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एक क्लिक में जानें छठ महापर्व की क्या है महत्ता, कैसे हुई शुरुआत - सूर्य की उपासना

हिंदू धर्म में सबसे लंबा और सबसे शुद्ध पर्व छठ पूजा को माना जाता है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए आचार्य बृज मोहन मिश्र ने छठ पूजा के विधि विधान, इसकी शुरुआत और प्रचलन के बारे में जानकारी दी.

छठ महापर्व
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Published : Oct 31, 2019, 7:52 AM IST

पटना: आस्था का महापर्व छठ पूजा की तैयारी में लोग जुट गए हैं. इसको लेकर कई कथाएं प्रचलित है. उनमें एक महाभारत काल से जुड़ी हुई है. यह दुनिया का एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें उगते और डूबते सूर्य की पूजा की जाती है. इस साल छठ की शुरुआत 31 अक्टूबर को नहाय-खाय से हुई है. जबकि समाप्ति 3 नवंबर को सुबह सूर्य के अर्घ्य के साथ होगी. इस पर्व को विधि विधान से मनाने के संदर्भ में आचार्य बृज मोहन मिश्र ने ईटीवी भारत से बातचीत की.

देखें स्पेशल स्टोरी

छठ पूजा की परंपरा और विधि विज्ञान के बारे में आचार्य बृज मोहन मिश्र ने बताया कि छठ मूल रूप से सूर्य की उपासना का पर्व है. इस परंपरा की शुरुआत महाभारत काल से हुई है. वनवास के समय पांडवों के सामने हर तरह की समस्याएं होती हैं तब भगवान श्री कृष्ण पांडव से मिलने वन पहुंचते हैं. महाऋषि धौम्य के आश्रम के पास भगवान कृष्ण की मुलाकात पांडवों से होती है जिसमें सूर्य की उपासना की बात की गई है.

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छठ महापर्व

तीन दिनों तक चलता है सूर्य का उपासना
ईटीवी भारत से बातचीत में आचार्य बृज मोहन मिश्र आगे बताते हैं कि सूर्य की उपासना मुख्य रूप से तीन दिन मानी गई है. पहले दिन का उपासना अपने शुद्धीकरण से की जाती है. जब तक हम शुद्ध नहीं होंगे तब तक उपासना नहीं मानी गई है, उसके बाद खरना रखा गया है. खरना का अर्थ आत्म शुद्धि कहा गया है. दूसरे दिन से ही पर्व की शुरुआत डूबते हुए सूर्य से किया गया है. हमारे जीवन में जितनी भी तरह की समस्याएं हैं वह डूबते हुए सूर्य उपासना से की जाती है. अंतःकरण शुद्धि के साथ समस्याओं का निराकरण होने लगता है, हम उगने लगते हैं. अपने विचारों में भी परिवर्तन लाते हैं जिससे जीवन का उदय होने लगता है.

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छठ महापर्व

भगवान सूर्य ने पांडवों को दिए थे अक्षय पात्र
आगे बातचीत करते हुए आचार्य बृज मोहन मिश्र ने बताया कि जब हमें भूख लगती है इसका निवारण माता ही करती हैं. महाभारत काल में पांडव के वनवास के समय द्रौपदी को भोजन बनाना था. द्रौपदी ने कष्टकारी दिनों में सूर्य की उपासना की है. उनके साथ पांडवों ने भी सूर्य की उपासना की थी. जिससे सूर्य प्रसन्न होकर अक्षय पात्र दिए, इसी पात्र में द्रौपदी भोजन का निर्माण करती थीं. यहीं से सूर्य की उपासना के साथ ही छठ पूजा की शुरुआत हो जाती है.

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छठ महापर्व

संकल्पित होकर करना पड़ता है छठ
पहले दिन का महत्व बताते हुए आचार्य बृज मोहन मिश्र ने कहा कि जो कोई भी महिला या पुरुष इस पर्व को उठाते हैं, तो सबसे पहले कर्मणा मनसा वाचा यानी कर्म से मन से और वचन से अपने आप को व्यवस्थित करना पड़ता है. पर्व के लिए संकल्पित होना पड़ता है. संकल्प का शाब्दिक अर्थ पूर्ण रूप से निश्चय करना होता. आचार्य बृज मोहन मिश्र ने बताया कि सूर्य उपासना निर्जल रहकर ही करना पड़ता है.

भगवान सूर्य के लिए बना है गेंहू
खरना का प्रसाद गेहूं के आटे से बनने का कारण बताते हुए आचार्य ने बताया कि हिंदू धर्म में सप्तधान पूजन की सामग्री में दी जाती है. हर कलश स्थापन के लिए सप्तधान अनिवार्य है. गेहूं सूर्य के लिए बना है. चूकि यह पर्व सूर्य की अराधना है इसलिए गेंहू का उपयोग किया जाता है. उसी तरह चंद्रमा का चावल, मंगल का लाल मसूर है. इसीलिए सभी धान्य का अर्थ होता है सप्तधान. सभी ग्रहों का अपना सप्तधान निर्धारित है जो महर्षि वशिष्ठ के द्वारा निर्धारित की गई है.

5, 224 वर्ष पूर्व से चला आ रहा है छठ
छठ पूजा के प्रसाद खाने से मिलने वाले फल के बारे में आचार्य ने बताया कि प्रसाद का अर्थ होता है दूसरे का आशीर्वाद लेन देन की प्रक्रिया. प्रसाद ईश्वरीय हो या देवत्व या फिर किसी मनुष्य के द्वारा हो. उस प्रसाद को ग्रहण करने से तमाम अंतःकरण के विकारों का निर्माण होता है. जो प्रसाद के रूप में शुद्ध होता है और इस प्रसाद ग्रहण से काफी फल मिलता है. उन्होने बताया कि सूर्य की उपासना द्वापर काल में लगभग 5, 224 वर्ष पूर्व पहली बार महाभारत में पांडवों ने इस व्रत को किया था.

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छठ महापर्व

स्त्री और पुरुष दोनों करतें हैं यह पर्व
बता दें कि 4 दिनों तक मनाया जाने वाला यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश सहित संपूर्ण भारतवर्ष में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. छठ पर्व को स्त्री और पुरुष दोनों ही समान रूप से मनाते हैं. इस पूजा के दौरान व्रत धारी लगातार निर्जल 36 घंटे का व्रत रखते हैं.

पटना: आस्था का महापर्व छठ पूजा की तैयारी में लोग जुट गए हैं. इसको लेकर कई कथाएं प्रचलित है. उनमें एक महाभारत काल से जुड़ी हुई है. यह दुनिया का एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें उगते और डूबते सूर्य की पूजा की जाती है. इस साल छठ की शुरुआत 31 अक्टूबर को नहाय-खाय से हुई है. जबकि समाप्ति 3 नवंबर को सुबह सूर्य के अर्घ्य के साथ होगी. इस पर्व को विधि विधान से मनाने के संदर्भ में आचार्य बृज मोहन मिश्र ने ईटीवी भारत से बातचीत की.

देखें स्पेशल स्टोरी

छठ पूजा की परंपरा और विधि विज्ञान के बारे में आचार्य बृज मोहन मिश्र ने बताया कि छठ मूल रूप से सूर्य की उपासना का पर्व है. इस परंपरा की शुरुआत महाभारत काल से हुई है. वनवास के समय पांडवों के सामने हर तरह की समस्याएं होती हैं तब भगवान श्री कृष्ण पांडव से मिलने वन पहुंचते हैं. महाऋषि धौम्य के आश्रम के पास भगवान कृष्ण की मुलाकात पांडवों से होती है जिसमें सूर्य की उपासना की बात की गई है.

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छठ महापर्व

तीन दिनों तक चलता है सूर्य का उपासना
ईटीवी भारत से बातचीत में आचार्य बृज मोहन मिश्र आगे बताते हैं कि सूर्य की उपासना मुख्य रूप से तीन दिन मानी गई है. पहले दिन का उपासना अपने शुद्धीकरण से की जाती है. जब तक हम शुद्ध नहीं होंगे तब तक उपासना नहीं मानी गई है, उसके बाद खरना रखा गया है. खरना का अर्थ आत्म शुद्धि कहा गया है. दूसरे दिन से ही पर्व की शुरुआत डूबते हुए सूर्य से किया गया है. हमारे जीवन में जितनी भी तरह की समस्याएं हैं वह डूबते हुए सूर्य उपासना से की जाती है. अंतःकरण शुद्धि के साथ समस्याओं का निराकरण होने लगता है, हम उगने लगते हैं. अपने विचारों में भी परिवर्तन लाते हैं जिससे जीवन का उदय होने लगता है.

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छठ महापर्व

भगवान सूर्य ने पांडवों को दिए थे अक्षय पात्र
आगे बातचीत करते हुए आचार्य बृज मोहन मिश्र ने बताया कि जब हमें भूख लगती है इसका निवारण माता ही करती हैं. महाभारत काल में पांडव के वनवास के समय द्रौपदी को भोजन बनाना था. द्रौपदी ने कष्टकारी दिनों में सूर्य की उपासना की है. उनके साथ पांडवों ने भी सूर्य की उपासना की थी. जिससे सूर्य प्रसन्न होकर अक्षय पात्र दिए, इसी पात्र में द्रौपदी भोजन का निर्माण करती थीं. यहीं से सूर्य की उपासना के साथ ही छठ पूजा की शुरुआत हो जाती है.

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छठ महापर्व

संकल्पित होकर करना पड़ता है छठ
पहले दिन का महत्व बताते हुए आचार्य बृज मोहन मिश्र ने कहा कि जो कोई भी महिला या पुरुष इस पर्व को उठाते हैं, तो सबसे पहले कर्मणा मनसा वाचा यानी कर्म से मन से और वचन से अपने आप को व्यवस्थित करना पड़ता है. पर्व के लिए संकल्पित होना पड़ता है. संकल्प का शाब्दिक अर्थ पूर्ण रूप से निश्चय करना होता. आचार्य बृज मोहन मिश्र ने बताया कि सूर्य उपासना निर्जल रहकर ही करना पड़ता है.

भगवान सूर्य के लिए बना है गेंहू
खरना का प्रसाद गेहूं के आटे से बनने का कारण बताते हुए आचार्य ने बताया कि हिंदू धर्म में सप्तधान पूजन की सामग्री में दी जाती है. हर कलश स्थापन के लिए सप्तधान अनिवार्य है. गेहूं सूर्य के लिए बना है. चूकि यह पर्व सूर्य की अराधना है इसलिए गेंहू का उपयोग किया जाता है. उसी तरह चंद्रमा का चावल, मंगल का लाल मसूर है. इसीलिए सभी धान्य का अर्थ होता है सप्तधान. सभी ग्रहों का अपना सप्तधान निर्धारित है जो महर्षि वशिष्ठ के द्वारा निर्धारित की गई है.

5, 224 वर्ष पूर्व से चला आ रहा है छठ
छठ पूजा के प्रसाद खाने से मिलने वाले फल के बारे में आचार्य ने बताया कि प्रसाद का अर्थ होता है दूसरे का आशीर्वाद लेन देन की प्रक्रिया. प्रसाद ईश्वरीय हो या देवत्व या फिर किसी मनुष्य के द्वारा हो. उस प्रसाद को ग्रहण करने से तमाम अंतःकरण के विकारों का निर्माण होता है. जो प्रसाद के रूप में शुद्ध होता है और इस प्रसाद ग्रहण से काफी फल मिलता है. उन्होने बताया कि सूर्य की उपासना द्वापर काल में लगभग 5, 224 वर्ष पूर्व पहली बार महाभारत में पांडवों ने इस व्रत को किया था.

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छठ महापर्व

स्त्री और पुरुष दोनों करतें हैं यह पर्व
बता दें कि 4 दिनों तक मनाया जाने वाला यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश सहित संपूर्ण भारतवर्ष में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. छठ पर्व को स्त्री और पुरुष दोनों ही समान रूप से मनाते हैं. इस पूजा के दौरान व्रत धारी लगातार निर्जल 36 घंटे का व्रत रखते हैं.

Intro: हिंदू धर्म में सबसे लंबा और सबसे शुद्ध पर्व छठ पूजा माना जाता है छठ पूजा का का क्या है विधि विधान ,कब से शुरू हुई छठ पूजा का प्रचलन के बारे में ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए आचार्य बृज मोहन मिश्र ने कहा कि यह बहुत पुराना पर्व है महाभारत काल से ही द्रोपती ने छठ पूजा की शुरुआत की थी-इसमें मुख्य रूप से सूर्य का उपासन का पर्व है --


Body:पटना--लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा को लेकर देशभर में धूम मची हुई है लोग छठ पूजा की तैयारी में जुट गए हैं छठ पूजा को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं उनमें से एक महाभारत काल से जुड़ी हुई है यह दुनिया का एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें उगते और डूबते सूर्य की पूजा की जाती है इस साल छठ पूजा की शुरुआत 31 अक्टूबर नहाए खाए से होगी और इसकी समाप्ति 3 नवंबर को सुबह सूर्य के अर्ध्य के साथ होगी ।4 दिनों तक मनाए जाने वाला यह पर्व मुख्य रूप से बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश सहित संपूर्ण भारत वर्ष में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है छठ पूजा को स्त्री और पुरुष दोनों ही समान रूप से मानते हैं इस पूजा के दौरान व्रत धारी लगातार निर्जल 36 घंटे का व्रत रखते हैं। छठ पूजा के विधि विधान को लेकर आचार्य बृज मोहन मिश्र ने कुछ खास बिंदुओं पर चर्चा की
Q. छठ पूजा की परंपरा और विधि विज्ञान क्या है
ans.. यह छठ पर्व सूर्य की उपासना का पर्व है छठ पूजा का परंपरा महाभारत काल से ही मिलते आ रहा है जब पांडवों का वनवास हो जाता है पांडव जब अपने साम्राज्य जुए में हार जाते हैं उसके बाद पांडव वन में जाते हैं। उनके सामने हर तरह की समस्या होती है तब भगवान श्री कृष्ण पांडव से मिलने के लिए वन में जाते हैं महाऋषि धौम्य के आश्रम के पास भगवान श्री कृष्ण की मुलाकात पांडवों से होती है जिसमें सूर्य की उपासना की बात की गई है सूर्य की उपासना मुख्य रूप से तीन दिन मानी गई है पहले दिन का उपासना अपने शुद्धीकरण से की जाती है जब तक हम शुद्ध नहीं होंगे तब तक उपासना नहीं मानी गई है उसके बाद खरना रखा गया है। खरना का अर्थ होता है कि हम अपने आत्म शुद्धि के लिए खरना का करते हैं और दूसरे दिन से ही पर्व की शुरुआत डूबते हुए सूर्य से किया गया है हमारे जीवन में जितनी भी तरह की समस्या है वह डूबते हुए सूर्य उपासना से की जाती है हम अंतःकरण शुद्धि के साथ हमारे समस्याओं का निराकरण होने लगता है हम उगने लगते हैं अपने विचारों में भी परिवर्तन लाते हैं जिससे मेरे जीवन का उदय होने लगता है। इसलिए इस परंपरा की शुरुआत महाभारत काल से ही मानी जाती है।

Q. महाभारत काल से जब इस पर्व की शुरुआत हुई थी यह भी माना जाता है कि छठ पूजा का पर्व बिहार में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है और इस पर्व की शुरुआत मां अपने मायके से हैं करती हैं इसकी परंपरा क्या है

ans. इस प्रश्न के उत्तर में आचार्य बृज मोहन मिश्र का कहना है कि जब हमें भूख लगता है तो भूख के उपाय माता ही करती हैं महाभारत काल में पांडव जब बनवास के क्रम में द्रोपती भी साथ में थी उनके हैं जी में भोजन की व्यवस्था बनाने का था वहीं से द्रोपदी ने सूर्य की उपासना की है और द्रोपति के साथ में पांडवों ने भी सूर्य की उपासना भी की थी। जिससे सूर्य प्रसन्न होकर अक्षय पात्र दिए थे इसी पात्र में द्रोपति भोजन का निर्माण करती थी यहीं से सूर्य की उपासना के साथ ही छठ पूजा की शुरुआत हो जाती है।

Q. यह पर्व सबसे लंबा पर्व है इसमें महिलाएं 36 घंटे तक निर्जल रहकर उपासना करती है इसमें पहले दिन का पर्व का महत्व क्या है

ans. इस सवाल के जवाब में आचार्य ने कहा कि जो भी महिला या पुरुष इस पर्व को उठाते हैं तो सबसे पहले कर्मणा मनसा वाचा यानी कर्म से मन से और वचन से अपने आप को व्यवस्थित करना पड़ता है यानी पर्व के लिए संकल्पित होना पड़ता है। संकल्प का शाब्दिक अर्थ यह हुआ कि हम पूर्ण रूप से निश्चय कर लिए हैं कि सूर्य उपासना को निश्चित तौर पर निर्जल रहकर इस पर्व को पूरा करेंगे इस पर्व को उठाने के लिए किसी भी व्यक्ति को सबसे पहले जो लोग कर रहे हैं उनके द्वारा प्राप्त कर्मणा पर्व को लेकर भी किया जाता है नही तो मांस का मतलब होता है कि कोई भी व्यक्ति अपने मन से भी इस पर्व को कर सकता है इसे लेने देने की जरूरत नहीं होती है।

Q. खरना का जो प्रसाद गेहूं के आटे से ही बनता है इसका मुख्य कारण क्या?
ans.. हिंदू धर्म में सप्तधान पूजन की सामग्री में दी जाती है हर कलश स्थापन के लिए सप्तधान अनिवार्य है। और गेहूं जो सूर्य का अन्य है, जैसे में चंद्रमा का चावल है सूर्य का गेहूं है मंगल का लाल मसूर है इसीलिए सभी धान्य का अर्थ होता है सप्तधान सभी ग्रहों का अपना सप्तधान निर्धारित है जो महर्षि वशिष्ठ के द्वारा निर्धारित की गई है।

Q. छठ पूजा के प्रसाद खाने से कितना बड़ा फल मिलता है?

ans. प्रसाद का अर्थ होता है कि हम दूसरे का आशीर्वाद लेने देने की प्रक्रिया को ही प्रसाद कहते हैं प्रसाद कहीं से प्राप्त होता है जो ईश्वरीय हो या देवत्व हो या फिर किसी मनुष्य के द्वारा हो उस प्रसाद को हम ग्रहण करते हैं। प्रसाद को ग्रहण करने से हमारे तमाम अंतःकरण के विकारों का निर्माण होता है। जो प्रसाद के रूप में शुद्ध होता है और हमें इस प्रसाद ग्रहण से काफी फल मिलता है सूर्य की उपासना द्वापर काल से लगभग 5224 वर्ष हो गया जो पहली बार महाभारत में पांडवों ने इस व्रत को किया था जो महाभारत काल से ही मिलते हुए आ रहा है।



Conclusion: छठ स्पेशल आचार्य बृज मोहन मिश्र के साथ 121
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