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झारखंड में गुजरात मॉडल : सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया के खात्मे की तैयारी

गुजरात की तर्ज पर झारखंड से सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया के खात्मे की तैयारी की जा रही है. क्या था गुजरात मॉडल और कैसे मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने इन बीमारियों से राज्य को मुक्ति दिलाई.. पढ़िए खास रिपोर्ट.

झारखंड में गुजरात मॉडल
झारखंड में गुजरात मॉडल
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Published : Nov 18, 2021, 7:40 PM IST

Updated : Nov 18, 2021, 8:40 PM IST

रांचीः झारखंड में एनीमिया यानी खून की कमी एक बड़ी समस्या है. एक अनुमान के अनुसार राज्य के पचास फीसदी से ज्यादा लोग खून की कमी की समस्या से ग्रसित हैं. चिंता की बात यह है कि इसमें बड़ी संख्या वैसे लोगों की है जो जेनेटिक डिसऑर्डर के चलते होने वाली बीमारी सिकल सेल और थैलसीमिया से ग्रसित हैं. जीवन शैली और अन्य वजहों से ऐसा देखा गया है कि जनजातीय लोगों में सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया बीमारी अधिक पायी जाती है.

ये भी पढ़ें-झारखंड में 65% महिलाएं एनीमिया से ग्रसित, ग्रामीण भागों में स्थिति अत्यंत दयनीय

क्या है गुजरात मॉडल

रघुवर दास की सरकार के दौरान झारखंड में सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया बीमारी को समाप्त करने के लिए चार जिलों में पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था. देवघर, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और रांची में पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था. रांची जिले में पायलट प्रोजेक्ट के नोडल अधिकारी डॉ बिमलेश सिंह बताते हैं कि आखिर क्या था सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया के खात्मे के गुजरात मॉडल.

देखिए ये खास रिपोर्ट

डॉ बिमलेश सिंह ने ईटीवी भारत को बताया कि 2003-04 में गुजरात में करीब 82 लाख जनजातीय आबादी की स्क्रीनिंग की गई और 82 लाख की आबादी में से सिकल सेल एनीमिया और बाद में थैलसीमिया के मरीजों और कैरियर की पहचान कर ली गयी. स्क्रीनिंग के बाद सिकल सेल एनीमिया के मरीजों के लिए अलग से इलाज और काउंसिलिंग की व्यवस्था की गई. वहीं इन बीमारियों के कैरियर की अलग से काउंसलिंग की गई. जिला और प्रखंड स्तर पर इस काउंसलिंग का असर हुआ. इससे सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया के मरीजों का जीवन काल बढ़कर 50-55 वर्ष हो गया. बीमारी के कैरियर की आपस में या बीमारी वाले लोग से शादी नहीं होने के चलते नई पीढ़ी में भी बीमारी कम होती चली गयी.

ये भी पढ़ें-खूंटी: 70 प्रतिशत लोग एनीमिया से ग्रसित, महिलाओं और बच्चो की संख्या अधिक

पायलट प्रोजेक्ट से क्या फायदा हुआ

रांची में सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया के खिलाफ पायलट प्रोजेक्ट में 50 हजार लोगों, जिसमें ज्यादातर कस्तूरबा विद्यालय के आठवी क्लास के छात्राएं थी, उनकी स्क्रीनिंग की गई. इसमें करीब 2500 छात्राएं सिकल सेल एनीमिया या थैलसीमिया से ग्रसित पाई गईं. फिर इन बच्चियों की रांची सदर अस्पताल में काउंसिलिंग कराई गई और बताया गया कि जब शादी का वक्त आए, तब उन्हें टीपन या कुंडली की जगह यह देखना होगा कि जिससे उसकी शादी हो रही है, वह सिकल सेल एनेमिया या थैलसीमिया का कैरियर तो नहीं है.

ये भी पढ़ें-लोहे की कड़ाही में खाना बनाना, खून की कमी को दूर भगाना

अब राज्य भर में शुरू होगा अभियान

झारखंड इंटेग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम के हेड और स्टेट ब्लड सेल विंग के नोडल अधिकारी डॉ विजय बिहारी प्रसाद कहते हैं कि राज्य में सभी जिलों में सिकल सेल एनेमिया और थैलसीमिया के लिए जल्द ही स्क्रीनिंग शुरू की जाएगी. गर्भवती महिलाओं, स्कूली छात्र छात्राओं और जनजाति समुदाय के लोगों की स्क्रीनिंग प्राथमिकता में होगी. इसके लिए झारखंड सरकार हर जिले में सिकल सेल एनेमिया और थैलसीमिया की जांच के लिए मशीन खरीद की दिशा में आगे बढ़ गयी है. दोनों बीमारियों के लिए कांउसेलर रखे जाएंगे, जो लोगों को बताएंगे कि कैसे हम शादी के समय थोड़ी सावधानी बरतकर अगली पीढ़ी को इस बीमारी से बचा सकते हैं.

रांचीः झारखंड में एनीमिया यानी खून की कमी एक बड़ी समस्या है. एक अनुमान के अनुसार राज्य के पचास फीसदी से ज्यादा लोग खून की कमी की समस्या से ग्रसित हैं. चिंता की बात यह है कि इसमें बड़ी संख्या वैसे लोगों की है जो जेनेटिक डिसऑर्डर के चलते होने वाली बीमारी सिकल सेल और थैलसीमिया से ग्रसित हैं. जीवन शैली और अन्य वजहों से ऐसा देखा गया है कि जनजातीय लोगों में सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया बीमारी अधिक पायी जाती है.

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क्या है गुजरात मॉडल

रघुवर दास की सरकार के दौरान झारखंड में सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया बीमारी को समाप्त करने के लिए चार जिलों में पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था. देवघर, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और रांची में पायलट प्रोजेक्ट चलाया गया था. रांची जिले में पायलट प्रोजेक्ट के नोडल अधिकारी डॉ बिमलेश सिंह बताते हैं कि आखिर क्या था सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया के खात्मे के गुजरात मॉडल.

देखिए ये खास रिपोर्ट

डॉ बिमलेश सिंह ने ईटीवी भारत को बताया कि 2003-04 में गुजरात में करीब 82 लाख जनजातीय आबादी की स्क्रीनिंग की गई और 82 लाख की आबादी में से सिकल सेल एनीमिया और बाद में थैलसीमिया के मरीजों और कैरियर की पहचान कर ली गयी. स्क्रीनिंग के बाद सिकल सेल एनीमिया के मरीजों के लिए अलग से इलाज और काउंसिलिंग की व्यवस्था की गई. वहीं इन बीमारियों के कैरियर की अलग से काउंसलिंग की गई. जिला और प्रखंड स्तर पर इस काउंसलिंग का असर हुआ. इससे सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया के मरीजों का जीवन काल बढ़कर 50-55 वर्ष हो गया. बीमारी के कैरियर की आपस में या बीमारी वाले लोग से शादी नहीं होने के चलते नई पीढ़ी में भी बीमारी कम होती चली गयी.

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पायलट प्रोजेक्ट से क्या फायदा हुआ

रांची में सिकल सेल एनीमिया और थैलसीमिया के खिलाफ पायलट प्रोजेक्ट में 50 हजार लोगों, जिसमें ज्यादातर कस्तूरबा विद्यालय के आठवी क्लास के छात्राएं थी, उनकी स्क्रीनिंग की गई. इसमें करीब 2500 छात्राएं सिकल सेल एनीमिया या थैलसीमिया से ग्रसित पाई गईं. फिर इन बच्चियों की रांची सदर अस्पताल में काउंसिलिंग कराई गई और बताया गया कि जब शादी का वक्त आए, तब उन्हें टीपन या कुंडली की जगह यह देखना होगा कि जिससे उसकी शादी हो रही है, वह सिकल सेल एनेमिया या थैलसीमिया का कैरियर तो नहीं है.

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अब राज्य भर में शुरू होगा अभियान

झारखंड इंटेग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम के हेड और स्टेट ब्लड सेल विंग के नोडल अधिकारी डॉ विजय बिहारी प्रसाद कहते हैं कि राज्य में सभी जिलों में सिकल सेल एनेमिया और थैलसीमिया के लिए जल्द ही स्क्रीनिंग शुरू की जाएगी. गर्भवती महिलाओं, स्कूली छात्र छात्राओं और जनजाति समुदाय के लोगों की स्क्रीनिंग प्राथमिकता में होगी. इसके लिए झारखंड सरकार हर जिले में सिकल सेल एनेमिया और थैलसीमिया की जांच के लिए मशीन खरीद की दिशा में आगे बढ़ गयी है. दोनों बीमारियों के लिए कांउसेलर रखे जाएंगे, जो लोगों को बताएंगे कि कैसे हम शादी के समय थोड़ी सावधानी बरतकर अगली पीढ़ी को इस बीमारी से बचा सकते हैं.

Last Updated : Nov 18, 2021, 8:40 PM IST
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