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'O' की जगह जीरो लगाने से बन जाते हैं असली नाम के से डुप्लीकेट वेबसाइट्स, फिर शुरू होता है ऑनलाइन ठगी का खेल

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Published : Dec 24, 2021, 4:02 PM IST

Updated : Dec 24, 2021, 8:13 PM IST

इंटरनेट के मकड़जाल को समझना काफी मुश्किल है. आम आदमी की इसी कमजोरी का फायदा साइबर अपराधी उठा रहे हैं और इसमें साइबर ठगी का नया तरीका सामने आया है. अब साइबर अपराधी फेक कमर्शियल वेबसाइट्स (Fake Commercial Websites) बनाकर लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. साइबर अपराधियों का नया हथकंडा क्या है और ये किस तरह ठगी को अंजाम दे रहे हैं. जानने के लिए पढ़िए, ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट.

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नकली कमर्शियल वेबसाइट्स

रांचीः अगर आप नए साल या फिर क्रिसमस के अवसर पर अपने दोस्तों को ऑनलाइन गिफ्ट देने की सोच रहे हैं तो जरा होशियार रहें. साइबर अपराधियों के द्वारा बनाए गए Fake Commercial Websites को लेकर सचेत रहने की जरूरत है नहीं तो आपके पैसे साइबर अपराधियों के पास चले जाएंगे. साइबर अपराधी Original Commercial Websites के अक्षरों में हेरफेर कर साइबर अपराधी फेक वेबसाइट बना रहे हैं जिसके जरिए वो लगातार लोगों से ठगी कर रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- अब दो साल तक कॉल का डेटा सुरक्षित रखेंगी टेलीकॉम कंपनियां


ठगी के लिए बिछाया जाल
पर्व त्यौहार का मौसम साइबर अपराधियों के लिए बड़ा मौका साबित होता है. कोविड संक्रमण के बाद उपजी परिस्थितियों की वजह से लोग ऑनलाइन शॉपिंग को ज्यादा तरजीह देते हैं. भारत में पर्व त्योहारों के दौरान एक दूसरे को गिफ्ट देने और खरीदारी करने का रिवाज है. भारी संख्या में कमर्शियल कंपनियां ऑनलाइन प्रोडक्ट्स बेच रही हैं. ऐसे में ग्राहक अपने मित्रों या फिर परिवार के लोगों को गिफ्ट देने के लिए ऑनलाइन सामान खरीद कर उनके पते पर भेजते हैं. लेकिन इंटरनेट की दुनिया में साइबर अपराधियों ने एक बड़ा जाल बिछा कर रखा है. झारखंड में साइबर अपराध का ये नया तरीका सामने आया है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

साइबर अपराधियों ने ओरिजिनल वेबसाइट के अक्षरों में हेरफेर कर अपने ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट बना रखे हैं. सीआईडी एसपी कार्तिक एस के अनुसार पर्व त्योहारों के दौरान ऑनलाइन शॉपिंग में सावधानी बरतने की जरूरत है. उदाहरण के लिए मान लीजिए कि आप अमेजन से कोई खरीदारी कर रहे हैं, ऐसे में साइबर अपराधियों ने Amazon के O अक्षर को हटाकर zero यानी शून्य लगा देते हैं और उसके नाम से फेक बेबसाइट बना लेते हैं. उपभोक्ता खासकर नए जब इंटरनेट पर अमेजन तलाशते हैं तो उसे फेक यानी जीरो वाला साइट मिल जाता है. ऐसे फर्जी वेबसाइट पर ऑनलाइन वैसे ही भुगतान का ऑप्शन होता है. ऐसे में लोग ऑनलाइन पेमेंट में सावधानी ना बरतते हुए पैसा दे देते हैं लेकिन उन तक उनका खरीदा हुआ सामान नहीं पहुंच पाता है.

बल्क मैसेजिंग ऐप का प्रयोग
फेक वेबसाइट के लिए साइबर अपराधी बल्क मैसेजिंग ऐप का दुरुपयोग कर रहे हैं. इस ऐप के माध्यम से एक साथ सैकड़ों लोगों को मैसेज भेजा जा सकता है. इस ऐप के जरिए भेजा गया मैसेज ठीक वैसी रहता है, जैसे संबंधित कंपनी या बैंक ने भेजा हो. क्रेडिट मैसेज भेजकर रुपया उड़ाने का ट्रेंड चल रहा है. साइबर अपराधी ठीक वैसा मैसेज भेजते हैं, जैसी कंपनी भेजती है और इसी चक्कर में आम लोग फंस जाते हैं, जिसके बाद उनके खातों से पैसे गायब हो जाता है.

व्याकरण अशुद्धियां पर ध्यान देने से असली नकली की पहचान होगी
अगर आप लोग थोड़ा सा भी जागरूक हो जाए तो साइबर अपराधियों की दाल कहीं नहीं गलेगी. जब भी साइबर अपराधी बल्क मैसेज के जरिए मैसेज भेजते हैं तो उसमें व्याकरण की अशुद्धियां होती हैं. मान लीजिए कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से कोई मैसेज आता है तो बैंक का जो फॉर्मेट है उसी के अनुसार आएगा. अगर साइबर अपराधी उसकी कॉपी करते हैं तो यह आसान नहीं है ऐसे में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया लिखने में साइबर अपराधी व्याकरण की अशुद्धियां करते हैं. साइबर अपराधियों के मैसेज को अगर ध्यान से देखा जाए तो ठगी से बचा जा सकता है.

इसे भी पढ़ें- खास सीरियल नंबर की नोट के बदले अधिक रुपये का दावा 'फेक'- RBI नहीं देता ऐसे ऑफर

यूआरएल की समझ बचाएगा ठगी से
रांची के जाने-माने साइबर एक्सपर्ट राहुल के अनुसार पर त्योहार के समय साइबर अपराधी थोड़ा ज्यादा ही सक्रिय हो जाते हैं. क्रिसमस और नया साल का मौका है तो ऐसे में एक बार फिर से साइबर अपराधी बेहद सक्रिय हैं. ऐसे में आपको यह समझना होगा कि साइबर अपराधियों की चाल का मुकाबला कैसे करें. सबसे पहले यह जान लें कि किसी भी फेक साइट का यूआरएल https से शुरू होती है और इसमें लॉक का आइकन नहीं होता. जबकि सुरक्षित वेबसाइट https से शुरू होती हैं और लॉक आइकन के साथ होती है, इसका मतलब है कि वेबसाइट सुरक्षित हैं. सबसे पहले यूआरएल की जांच करें. इस बात को सुनिश्चित कर लें कि यह असली साइट है. जब भी आपसे कोई ई-मेल पर आपकी जानकारी मांगे तो बिलकुल मत दीजिए. ज्यादातर उन वेबसाइट के माध्यम से ठगी की जाती है, जिनका आप पहले से उपयोग करते हैं, आपको कोई प्रलोभन, ऑफर दे तो झांसे में बिल्कुल ना आएं.

ऑनलाइन लुभावने ऑफर से बचें
अक्सर कुछ साइट हमसे कुछ फॉर्म भरने के लिए कहती है. जिसमें हमसे जुड़ी जानकारी मांगी जाती हैं, जैसे-नाम, बैंक खाता नंबर, जन्मतिथि, पता, पैन कार्ड नंबर, क्रेडिट कार्ड नंबर. ऐसी साइट पर अपनी निजी और गोपनीय जानकारी उपलब्ध ना कराएं. अपरिचित वेबसाइट पर विजिट करने से बचें और पंजीकरण करते समय सावधान रहें. खासकर ऑनलाइन लेन-देन करते समय सुरक्षित नेटवर्क का उपयोग करें और उससे जुड़ी हुई जानकारियां अच्छी तरह पढ़ लें. कोई भी यूआरएल यूज करने के लिए डोमेन नेम का ख्याल जरूर रखें. साइबर एक्सपर्ट के अनुसार कन्फ्यूजिंग वेबसाइट का यूआरएल और लुक बेहद खतरनाक होता है. फ्रॉड यूआरएल आपका पर्सनल और प्राइवेट डेटा चुरा सकता है. इसलिए यूआरएल को ध्यान से समझें और फिर वेबसाइट को क्लिक करें.

वेबसाइट से ज्यादा ऐप सुरक्षित
साइबर एक्सपर्ट्स के अनुसार जिस तादात में साइबर अपराधियों ने फेक वेबसाइट का निर्माण कर रखा है. उसमें ठगी की संभावनाएं बहुत ज्यादा है. ऐसे में जरूरत है कि कोई भी गिफ्ट या फिर किसी दूसरे सामान की खरीदारी करनी हो तो आप कमर्शियल वेबसाइट के ऐप का प्रयोग करें ऐप पर ठगी के चांसेस बेहद कम होते हैं.

इसे भी पढ़ें- त्योहारों के सीज़न में ठगों से सावधान ! नए-नए पैंतरे अपना रहे हैं साइबर ठग

ऐसे करें फेक वेबसाइट की पहचान- वेबसाइट का URL जरूर चेक करें

हम अपने मोबाइल फोन, लैपटॉप या डेस्क टॉप पर धड़ल्ले से वेबसाइट सर्च करते हैं. लेकिन एक बार भी हम एड्रेस बार पर ध्यान नहीं देते. इसी का फायदा साइबर अपराधी उठा रहे. नामचीन कमर्शियल वेबसाइट्स की स्पेलिंग के अक्षरों से छेड़छाड़ कर वो फेक वेबसाइट बनाकर लोगों से ठगी कर रहे हैं. इसलिए किसी भी वेबसाइट का URL जरूर चेक करना चाहिए. क्योंकि सुरक्षा की सबसे पहली सीढ़ी यही है. किसी भी वेबसाइट के एड्रेस बार से ही पता चल जाता है आप कहां हैं और कितने सुरक्षित हैं. URL को ध्यान से देखें क्योंकि यूआरएल एक ही वेबसाइट से हो सकता है, नकली वेबसाइट का यूआरएल या तो गायब होगा या फिर किसी वर्ड्स में जोड़ा होगा. इसके अलावा यूआरएल एड्रेस बार के ऊपर वेबसाइट का आइकॉन दिखाई दे रहा है या नहीं. अगर आपको ये आइकॉन नहीं नजर आ रहा है तो जाहिर है ये फेक वेबसाइट है.

HTTPS जरूर चेक करें

HTTPS एक तरह से किसी वेबसाइट का रक्षा कवच है. जो किसी तरह के साइबर अटैक से बचाता है. किसी वेबसाइट पर विजिट करने पर एड्रेस बार में यूआरएल की शुरूआत में HTTPS आता है. अगर किसी वेबसाइट में HTTPS लिखा हुआ नहीं दिख रहा है तो जरूर ये एक फेक वेबसाइट होगा. इस बात का जरूर ध्यान रखें कि शॉपिंग और बैंकिंग वेबसाइट्स में HTTPS प्रोटोकॉल कंपलसरी है.

पॉलिसी पेज जरूर चेक करें

अगर कोई कमर्शियल वेबसाइड कुछ बेच रही है, लुभावने गिफ्ट या ऑफर दे रही है. लेकिन उसमें आपको प्रोडक्ट की सेवा की शर्तें नहीं मिल रही हैं तो यह आपको नुकसान पहुंचा सकती है. आमतौर पर किसी भी असली कमर्शियल वेबसाइट के हेडर या फुटर पर कस्टमर केयर, रिफंड, मनी बैक, गारंटी जैसे पेज मिल जाएंगे. लेकिन ऐसी कोई जानकारी अगर उस कमर्शियल वेबसाइट पर नहीं है तो जरूर ये एक फेक वेबसाइट हो सकती है.

रिव्यू पेज का ना होना

अगर किसी प्रोडक्ड के बारे में इंफो या उसकी जानकारी और उसका इमेज नजर ना आए तो ये एक फेक वेबसाइट हो सकता है. अगर आप उस प्रोडक्ट का रिव्यू Review नहीं देख पा रहे हैं तो सावधान हो जाइए. क्योंकि आपको रिझाने के लिए ये एक फिशिंग वेबसाइट हो सकती है या हो सकता है वो ब्रांड्स के नाम पर नकली सामान बेच रही है.

सेफ ब्राउजिंग करें

सॉफ्टवेयर डेवलपर खुद ब्राउजर बनाकर ब्रांडेड वेबसाइट की तरह उसे बनाकर अपने ब्राउजर के बारे में इंफो पेस्ट करके यूजर की सारी जानकारी देख सकता है. अगर कोई निजी लॉगिन करता है तो उसे भी चुरा सकता है. ऐसी हालात में लोग साइबर अटैक का शिकार होते हैं. इसलिए ऑनलाइन शॉपिंग के लिए सेफ ब्राउजिंग करें. इसके लिए हमेशा स्डैंडर्ड, फेमस और सेफ ब्राउजिंग ही करना चाहिए. जिससे आधे खतरे को आप खुद से दूर रख सकते हैं.

रांचीः अगर आप नए साल या फिर क्रिसमस के अवसर पर अपने दोस्तों को ऑनलाइन गिफ्ट देने की सोच रहे हैं तो जरा होशियार रहें. साइबर अपराधियों के द्वारा बनाए गए Fake Commercial Websites को लेकर सचेत रहने की जरूरत है नहीं तो आपके पैसे साइबर अपराधियों के पास चले जाएंगे. साइबर अपराधी Original Commercial Websites के अक्षरों में हेरफेर कर साइबर अपराधी फेक वेबसाइट बना रहे हैं जिसके जरिए वो लगातार लोगों से ठगी कर रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- अब दो साल तक कॉल का डेटा सुरक्षित रखेंगी टेलीकॉम कंपनियां


ठगी के लिए बिछाया जाल
पर्व त्यौहार का मौसम साइबर अपराधियों के लिए बड़ा मौका साबित होता है. कोविड संक्रमण के बाद उपजी परिस्थितियों की वजह से लोग ऑनलाइन शॉपिंग को ज्यादा तरजीह देते हैं. भारत में पर्व त्योहारों के दौरान एक दूसरे को गिफ्ट देने और खरीदारी करने का रिवाज है. भारी संख्या में कमर्शियल कंपनियां ऑनलाइन प्रोडक्ट्स बेच रही हैं. ऐसे में ग्राहक अपने मित्रों या फिर परिवार के लोगों को गिफ्ट देने के लिए ऑनलाइन सामान खरीद कर उनके पते पर भेजते हैं. लेकिन इंटरनेट की दुनिया में साइबर अपराधियों ने एक बड़ा जाल बिछा कर रखा है. झारखंड में साइबर अपराध का ये नया तरीका सामने आया है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

साइबर अपराधियों ने ओरिजिनल वेबसाइट के अक्षरों में हेरफेर कर अपने ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट बना रखे हैं. सीआईडी एसपी कार्तिक एस के अनुसार पर्व त्योहारों के दौरान ऑनलाइन शॉपिंग में सावधानी बरतने की जरूरत है. उदाहरण के लिए मान लीजिए कि आप अमेजन से कोई खरीदारी कर रहे हैं, ऐसे में साइबर अपराधियों ने Amazon के O अक्षर को हटाकर zero यानी शून्य लगा देते हैं और उसके नाम से फेक बेबसाइट बना लेते हैं. उपभोक्ता खासकर नए जब इंटरनेट पर अमेजन तलाशते हैं तो उसे फेक यानी जीरो वाला साइट मिल जाता है. ऐसे फर्जी वेबसाइट पर ऑनलाइन वैसे ही भुगतान का ऑप्शन होता है. ऐसे में लोग ऑनलाइन पेमेंट में सावधानी ना बरतते हुए पैसा दे देते हैं लेकिन उन तक उनका खरीदा हुआ सामान नहीं पहुंच पाता है.

बल्क मैसेजिंग ऐप का प्रयोग
फेक वेबसाइट के लिए साइबर अपराधी बल्क मैसेजिंग ऐप का दुरुपयोग कर रहे हैं. इस ऐप के माध्यम से एक साथ सैकड़ों लोगों को मैसेज भेजा जा सकता है. इस ऐप के जरिए भेजा गया मैसेज ठीक वैसी रहता है, जैसे संबंधित कंपनी या बैंक ने भेजा हो. क्रेडिट मैसेज भेजकर रुपया उड़ाने का ट्रेंड चल रहा है. साइबर अपराधी ठीक वैसा मैसेज भेजते हैं, जैसी कंपनी भेजती है और इसी चक्कर में आम लोग फंस जाते हैं, जिसके बाद उनके खातों से पैसे गायब हो जाता है.

व्याकरण अशुद्धियां पर ध्यान देने से असली नकली की पहचान होगी
अगर आप लोग थोड़ा सा भी जागरूक हो जाए तो साइबर अपराधियों की दाल कहीं नहीं गलेगी. जब भी साइबर अपराधी बल्क मैसेज के जरिए मैसेज भेजते हैं तो उसमें व्याकरण की अशुद्धियां होती हैं. मान लीजिए कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से कोई मैसेज आता है तो बैंक का जो फॉर्मेट है उसी के अनुसार आएगा. अगर साइबर अपराधी उसकी कॉपी करते हैं तो यह आसान नहीं है ऐसे में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया लिखने में साइबर अपराधी व्याकरण की अशुद्धियां करते हैं. साइबर अपराधियों के मैसेज को अगर ध्यान से देखा जाए तो ठगी से बचा जा सकता है.

इसे भी पढ़ें- खास सीरियल नंबर की नोट के बदले अधिक रुपये का दावा 'फेक'- RBI नहीं देता ऐसे ऑफर

यूआरएल की समझ बचाएगा ठगी से
रांची के जाने-माने साइबर एक्सपर्ट राहुल के अनुसार पर त्योहार के समय साइबर अपराधी थोड़ा ज्यादा ही सक्रिय हो जाते हैं. क्रिसमस और नया साल का मौका है तो ऐसे में एक बार फिर से साइबर अपराधी बेहद सक्रिय हैं. ऐसे में आपको यह समझना होगा कि साइबर अपराधियों की चाल का मुकाबला कैसे करें. सबसे पहले यह जान लें कि किसी भी फेक साइट का यूआरएल https से शुरू होती है और इसमें लॉक का आइकन नहीं होता. जबकि सुरक्षित वेबसाइट https से शुरू होती हैं और लॉक आइकन के साथ होती है, इसका मतलब है कि वेबसाइट सुरक्षित हैं. सबसे पहले यूआरएल की जांच करें. इस बात को सुनिश्चित कर लें कि यह असली साइट है. जब भी आपसे कोई ई-मेल पर आपकी जानकारी मांगे तो बिलकुल मत दीजिए. ज्यादातर उन वेबसाइट के माध्यम से ठगी की जाती है, जिनका आप पहले से उपयोग करते हैं, आपको कोई प्रलोभन, ऑफर दे तो झांसे में बिल्कुल ना आएं.

ऑनलाइन लुभावने ऑफर से बचें
अक्सर कुछ साइट हमसे कुछ फॉर्म भरने के लिए कहती है. जिसमें हमसे जुड़ी जानकारी मांगी जाती हैं, जैसे-नाम, बैंक खाता नंबर, जन्मतिथि, पता, पैन कार्ड नंबर, क्रेडिट कार्ड नंबर. ऐसी साइट पर अपनी निजी और गोपनीय जानकारी उपलब्ध ना कराएं. अपरिचित वेबसाइट पर विजिट करने से बचें और पंजीकरण करते समय सावधान रहें. खासकर ऑनलाइन लेन-देन करते समय सुरक्षित नेटवर्क का उपयोग करें और उससे जुड़ी हुई जानकारियां अच्छी तरह पढ़ लें. कोई भी यूआरएल यूज करने के लिए डोमेन नेम का ख्याल जरूर रखें. साइबर एक्सपर्ट के अनुसार कन्फ्यूजिंग वेबसाइट का यूआरएल और लुक बेहद खतरनाक होता है. फ्रॉड यूआरएल आपका पर्सनल और प्राइवेट डेटा चुरा सकता है. इसलिए यूआरएल को ध्यान से समझें और फिर वेबसाइट को क्लिक करें.

वेबसाइट से ज्यादा ऐप सुरक्षित
साइबर एक्सपर्ट्स के अनुसार जिस तादात में साइबर अपराधियों ने फेक वेबसाइट का निर्माण कर रखा है. उसमें ठगी की संभावनाएं बहुत ज्यादा है. ऐसे में जरूरत है कि कोई भी गिफ्ट या फिर किसी दूसरे सामान की खरीदारी करनी हो तो आप कमर्शियल वेबसाइट के ऐप का प्रयोग करें ऐप पर ठगी के चांसेस बेहद कम होते हैं.

इसे भी पढ़ें- त्योहारों के सीज़न में ठगों से सावधान ! नए-नए पैंतरे अपना रहे हैं साइबर ठग

ऐसे करें फेक वेबसाइट की पहचान- वेबसाइट का URL जरूर चेक करें

हम अपने मोबाइल फोन, लैपटॉप या डेस्क टॉप पर धड़ल्ले से वेबसाइट सर्च करते हैं. लेकिन एक बार भी हम एड्रेस बार पर ध्यान नहीं देते. इसी का फायदा साइबर अपराधी उठा रहे. नामचीन कमर्शियल वेबसाइट्स की स्पेलिंग के अक्षरों से छेड़छाड़ कर वो फेक वेबसाइट बनाकर लोगों से ठगी कर रहे हैं. इसलिए किसी भी वेबसाइट का URL जरूर चेक करना चाहिए. क्योंकि सुरक्षा की सबसे पहली सीढ़ी यही है. किसी भी वेबसाइट के एड्रेस बार से ही पता चल जाता है आप कहां हैं और कितने सुरक्षित हैं. URL को ध्यान से देखें क्योंकि यूआरएल एक ही वेबसाइट से हो सकता है, नकली वेबसाइट का यूआरएल या तो गायब होगा या फिर किसी वर्ड्स में जोड़ा होगा. इसके अलावा यूआरएल एड्रेस बार के ऊपर वेबसाइट का आइकॉन दिखाई दे रहा है या नहीं. अगर आपको ये आइकॉन नहीं नजर आ रहा है तो जाहिर है ये फेक वेबसाइट है.

HTTPS जरूर चेक करें

HTTPS एक तरह से किसी वेबसाइट का रक्षा कवच है. जो किसी तरह के साइबर अटैक से बचाता है. किसी वेबसाइट पर विजिट करने पर एड्रेस बार में यूआरएल की शुरूआत में HTTPS आता है. अगर किसी वेबसाइट में HTTPS लिखा हुआ नहीं दिख रहा है तो जरूर ये एक फेक वेबसाइट होगा. इस बात का जरूर ध्यान रखें कि शॉपिंग और बैंकिंग वेबसाइट्स में HTTPS प्रोटोकॉल कंपलसरी है.

पॉलिसी पेज जरूर चेक करें

अगर कोई कमर्शियल वेबसाइड कुछ बेच रही है, लुभावने गिफ्ट या ऑफर दे रही है. लेकिन उसमें आपको प्रोडक्ट की सेवा की शर्तें नहीं मिल रही हैं तो यह आपको नुकसान पहुंचा सकती है. आमतौर पर किसी भी असली कमर्शियल वेबसाइट के हेडर या फुटर पर कस्टमर केयर, रिफंड, मनी बैक, गारंटी जैसे पेज मिल जाएंगे. लेकिन ऐसी कोई जानकारी अगर उस कमर्शियल वेबसाइट पर नहीं है तो जरूर ये एक फेक वेबसाइट हो सकती है.

रिव्यू पेज का ना होना

अगर किसी प्रोडक्ड के बारे में इंफो या उसकी जानकारी और उसका इमेज नजर ना आए तो ये एक फेक वेबसाइट हो सकता है. अगर आप उस प्रोडक्ट का रिव्यू Review नहीं देख पा रहे हैं तो सावधान हो जाइए. क्योंकि आपको रिझाने के लिए ये एक फिशिंग वेबसाइट हो सकती है या हो सकता है वो ब्रांड्स के नाम पर नकली सामान बेच रही है.

सेफ ब्राउजिंग करें

सॉफ्टवेयर डेवलपर खुद ब्राउजर बनाकर ब्रांडेड वेबसाइट की तरह उसे बनाकर अपने ब्राउजर के बारे में इंफो पेस्ट करके यूजर की सारी जानकारी देख सकता है. अगर कोई निजी लॉगिन करता है तो उसे भी चुरा सकता है. ऐसी हालात में लोग साइबर अटैक का शिकार होते हैं. इसलिए ऑनलाइन शॉपिंग के लिए सेफ ब्राउजिंग करें. इसके लिए हमेशा स्डैंडर्ड, फेमस और सेफ ब्राउजिंग ही करना चाहिए. जिससे आधे खतरे को आप खुद से दूर रख सकते हैं.

Last Updated : Dec 24, 2021, 8:13 PM IST
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