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कोरोना इफेक्ट: विदेशी 'द्रोणाचार्य' को कोरोना के डर से ग्रामीणों ने किया गांव से बाहर - आइसोलेशन सेंटर रांची

विदेशी कोच को कोरोना के डर से ग्रामीणों ने गांव में रहने की इजाजत नहीं दी. बता दें कि सैकड़ों लड़कियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का फुटबॉलर बनाने वाले अमेरिकन कोच फ्रेंज गैसलर को गांव में नहीं रहने को ग्रामीणों ने भारी मन से कहा. फिलहाल उन्हें उनके दोस्त के घर होम क्वारंटाइन के लिए भेजा गया है.

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खिलाड़ियों के साथ फुटबॉल कोच फ्रेंज गैसलर
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Published : Mar 27, 2020, 7:58 AM IST

रांची: गांव को संवारने वाले एक विदेशी कोच को ग्रामीणों ने कोरोना के डर और इसके प्रकोप से बचने के लिए गांव से बाहर निकाल दिया है. प्रशासन को सूचना देकर कोरोना वायरस से जुड़े जांच करवाए गए. अमेरिकन कोच ने इस गांव के सैकड़ों लड़कियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का फुटबॉलर बनाया है.

देखें पूरी खबर
10 वर्षों से दे रहे हैं फुटबॉल की ट्रेनिंगकोरोना वायरस का ऐसा खौफ की जिसने गांव की सैकड़ों लड़कियों को एक मुकाम तक पहुंचाया. एक बेहतरीन खिलाड़ी बनाया. आज उसी शख्स को ग्रामीणों ने गांव से बाहर निकाल दिया. दरअसल, ओरमांझी के हुटुप गांव में पिछले 10 वर्षों से अमेरिका के मिनोसोटा के रहने वाले फ्रेंज गैसलर गांव की गरीब आदिवासी लड़कियों को फुटबॉल का प्रशिक्षण दे रहे हैं. जब फ्रेंज गांव पहुंचा तब ग्रामीणों ने यह कहते हुए फ्रेंज को गांव से बाहर जाने को कहा कि आप लोग विदेश से आए हैं और विदेश के लोग यह वायरस फैला रहे हैं. इसलिए कृपया करके फिलहाल आप गांव में एक घंटा भी नहीं रह सकते हैं.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन की वजह से झारखंड में फंसे तेलंगाना के 22 छात्र, सीएम ने ट्वीट कर डीसी से जाना हाल

होम क्वारंटाइन के लिए भेजा गया

वहीं, इसकी सूचना मिलने पर प्रशासन की मदद से फ्रेंज, उनकी पत्नी और उनके बच्चे की जांच ओरमांझी स्थित मेदांता अस्पताल में कराई गई. जांच में कोरोना नेगेटिव पाए जाने पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से इन विदेशी नागरिकों को उनके दोस्त के घर होम क्वारंटाइन के लिए भेजा गया है.

2009 से फ्रेंज दे रहे हैं आदिवासी लड़कियों को फुटबॉल का प्रशिक्षण
बता दें कि वर्ष 2009 में अमेरिका के मिनेसोटा से फ्रेंज गैसलोर रांची आए. हावर्ड विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने वाले फ्रेंज ने राजधानी से सटे ओरमांझी का चयन किया. बड़ी मुश्किल से कुछ आदिवासी परिवारों की लड़कियों को जोड़कर अंडर- 13 फुटबॉल टीम बनाई. लड़कियों की मेहनत को देखते हुए उन्हें लगातार वो ट्रेनिंग देते रहे. खेल प्रशिक्षण के साथ-साथ इन लड़कियों को फ्रेंज ने पढ़ाई और अंग्रेजी बोलना भी सिखाया. लड़कियों में जागे आत्मविश्वास को देखते हुए आसपास के लोग भी जागरूक हुए और इस प्रखंड के ग्रामीण आदिवासी लड़कियों को फुटबॉल कैंप में भेजा जाने लगा. इस क्षेत्र की आदिवासी लड़कियां बेहतरीन खिलाड़ी के रूप में उभर कर सामने आईं और यह कैंप ओरमांझी प्रखंड के हुटुप गांव में लगातार संचालित हो रहा है.

ये भी पढ़ें- मनुष्य और प्रकृति के अनोखे जुड़ाव को दर्शाता है 'सरहुल महापर्व', जानिए विशेषताएं

ग्रामीणों ने भारी मन से फ्रेंज को गांव में रहने की इजाजत नहीं दी

इसी बीच कोरोना वायरस ने पूरे विश्व को भयभीत कर दिया और इसकी आग भारत तक आ पहुंची. भारत के लोग भी एहतियातन लगातार इस वायरस से बचाव और फैलाव को रोकने को लेकर कदम उठा रहे हैं .इसी कड़ी में ग्रामीणों ने भारी मन से फ्रेंज को गांव में रहने की इजाजत नहीं दी.

रांची: गांव को संवारने वाले एक विदेशी कोच को ग्रामीणों ने कोरोना के डर और इसके प्रकोप से बचने के लिए गांव से बाहर निकाल दिया है. प्रशासन को सूचना देकर कोरोना वायरस से जुड़े जांच करवाए गए. अमेरिकन कोच ने इस गांव के सैकड़ों लड़कियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का फुटबॉलर बनाया है.

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10 वर्षों से दे रहे हैं फुटबॉल की ट्रेनिंगकोरोना वायरस का ऐसा खौफ की जिसने गांव की सैकड़ों लड़कियों को एक मुकाम तक पहुंचाया. एक बेहतरीन खिलाड़ी बनाया. आज उसी शख्स को ग्रामीणों ने गांव से बाहर निकाल दिया. दरअसल, ओरमांझी के हुटुप गांव में पिछले 10 वर्षों से अमेरिका के मिनोसोटा के रहने वाले फ्रेंज गैसलर गांव की गरीब आदिवासी लड़कियों को फुटबॉल का प्रशिक्षण दे रहे हैं. जब फ्रेंज गांव पहुंचा तब ग्रामीणों ने यह कहते हुए फ्रेंज को गांव से बाहर जाने को कहा कि आप लोग विदेश से आए हैं और विदेश के लोग यह वायरस फैला रहे हैं. इसलिए कृपया करके फिलहाल आप गांव में एक घंटा भी नहीं रह सकते हैं.

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होम क्वारंटाइन के लिए भेजा गया

वहीं, इसकी सूचना मिलने पर प्रशासन की मदद से फ्रेंज, उनकी पत्नी और उनके बच्चे की जांच ओरमांझी स्थित मेदांता अस्पताल में कराई गई. जांच में कोरोना नेगेटिव पाए जाने पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से इन विदेशी नागरिकों को उनके दोस्त के घर होम क्वारंटाइन के लिए भेजा गया है.

2009 से फ्रेंज दे रहे हैं आदिवासी लड़कियों को फुटबॉल का प्रशिक्षण
बता दें कि वर्ष 2009 में अमेरिका के मिनेसोटा से फ्रेंज गैसलोर रांची आए. हावर्ड विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने वाले फ्रेंज ने राजधानी से सटे ओरमांझी का चयन किया. बड़ी मुश्किल से कुछ आदिवासी परिवारों की लड़कियों को जोड़कर अंडर- 13 फुटबॉल टीम बनाई. लड़कियों की मेहनत को देखते हुए उन्हें लगातार वो ट्रेनिंग देते रहे. खेल प्रशिक्षण के साथ-साथ इन लड़कियों को फ्रेंज ने पढ़ाई और अंग्रेजी बोलना भी सिखाया. लड़कियों में जागे आत्मविश्वास को देखते हुए आसपास के लोग भी जागरूक हुए और इस प्रखंड के ग्रामीण आदिवासी लड़कियों को फुटबॉल कैंप में भेजा जाने लगा. इस क्षेत्र की आदिवासी लड़कियां बेहतरीन खिलाड़ी के रूप में उभर कर सामने आईं और यह कैंप ओरमांझी प्रखंड के हुटुप गांव में लगातार संचालित हो रहा है.

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ग्रामीणों ने भारी मन से फ्रेंज को गांव में रहने की इजाजत नहीं दी

इसी बीच कोरोना वायरस ने पूरे विश्व को भयभीत कर दिया और इसकी आग भारत तक आ पहुंची. भारत के लोग भी एहतियातन लगातार इस वायरस से बचाव और फैलाव को रोकने को लेकर कदम उठा रहे हैं .इसी कड़ी में ग्रामीणों ने भारी मन से फ्रेंज को गांव में रहने की इजाजत नहीं दी.

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