रांची: झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू को एनडीए ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है. बतौर राज्यपाल उन्होंने झारखंड के लिए बहुत कुछ किया. जनजातीय शिक्षा पर उनका विशेष ध्यान था. लेकिन आदिवासी हित में उनके द्वारा लिए गये एक फैसले की चर्चा आज भी होती है.
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जून 2017 को उन्होंने रघुवर दास के नेतृत्व वाली अपनी ही सरकार द्वारा भेजे गए सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक को वापस कर दिया था. उनके इस फैसले से झारखंड की राजनीति गरमा गई थी. इसका असर 2019 के विधानसभा चुनाव में भी दिखा था. पांच साल तक डंके की चोट पर चली रघुवर सरकार को जनता ने नकार दिया. आदिवासी सीटों पर भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा. सिर्फ नीलकंठ सिंह मुंडा और कोचे मुंडा अपनी सीट बचा पाए थे. भाजपा 42 (37 भाजपा और 5 जेवीएम से शामिल) से 25 पर सिमट गई. जानकार कहते है कि द्रौपदी मुर्मू ने उस बिल को वापस नहीं किया होता तो शायद 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को और बड़ी कीमत चुकानी पड़ती.
द्रौपदी मुर्मू ने दिया था इस सवाल का जवाब: झारखंड की राज्यपाल के रूप में कार्यकाल खत्म होने के बाद ओडिशा के रायरंगपुर स्थित अपने पैतृक गांव जाने से पहले उन्होंने विधेयक को लौटाने की वजह बतायी थी. उन्होंने कहा कि संशोधन विधेयक को विधानसभा से पारित कराकर भेजा गया था. विधेयक के राजभवन पहुंचते ही आपत्तियां आनी शुरू हो गई थीं. तब करीब 200 आपत्तियां आई थीं. इसे लेकर उन्होंने खुद उस समय के मुख्यमंत्री रहे रघुवर दास और मुख्य सचिव राजबाला वर्मा से चर्चा की थी. सभी पहलूओं पर सहमति बनने के बाद ही विधेयक को वापस लौटाया था. तबतक यह मामला तूल पकड़ चुका था. रघुवर सरकार बैकफुट पर थी. आनन फानन में सरकार को बिल वापस करने की घोषणा करनी पड़ी. उस समय रघुवर सरकार में मंत्री रहे सरयू राय ने कहा था कि राज्यपाल ने पुनर्विचार के लिए लौटाए गए बिल के संदेश में विधेयक के प्रस्तावना पर सवाल खड़े किए थे. उद्देश्य में भी भ्रम था. द्रौपदी मुर्मू ने पूछा था कि सीएनटी एक्ट की धारा 71ए में संशोधन का जो प्रस्ताव है, वैसा एसपीटी एक्ट में क्यों नहीं है.
भाजपा की खूब हुई थी फजीहत: राजभवन द्वारा पुनर्विचार के लिए बिल को वापस करने पर झामुमो और कांग्रेस के विधायकों ने विधानसभा के गेट पर प्रदर्शन किया था. तब नेता प्रतिपक्ष रहे हेमंत सोरेन ने कहा था कि सरकार के मन में चोर है. राजभवन से बिल लौटने के बाद भी मानसून सत्र के पहले दिन सरकार ने सदन को क्यों नहीं बताया.
झारखंड में सबसे लंबा रहा कार्यकाल: झारखंड की राज्यपाल के रूप में द्रौपदी मुर्मू का कार्यकाल सबसे लंबा रहा. उन्होंने 18 मई 2015 को झारखंड में नौवें राज्यपाल के रूप में शपथ ली थी. पांच वर्ष का कार्यकाल 18 मई 2020 को पूरा हो गया, लेकिन कोविड के कारण राष्ट्रपति द्वारा नयी नियुक्ति नहीं किये जाने से कार्यकाल का विस्तार हो गया. इस तरह छह जुलाई 2021 को रमेश बैस के नये राज्यपाल की घोषणा होने तक द्रौपदी मुर्मू का कार्यकाल छह वर्ष एक माह 18 दिन का रहा.