रांचीः विनय पासवान और शिव कुमार साहू गुमला के रहने वाले हैं. ये दोनों दिल्ली में दिहाड़ी मजदूर थे लेकिन कोरोना वायरस ने इनकी रोजी-रोटी छीन ली. इनके जैसे अनगिनत मजदूर पत्नी की बिंदिया, मुन्नी की पढ़ाई और मां की दवाई जैसे अनकहे सपनों का लबादा ओढ़े शहरों में दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे थे लेकिन बेबसी ऐसी कि उन्हें खाली हाथ-नंगे पांव गांव लौटना पड़ा. झारखंड के दूसरे प्रवासी मजदूरों का दर्द भी जुदा नही हैं.
सरकार की कोशिश
प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 4 मई को तीन योजनाओं बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर-पितांबर जल समृद्धि योजना और पोटो हो खेल विकास योजना शुरू की है. इन योजनाओं के जरिए पच्चीस करोड़ मानव दिवस का सृजन होने की संभावना है. इसे साथ ही मजदूरों के खाते में लगभग पांच हजार करोड़ रुपये का भुगतान होगा. इसके साथ ही शहरों के अकुशल श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराने के लिए14 अगस्त को मुख्यमंत्री श्रमिक योजना शुरू की गई है. इसमें मनरेगा की तरह ही जॉब कार्ड बनेगा. मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी 274 रुपये के हिसाब से 100 दिन काम या बेरोजगारी भत्ता मिलेगा.
बिरसा हरित ग्राम योजना
इस योजना के तहत ग्रामीणों को फलदार वृक्ष लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. 5 लाख परिवारों को 100-100 पौधों का पट्टा दिया जाएगा. अगले 5 साल तक पेड़ों के सुरक्षित रखने के लिए सरकार आर्थिक सहयोग भी करेगी. एक अनुमान के हिसाब से जब पेड़ पर फल होंगे तो उन परिवारों को 50 हजार रुपये तक की वार्षिक आमदनी भी प्राप्त होगी.
नीलांबर पीतांबर जल समृद्धि योजना
इस योजना के तहत जल संरक्षण की विभिन्न अवसरंचनाओं का निर्माण किया जा रहा है. खेत का पानी खेत में ही रोकने का लक्ष्य रखा गया है. राज्य की वार्षिक जल संरक्षण क्षमता में वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है. 5 लाख एकड़ बंजर भूमि को खेती योग्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. अगले 4 से 5 वर्ष में इस योजना के तहत अनुमानित तौर पर 10,000,0000 मानव दिवस उत्पन्न किए जाएंगे.
पोटो हो खेल विकास योजना का शुभारंभ
इसके तहत राज्य के 4565 पंचायतों में कम से कम एक-एक और पूरे झारखंड में 5 हजार खेल मैदान विकसित किए जाएंगे. मौजूदा वित्त वर्ष में इस योजना के तहत एक अनुमान के हिसाब से एक करोड़ मानव दिवस का आयोजन किया जाएगा. इस साल लगभग 1 हजार मैदान विकसित करने का लक्ष्य है. युवक और युवतियों के लिए खेल सामग्री की व्यवस्था की जाएगी. प्रखंड और जिलास्तर पर प्रशिक्षण केंद्रों का संचालन होगा. खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी में विशेष आरक्षण की सुविधा होगी.
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रोजगार का सच
ईटीवी भारत की टीम ने इन दावों की पड़ताल के लिए राज्य के संथाल परगना, कोलहान और दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडलों के मजदूरों से बात की. गुमला जिले में करीब 22 हजार प्रवासी मजदूरों की वापसी हुई है. इन मजदूरों ने बताया कि उन्हें न तो राशन मिल रहा है और न ही रोजगार. हालांकि उन्हें सरकार से अब भी उम्मीद है और वो शहर नहीं जाना चाहते. वहीं साहिबगंज के मजदूरों की मानें तो उन्हें नियमित रूप से काम नहीं मिल रहा है. यदि ऐसा ही चलता रहा तो फिर से शहर जाने के अलावा और कोई उपाय नहीं बचेगा.
प्रवासियों में कई पढ़े लिखे लोग भी हैं जो मनमुताबिक काम के लिए इंतजार कर रहे हैं या फिर मजबूरन उन्हें कोई और काम करना पड़ रहा है. हुनर होने के बावजूद काम नहीं मिला तो पलायन मजबूरी बन जाएगी. हालांकि ये गांव नहीं छोड़ना चाहते लेकिन करें भी तो क्या? जिन प्रवासी मजदूरों को राज्य सरकार की योजनाएं रास नहीं आ रही हैं वे फिर से पलायन की तैयारी कर चुके हैं. दूसरे राज्यों से मजदूरों को लुभावने ऑफर भी दिए जा रहे हैं और कंपनियां उन्हें लाने के लिए एसी बसों का इंतजाम भी कर रही है.
गांव में मिले रोजगार तो परदेश जाने की क्या जरूरत
साहिबगंज में लगभग 32 हजार प्रवासी मजदूर लौटे हैं. जिला प्रशासन ने 22,617 प्रवासी मजदूरों को जॉब कार्ड दिया है और 5432 प्रवासी मजदूरों को मनरेगा से जोड़कर रोजगार दिया जा चुका है. उपायुक्त वरुण रंजन ने कहा कि प्रवासी मजदूर को रोजगार देने के लिए 5 कमेटियां बनाई गई हैं. पहली कमेटी सरकारी योजनाओं जैसे मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास, शौचालय निर्माण से प्रवासी मजदूरों को जोड़ेगी. दूसरी कमेटी आजीवक मिशन को और मजबूत कर लोगों को जोड़ने का काम करेगी, जैसे डेयरी, मत्स्य पालन, कृषि. महिलाओं को घर मे रोजगार मुहैया कराने के लिए तीसरी कमेटी आचार बनाना,सिलाई,बुनाई सहित अन्य कामों से जोड़ेगी. चौथी कमेटी जो बेरोजगार युवा रोजगार करना चाहते हैं, उन्हें मुद्रा लोन और पीएमईजीपी के तहत लोन मुहैया कराएगी. पांचवीं कमेटी जिला में चल रहे बड़े प्रोजेक्ट्स में रोजगार की कोशिश करेगी.
गुमला जिले में करीब 22 हजार प्रवासी मजदूरों की वापसी हुई है. इनमें से कुछ मजदूरों से बात करने पर उन्होंने बताया कि उन्हें न तो राशन मिल रहा है और न ही रोजगार. हालांकि उन्हें सरकार से अब भी उम्मीद है और वो शहर नहीं जाना चाहते.
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राज्य सरकार ने प्रवासी मजदूरों के निबंधन को लेकर निर्देश जारी किया है लेकिन पश्चिम सिंहभूम जिले से मजदूर बिना निबंधन के ही दूसरे राज्य जा रहा हैं. प्रवासी मजदूर धनंजय महतो बताते हैं कि झारखंड सरकार से काम तो मिला लेकिन दो-चार दिन का ही काम मिलता है, ऐसे में अपना परिवार कैसे चलाएंगे. यहां प्रतिदिन हाजरी के हिसाब से 190 रुपए मिलते हैं. जबकि चेन्नई में ऑपरेटर का काम करने पर महीने के 28 से 30 हजार रुपए मिलते थे. वहीं पिंटू बताते हैं कि सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी उन्हें नहीं है.
जिले के उपायुक्तों के अनुसार दूसरे राज्यों में काम करने जाने वाले मजदूरों को निबंधन करवाना अनिवार्य होगा. क्योंकि बिना निबंधन के अगर मजदूरों को भेज दिया जाता है और भविष्य में उनके साथ वहां पर कुछ अनहोनी घटना घट जाती है तो मजदूर के परिजनों को सूचना देने या सरकार के द्वारा राहत देने के कार्यों में कठिनाई हो सकती है.
क्या कहते हैं अधिकारी
हद तो ये है कि उद्योग विभाग के अधिकारी ये कह रहे हैं कि जिले में यदि उद्योग स्थापित होते हैं तो बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा. वहीं कांग्रेस के एक विधायक तो पलायन के पक्षधर हैं. कोलेबिरा विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी ने कहा कि प्रवासी मजदूर जब बड़े शहरों में जाकर काम करेंगे और पैसे कमाकर लौटेंग तो राज्य की आमदनी बढ़ेगी. इधर, अधिकारी और सत्तारूढ़ पार्टी जेएमएम के नेता सरकार का गुणगान करते नजर आ रहे हैं. उनकी मानें तो प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है और इच्छुक मजदूरों को मनरेगा के तहत काम भी दिया जा रहा है. राज्य में कोई भूखा न रहे इसकी हर संभव कोशिश की जा रही है.
सरकारी नुमाइंदे और हुक्मरान झारखंड में सबकुछ ठीक होने का दावा कर रहे हैं जबकि मजदूरों का दर्द बढ़ता जा रहा है. मजदूर अपने घर-परिवार और अपनी माटी में ही रहना चाहते हैं लेकिन पेट की आग उन्हें फिर से पलायन के लिए मजबूर कर रही है. इन मजदूरों के हालात और सरकारी दावों पर अदम गोंडवी की ये दो लाइनें बिलकुल फिट बैठती हैं. तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है.. मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है.