ETV Bharat / city

कारगिल विजय दिवस आज, 164 साल पहले झारखंड में शहीद हुए थे स्वतंत्रता संग्राम के पहले सेनानी

26 जुलाई सिद्धू-कान्हू की पुण्यतिथि है. वहीं कारगिल विजय दिवस भी है. स्वतंत्रता के लिए पहली लड़ाई कहा जाता है कि मेरठ में हुई, लेकिन लेकिन उससे 100 वर्ष पहले ही आजादी का बिगुल झारखंड में फूंक दिया गया था. हालांकि झारखंड की इस लड़ाई को इतिहास के पन्नों में ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई. इस लड़ाई के मुख्य नायक सिद्धू कान्हू रहे, जिन्होंने अपनी बुद्धिमता और चालाक रणनीति से अंग्रेजों को संथाल से भगाया.

महानायकों को नमन
author img

By

Published : Jul 26, 2019, 12:00 AM IST

रांची: 26 जुलाई कारगिल युद्ध की 20वीं सालगिरह है. इस दिन हर साल विजय दिवस मनाया जाता है. इस दिन से देश के साथ-साथ झारखंड का भी गहरा नाता है. झारखंड में 26 जुलाई सिद्धू-कान्हू की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है.

First fight against the British from Jharkhand
महानायकों को नमन


कहा जाता है कि आजादी की सबसे पहली लड़ाई मेरठ की लड़ाई थी, लेकिन उससे 100 वर्ष पहले ही आजादी का बिगुल झारखंड में फूंक दिया गया था. हालांकि झारखंड की इस लड़ाई को इतिहास के पन्नों में ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई. इस लड़ाई के मुख्य नायक सिद्धू कान्हू रहे, जिन्होंने अपनी बुद्धिमता और चालाक रणनीति से अंग्रेजों को संथाल से भगाया.


पहली जनक्रांति थी संथाल हूल
ब्रिटिश राज के शुरू के सौ सालों में नागरिक विद्रोहों का सिलसिला किसी खास मुद्दे और स्थानीय असंतोष के कारण चलता रहा. 1763 से 1856 के बीच देश भर में अंग्रेजों के विरूद्ध 40 से ज्यादा बड़े विद्रोह हुए. छोटे पैमाने पर तो इनकी संख्या बेशुमार है. ऐसे ही कुछ विद्रोह झारखंड की जनजातियों द्वारा हुए. दरअसल, अधिकांश जनजातीय विद्रोहों में उनके जातीय हित की बुनियादी कारण रहे हैं. जनजातियों में संथालों का विद्रोह सबसे जबरदस्त था. भारत से अंग्रेजों को भगाने के लिए यह प्रथम जनक्रांति थी, जो संथाल हूल के नाम से प्रसिद्ध हुई.


संथालों की संख्या सबसे अधिक
झारखंड की जनजातियों में संथालों की संख्या सबसे अधिक है. इनका मुख्य निवास स्थल संथाल परगना है, जो छोटानागपुर के उत्तरी-पूर्वी छोर पर स्थित है. इनकी बहूलता के कारण ही संथाल परगना नाम दिया गया है. छोटानागपुर में प्रवेश के बाद संथालों ने इसी क्षेत्र को अपना आवास स्थल बनाया. संथाल परगना तब भागलपुर कमिश्नरी का अंग था. हजारीबाग और वीरभूम जिले में संथाल बहुत पहले आ बसे थे. इन्हीं इलाकों से आकर ये संथाल परगना में आ बसे थे.

First fight against the British from Jharkhand
महानायकों को नमन


महाजन हड़पने लगे जमीन
छोटानागपुर में अंग्रेजों का अधिपत्य 1756 से ही हो चुका था, लेकिन यहां की जनजातियों पर नहीं. धीरे-धीरे शोषण और अत्याचार का शिकंजा कसता गया. 1850 तक यहां तक के चप्पे-चप्पे में शोषण छा चुका था. संथाल भी इसके शिकार हो गये. साहबों की उपेक्षा, महाजनों का शोषण, अमला के भ्रष्टाचार अत्याचार बढ़ते गये. संथाल स्त्रियां भी इस अत्याचार से अछूती नहीं रही. बंगाली-बिहारी महाजन ऋण देकर भारी सूद वसूलते, छोटे बटखरे से इन्हें सामान बेचते और बड़े बटखरे से इनका उत्पादन को खरीदते. इन्हें ठगते भी और ऋण की वसूली बड़ी क्रूरता-कठोरता से करते. न्यायालय दूर, पुलिस संवेदना शून्य.


इन्हें कोई इंसाफ नहीं मिलता था. धीरे-धीरे इनकी जमीन भी महाजन हड़पने लगे. अंग्रेजों ने मालगुजारी बढ़ा दी कर लगान नहीं देने पर इनकी संपति को कुर्की जब्ती व नीलामी होने लगी. स्वदेशी महाजन जमींदारी और विदेशी हुक्मरान दोनों ओर से दोहरी मार. इनकी नजर में दोनों दिकू थे जिसके लिए इनके मन में भयंकर आक्रोश पनप चुका था. अतंत: इनका धैर्य टूट गया. संथाल हूल इसी शोषण की देन है.


सिद्धू-कान्हू और चांद-भैरव ने किया नेतृत्व
संथाल हूल का नेतृत्व भोगनाडीह निवासी चुन्नी मांझी के चार पुत्रों ने किया. ये थे सिद्धू कान्हू, चांद और भैरव. हूल के समय कान्हू की उम्र 35 वर्ष, चांद की आयु 30 वर्ष और भैरव की उम्र 20 वर्ष बतायी जाती है. सिद्धू सबसे बड़ा था लेकिन उनकी जन्मतिथि 1825 के आस-पास मानी गई है. जब सिद्धू-कान्हू ने शोषण के विरूद्ध विद्रोह करने का संकल्प ले लिया तो जन समूह को एकजुट करने और एकत्रित करने के लिए परंपरागत ढंग से अपनाया. दूगडूगी पिटवा दी और साल टहनी का संदेशा गांव-गांव भेजवाया. साल टहनी क्रांति संदेश का प्रतीक है.

First fight against the British from Jharkhand
महानायकों को नमन


30 जून, 1855 की तिथि भगनाडीहा में विशाल सभा रैली के लिए निर्धारित की गई. तीर धनुष के साथ लोगों को सभा में लाने की जिम्मेवारी मांझी/परगनाओं को सौंपी गई. संदेश चारों ओर फैल गया. दूरदराज के गांवों से पद-यात्रा करते लोग चल पड़े तीर-धनुष और पारंपरिक हथियारों से लैस कोई बीस हजार संथाल 30 जून को भगनाडीह पहुंच गये.


इस विशाल सभा में सिद्धू कान्हू के अंग्रेज हमारी भूमि छोड़ के नारे गूंज उठे. कभी तिलक ने कहा था- स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था-तुम हमें खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा और गाँधी ने नारा दिया था-करो या मरो. इनसे पहले ही उसी तर्ज पर सिद्धू ने ललकारा था-करो या मरो, अंग्रेजों हमारी पार्टी छोड़ दो.


लड़ाई में शामिल हुए सभी धर्म के लोग
सिद्धू का लोकतंत्र में विश्वास था. उसने समझ लिया था कि केवल संथालों द्वारा जन-आंदोलन संभव नहीं है. इसलिए औरों का भी सहयोग लिया. इस विद्रोह में अन्य लोग भी जैसे कुम्हार, चमार, ग्वाला, तेली, लोहार, डोम और मुस्लिम भी शामिल हो गये.

First fight against the British from Jharkhand
महानायकों को नमन


धर्म की आस्था पर लड़ी गई लड़ाई
सिद्धू-कान्हू ने हूल को सजीव और सफल बनाने के लिए धर्म का भी सहारा लिया. मरांग बूरू (मुख्य देवता) और जाहेर-एस (मुख्य देवी) के दर्शन और उनके आदेश (अबुआ राज स्थापित करने के लिए) की बात को प्रचारित कर लोगों की भावना को उभारा. सखुआ डाली घर-घर भेजवा का लोगों तक निमंत्रण पहुंचाया कि मुख्य देवी-देवता का आशीर्वाद लेने के लिए 30 जून को भगनाडीह में जमा होना है.


फलस्वरूप 30 जून को भगनाडीह में कोई 30 हजार लोग सशस्त्र इकट्ठे हो गये. उस सभा में सिद्धू को राजा, कान्हू को मंत्री, चांद को प्रशासक और भैरव को सेनापति मनोनीत कर नये संथाल राज्य के गठन की घोषणा कर दी गई.


महाजन, पुलिस, जमींदार, तेल अमला, सरकारी कर्मचारी के साथ ही नीलहे गोरों को मार भगाने का संकल्प लिया गया और लगान नहीं देने व सरकारी आदेश नहीं मानने का निश्चय किया गया. नीलहे गोरों ने नील खेतों के लिए संथाली को उत्साहित किया था पर शीघ्र ही उनका शोषण शुरू हो गया था जो बढ़ता ही गया. संथाल उनसे भी क्रोधित थे.


तीर-धनुष से बंदूक का मुकाबला
इसी समय एक घटना घटी. रेल निर्माण कार्य से जुड़े एक अंग्रेज ठीकेदार ने तीन संथाली मजदूरिनों का अपरहण कर लिया. यह आग में घी का काम किया. क्रांति की शुरूआत हो गई. कुछ संथालों ने अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया. तीन अंग्रेज मारे गये और अपहृत स्त्रियाँ मुक्त कर ली गई.

First fight against the British from Jharkhand
महानायकों को नमन


हूल यात्रा शुरू हुई तो कलकत्ता की ओर बढ़ती गई. गांव के गांव लुटे गए, जलाये गये और लोग मारे जाने लगे. कोई 20 हजार संथाली युवकों ने अंबर परगना के राजभवन पर धावा बोल दिया और 2 जूलाई को उस पर कब्जा का लिया. फूदनीपुर, कदमसर और प्यालापुर के अंग्रेजों को मार गिराया गया. निलहा साहबों की विशाल कोठियों पर अधिकार पर अधिकार कर लिया गया.


7 जुलाई को दिघी थाना के दारोगा और अंग्रेजों के पिट्टू, महेशलाल दत्त की हत्या कर दी गई. तब तक 19 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. सुरक्षा के लिए बनाये गये मारटेल टाबर से अंधाधुंध गोलियां चलाकर संथाल सैनिकों को भारी क्षति पहुंचायी गई. फिर भी बंदूक का मुकाबला तीर-धनुष करता रहा.


अंग्रेजों की हुई करारी हार
संथालों ने वीरभूमि क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और वहां से अंग्रेजों को भगा दिया. वीरपाईति में अंग्रेज सैनिकों की करारी हारी हुई. रघुनाथपुर और संग्रामपुर की लड़ाई में संथाली की सबसे बड़ी जीत हुई. इस संघर्ष में एक यूरोपियन सेनानायक, कुछ स्वदेशी अफसर और 25 सिपाही मार दिए गये.


सिद्धू-कान्हू के कुछ साथी लालच में आकर अंग्रेजों से मिल गये. गद्दारों के सहयोग से आखिर उपरबंदा गांव के पास कान्हू को गिरफ्तार कर लिया गया. बड़हैत में 19 जुलाई को सिद्धू भी पकड़ा गया. मेहर शकवार्ग ने उसे बंदी बनाकर भागलपुर जेल ले गया.


26 जुलाई को दोनों भाईयों को खुलेआम फांसी दे दी गई. इसके साथ ही संथाल विद्रोह का सशक्त नेतृत्व समाप्त हो गया. धीरे-धीरे विद्रोह को कुचल दिया गया.
30 नवंबर को कानूनन संथाल परगना जिला की स्थापना हुई और इसके प्रथम जिलाधीश के एशली इडेन बनाये गये. पूरे देश से भिन्न कानून से संथाल परगना का शासन शुरू हुआ.


याद किए जाते हैं सिद्धू-कान्हू
संथाल हूल का तो अंत हो गया, लेकिन दो वर्ष के बाद ही 1857 में होने वाले सिपाही विद्रोह-प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पीठिका तैयार कर दी गई. आज भी इन चारों भाईयों पर छोटानागपुर को गर्व है और संथाली गीतों में आज भी सिद्धू-कान्हू याद किये जाते हैं. इन शहीदों की जयंती संथाल हूल दिवस के रूप में मनायी जाती है.

रांची: 26 जुलाई कारगिल युद्ध की 20वीं सालगिरह है. इस दिन हर साल विजय दिवस मनाया जाता है. इस दिन से देश के साथ-साथ झारखंड का भी गहरा नाता है. झारखंड में 26 जुलाई सिद्धू-कान्हू की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है.

First fight against the British from Jharkhand
महानायकों को नमन


कहा जाता है कि आजादी की सबसे पहली लड़ाई मेरठ की लड़ाई थी, लेकिन उससे 100 वर्ष पहले ही आजादी का बिगुल झारखंड में फूंक दिया गया था. हालांकि झारखंड की इस लड़ाई को इतिहास के पन्नों में ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई. इस लड़ाई के मुख्य नायक सिद्धू कान्हू रहे, जिन्होंने अपनी बुद्धिमता और चालाक रणनीति से अंग्रेजों को संथाल से भगाया.


पहली जनक्रांति थी संथाल हूल
ब्रिटिश राज के शुरू के सौ सालों में नागरिक विद्रोहों का सिलसिला किसी खास मुद्दे और स्थानीय असंतोष के कारण चलता रहा. 1763 से 1856 के बीच देश भर में अंग्रेजों के विरूद्ध 40 से ज्यादा बड़े विद्रोह हुए. छोटे पैमाने पर तो इनकी संख्या बेशुमार है. ऐसे ही कुछ विद्रोह झारखंड की जनजातियों द्वारा हुए. दरअसल, अधिकांश जनजातीय विद्रोहों में उनके जातीय हित की बुनियादी कारण रहे हैं. जनजातियों में संथालों का विद्रोह सबसे जबरदस्त था. भारत से अंग्रेजों को भगाने के लिए यह प्रथम जनक्रांति थी, जो संथाल हूल के नाम से प्रसिद्ध हुई.


संथालों की संख्या सबसे अधिक
झारखंड की जनजातियों में संथालों की संख्या सबसे अधिक है. इनका मुख्य निवास स्थल संथाल परगना है, जो छोटानागपुर के उत्तरी-पूर्वी छोर पर स्थित है. इनकी बहूलता के कारण ही संथाल परगना नाम दिया गया है. छोटानागपुर में प्रवेश के बाद संथालों ने इसी क्षेत्र को अपना आवास स्थल बनाया. संथाल परगना तब भागलपुर कमिश्नरी का अंग था. हजारीबाग और वीरभूम जिले में संथाल बहुत पहले आ बसे थे. इन्हीं इलाकों से आकर ये संथाल परगना में आ बसे थे.

First fight against the British from Jharkhand
महानायकों को नमन


महाजन हड़पने लगे जमीन
छोटानागपुर में अंग्रेजों का अधिपत्य 1756 से ही हो चुका था, लेकिन यहां की जनजातियों पर नहीं. धीरे-धीरे शोषण और अत्याचार का शिकंजा कसता गया. 1850 तक यहां तक के चप्पे-चप्पे में शोषण छा चुका था. संथाल भी इसके शिकार हो गये. साहबों की उपेक्षा, महाजनों का शोषण, अमला के भ्रष्टाचार अत्याचार बढ़ते गये. संथाल स्त्रियां भी इस अत्याचार से अछूती नहीं रही. बंगाली-बिहारी महाजन ऋण देकर भारी सूद वसूलते, छोटे बटखरे से इन्हें सामान बेचते और बड़े बटखरे से इनका उत्पादन को खरीदते. इन्हें ठगते भी और ऋण की वसूली बड़ी क्रूरता-कठोरता से करते. न्यायालय दूर, पुलिस संवेदना शून्य.


इन्हें कोई इंसाफ नहीं मिलता था. धीरे-धीरे इनकी जमीन भी महाजन हड़पने लगे. अंग्रेजों ने मालगुजारी बढ़ा दी कर लगान नहीं देने पर इनकी संपति को कुर्की जब्ती व नीलामी होने लगी. स्वदेशी महाजन जमींदारी और विदेशी हुक्मरान दोनों ओर से दोहरी मार. इनकी नजर में दोनों दिकू थे जिसके लिए इनके मन में भयंकर आक्रोश पनप चुका था. अतंत: इनका धैर्य टूट गया. संथाल हूल इसी शोषण की देन है.


सिद्धू-कान्हू और चांद-भैरव ने किया नेतृत्व
संथाल हूल का नेतृत्व भोगनाडीह निवासी चुन्नी मांझी के चार पुत्रों ने किया. ये थे सिद्धू कान्हू, चांद और भैरव. हूल के समय कान्हू की उम्र 35 वर्ष, चांद की आयु 30 वर्ष और भैरव की उम्र 20 वर्ष बतायी जाती है. सिद्धू सबसे बड़ा था लेकिन उनकी जन्मतिथि 1825 के आस-पास मानी गई है. जब सिद्धू-कान्हू ने शोषण के विरूद्ध विद्रोह करने का संकल्प ले लिया तो जन समूह को एकजुट करने और एकत्रित करने के लिए परंपरागत ढंग से अपनाया. दूगडूगी पिटवा दी और साल टहनी का संदेशा गांव-गांव भेजवाया. साल टहनी क्रांति संदेश का प्रतीक है.

First fight against the British from Jharkhand
महानायकों को नमन


30 जून, 1855 की तिथि भगनाडीहा में विशाल सभा रैली के लिए निर्धारित की गई. तीर धनुष के साथ लोगों को सभा में लाने की जिम्मेवारी मांझी/परगनाओं को सौंपी गई. संदेश चारों ओर फैल गया. दूरदराज के गांवों से पद-यात्रा करते लोग चल पड़े तीर-धनुष और पारंपरिक हथियारों से लैस कोई बीस हजार संथाल 30 जून को भगनाडीह पहुंच गये.


इस विशाल सभा में सिद्धू कान्हू के अंग्रेज हमारी भूमि छोड़ के नारे गूंज उठे. कभी तिलक ने कहा था- स्वाधीनता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था-तुम हमें खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा और गाँधी ने नारा दिया था-करो या मरो. इनसे पहले ही उसी तर्ज पर सिद्धू ने ललकारा था-करो या मरो, अंग्रेजों हमारी पार्टी छोड़ दो.


लड़ाई में शामिल हुए सभी धर्म के लोग
सिद्धू का लोकतंत्र में विश्वास था. उसने समझ लिया था कि केवल संथालों द्वारा जन-आंदोलन संभव नहीं है. इसलिए औरों का भी सहयोग लिया. इस विद्रोह में अन्य लोग भी जैसे कुम्हार, चमार, ग्वाला, तेली, लोहार, डोम और मुस्लिम भी शामिल हो गये.

First fight against the British from Jharkhand
महानायकों को नमन


धर्म की आस्था पर लड़ी गई लड़ाई
सिद्धू-कान्हू ने हूल को सजीव और सफल बनाने के लिए धर्म का भी सहारा लिया. मरांग बूरू (मुख्य देवता) और जाहेर-एस (मुख्य देवी) के दर्शन और उनके आदेश (अबुआ राज स्थापित करने के लिए) की बात को प्रचारित कर लोगों की भावना को उभारा. सखुआ डाली घर-घर भेजवा का लोगों तक निमंत्रण पहुंचाया कि मुख्य देवी-देवता का आशीर्वाद लेने के लिए 30 जून को भगनाडीह में जमा होना है.


फलस्वरूप 30 जून को भगनाडीह में कोई 30 हजार लोग सशस्त्र इकट्ठे हो गये. उस सभा में सिद्धू को राजा, कान्हू को मंत्री, चांद को प्रशासक और भैरव को सेनापति मनोनीत कर नये संथाल राज्य के गठन की घोषणा कर दी गई.


महाजन, पुलिस, जमींदार, तेल अमला, सरकारी कर्मचारी के साथ ही नीलहे गोरों को मार भगाने का संकल्प लिया गया और लगान नहीं देने व सरकारी आदेश नहीं मानने का निश्चय किया गया. नीलहे गोरों ने नील खेतों के लिए संथाली को उत्साहित किया था पर शीघ्र ही उनका शोषण शुरू हो गया था जो बढ़ता ही गया. संथाल उनसे भी क्रोधित थे.


तीर-धनुष से बंदूक का मुकाबला
इसी समय एक घटना घटी. रेल निर्माण कार्य से जुड़े एक अंग्रेज ठीकेदार ने तीन संथाली मजदूरिनों का अपरहण कर लिया. यह आग में घी का काम किया. क्रांति की शुरूआत हो गई. कुछ संथालों ने अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया. तीन अंग्रेज मारे गये और अपहृत स्त्रियाँ मुक्त कर ली गई.

First fight against the British from Jharkhand
महानायकों को नमन


हूल यात्रा शुरू हुई तो कलकत्ता की ओर बढ़ती गई. गांव के गांव लुटे गए, जलाये गये और लोग मारे जाने लगे. कोई 20 हजार संथाली युवकों ने अंबर परगना के राजभवन पर धावा बोल दिया और 2 जूलाई को उस पर कब्जा का लिया. फूदनीपुर, कदमसर और प्यालापुर के अंग्रेजों को मार गिराया गया. निलहा साहबों की विशाल कोठियों पर अधिकार पर अधिकार कर लिया गया.


7 जुलाई को दिघी थाना के दारोगा और अंग्रेजों के पिट्टू, महेशलाल दत्त की हत्या कर दी गई. तब तक 19 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. सुरक्षा के लिए बनाये गये मारटेल टाबर से अंधाधुंध गोलियां चलाकर संथाल सैनिकों को भारी क्षति पहुंचायी गई. फिर भी बंदूक का मुकाबला तीर-धनुष करता रहा.


अंग्रेजों की हुई करारी हार
संथालों ने वीरभूमि क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और वहां से अंग्रेजों को भगा दिया. वीरपाईति में अंग्रेज सैनिकों की करारी हारी हुई. रघुनाथपुर और संग्रामपुर की लड़ाई में संथाली की सबसे बड़ी जीत हुई. इस संघर्ष में एक यूरोपियन सेनानायक, कुछ स्वदेशी अफसर और 25 सिपाही मार दिए गये.


सिद्धू-कान्हू के कुछ साथी लालच में आकर अंग्रेजों से मिल गये. गद्दारों के सहयोग से आखिर उपरबंदा गांव के पास कान्हू को गिरफ्तार कर लिया गया. बड़हैत में 19 जुलाई को सिद्धू भी पकड़ा गया. मेहर शकवार्ग ने उसे बंदी बनाकर भागलपुर जेल ले गया.


26 जुलाई को दोनों भाईयों को खुलेआम फांसी दे दी गई. इसके साथ ही संथाल विद्रोह का सशक्त नेतृत्व समाप्त हो गया. धीरे-धीरे विद्रोह को कुचल दिया गया.
30 नवंबर को कानूनन संथाल परगना जिला की स्थापना हुई और इसके प्रथम जिलाधीश के एशली इडेन बनाये गये. पूरे देश से भिन्न कानून से संथाल परगना का शासन शुरू हुआ.


याद किए जाते हैं सिद्धू-कान्हू
संथाल हूल का तो अंत हो गया, लेकिन दो वर्ष के बाद ही 1857 में होने वाले सिपाही विद्रोह-प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पीठिका तैयार कर दी गई. आज भी इन चारों भाईयों पर छोटानागपुर को गर्व है और संथाली गीतों में आज भी सिद्धू-कान्हू याद किये जाते हैं. इन शहीदों की जयंती संथाल हूल दिवस के रूप में मनायी जाती है.

Intro:Body:

dddd


Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.