवन की सबसे बड़ी बाधा बताया. उनका कहना है कि वालिद अल्लाउद्दीन की 2004 में असामयिक मौत के बाद अम्मी जाहिदा बेगम ने हम पांच भाई-बहनों को बड़ा किया. मां ने तंगी झेलकर उसकी हर ख्वाहिश पूरी की. रूबी का कहना है कि भाई मोहम्मद रफी ने हमेशा हौसला बढ़ाया.

फुटपाथ पर बैठकर की परीक्षा की तैयारी

रूबी ने अंग्रेजी संकाय में एमए किया. संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा भी दी, पर सफल नहीं हुई. दिल्ली विश्वविद्यालय से साल 2016 में एलएलबी की पढ़ाई पूरी की. साल 2018 में उत्तर प्रदेश और हरियाणा न्यायिक सेवा की परीक्षा में बैठी, पर सफलता अभी दूर थी. वो पढ़-लिखकर अफसर बनना चाहती थी. मगर रूबी एक अवैध कॉलोनी में रहती थी. यही वजह थी कि उसका घर बार-बार उजाड़ा गया. एक बार नहीं, 16-17 बार. 27 अप्रैल, 2019 को उनकी झुग्गी में आग लग गई. और सड़क पर आने की नौबत आई. परेशानियां इतनी बढ़ीं कि एक माह बाद 27 मई को झारखंड न्यायिक सेवा की परीक्षा थी और फुटपाथ पर बैठकर पढ़ना पड़ा.

रिजल्ट देख रो पड़ी रूबी

इन सब परेशानियों को सहते हुए रूबी ने प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा पास करने के बाद 10 जनवरी 2020 को साक्षात्कार दिया. इस बार रूबी के मन में सफलता की आस थी. गुरुवार सुबह जब रूबी सोकर उठी और वाट्सएप देखा तो रिजल्ट का मैसेज देखकर एक बार आंखें नम हो गईं.

सपने पूरे हुए, अब दिन बदल जाएंगे- रूबी

आज भी रूबी का परिवार एक टिन-छप्पर के घर में गुजारा कर रहा है. कबाड़ का काम करने वाले उसके भाई ने रूबी को लेकर जो सपने देखे थे वह अब पूरे हो गए हैं. रूबी की मां जाहिदा बेगम, भाई, भाभी सभी का खुशी का ठिकाना नही है. परिवार ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह सब अल्लाह की रहमत है.

ये भी पढ़ें- शहीद विजय सोरेंग की शहादत को एक साल पूरे, जिंदगी काट रहे बूढ़े मां-बाप घोषणा के सहारे

रूबी का कहना है कि मुस्लिम समुदाय में लड़कियों को शिक्षा से दूर रखा जाता है. बड़े होने पर उन्हें बुरके में रखा जाता है. मगर रूबी के पिता अलाउद्दीन का शुरू से ही सपना था कि वह उन्हें पढ़ा लिखा कर एक अच्छा इंसान बनाए. पिता के गुजर जाने के बाद मां और भाई ने मिलकर उनके सपने को पूरा करते हुए उसे अच्छी तालीम हासिल करवाई. पानीपत के एसडी कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद रूबी दिल्ली आईएएस की पढ़ाई करने निकल गई. मगर इसी बीच उनकी पूरी बस्ती में भी आग लगा दी गई. आर्थिक संकट की वजह से उन्हें आईएस की तैयारी अधूरी ही छोड़नी पड़ी. बाद में दिल्ली में ही उन्होंने एलएलबी की डिग्री हासिल की और उसके बाद स्थिति संभलने पर फिर से परीक्षाओं की तैयारियों में जुट गई.

रूबी का लक्ष्य था न्यायपालिका में अपर पोस्ट के लिए परीक्षा देना और जज बनकर पानीपत ही नहीं बल्कि हरियाणा का नाम रौशन कर महिलाओं के लिए आदर्श बनना. रूबी का कहना है कि वह अपने पूरे कार्य को पूरी निष्ठा के साथ करेगी.

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