रांची: झारखंड के लिए कलंक बन चुके अवैध मानव व्यापार के शिकार बच्चों को वापस लाने के लिए झारखंड पुलिस ने बड़ा अभियान शुरू कर दिया है. 2020 के जनवरी महीने में एनसीआरबी के जारी आंकड़ों में झारखंड मानव तस्करी के मामले में पहले नंबर पर था. जिसके बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने डीजीपी कमल नयन चौबे को यह आदेश दिया था कि वह अवैध मानव व्यापार के शिकार बच्चों को वापस लाने के लिए जल्द से जल्द कार्रवाई करें. इसके साथ ही मानव तस्करी की आड़ में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार पर हर हाल में रोक लगाएं.
एनसीआरबी की डाटा में मानव तस्करी में पहले नंबर पर है झारखंड
2020 के जनवरी महीने में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की जो नई रिपोर्ट जारी की गई है, उसमें मानव तस्करी और देह व्यापार के लिए नाबालिगों को खरीदने से संबंधित सबसे अधिक मामले झारखंड में दर्ज किए गए हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की जारी रिपोर्ट यह पुष्टि करती है कि देशभर में 2,367 मानव तस्करी के मामले दर्ज हुए थे, जिनमें सबसे अधिक 373 मामले झारखंड के थे. एनसीआरबी के जुटाए गए आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में दर्ज मामलों में 18 वर्ष से कम उम्र के 17 नाबालिग और 314 नाबालिक लड़कियां मानव तस्करी की शिकार हुईं थी. जबकि 18 वर्ष से अधिक 24 युवक और 78 युवतियां मानव तस्करी की शिकार हुईं हैं. इस तरह कुल 433 लोग मानव तस्करी के शिकार हुए हैं. पुलिस ने वर्ष 2018 में ट्रैफिकिंग के शिकार 158 लोगों को मानव तस्करों के चुंगल से मुक्त भी करवाया था. जिन 158 लोगों को मानव तस्करों के चुंगल से मुक्त करवाया गया था उनमें 58 लोग फोर्स लेबर के लिए मानव तस्करी का शिकार हुए थे. 18 लोग देह व्यापार और शारीरिक शोषण के लिए, 34 लोग घरेलू कामकाज के लिए और 32 लोग बलपूर्वक शादी के लिए मानव तस्करी के शिकार हुए थे. झारखंड के सात लोग भीख मंगवाने के लिए भी मानव तस्करी के शिकार हुए थे.
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देह व्यापार के मामले में भी पहले स्थान पर
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, पूरे देश में देह व्यापार के लिए नाबालिगों को खरीदने से संबंधित कुल 8 मामले दर्ज किए गए थे. इनमें से सबसे अधिक 3 मामले झारखंड में दर्ज किए गए थे. वर्ष 2017 में भी नाबालिग को देह व्यापार के लिए खरीदने संबंधित तीन मामले झारखंड में दर्ज किए गए थे. झारखंड में मानव तस्करी और डायन प्रथा के खिलाफ काम करने वाली रेशमा सिंह की माने तो झारखंड में पलायन बहुत बड़ी समस्या है. उसके पीछे की वजह यहां की गरीबी है और नाबालिग हो या फिर बालिग वे काम के सिलसिले में ही बाहर जाती हैं, जहां पर वे शोषण का शिकार हो जाती हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि आप किसी को अगर वह बालिग है तो बाहर जाने से नहीं रोक सकते हैं, लेकिन वे कहां जा रही हैं, किसके पास काम करने जा रही हैं, इसका डाटा राज्य के पास होना चाहिए. साथ ही साथ उनके पास राज्य से आपातकालीन स्थिति में मदद कैसे मिले इसकी व्यवस्था भी होनी चाहिए.
जांच में दूसरी एजेंसियों की भी मदद
झारखंड पुलिस के प्रवक्ता सह आईजी अभियान साकेत कुमार सिंह के अनुसार, मानव तस्करी को रोकने के लिए झारखंड में कई एएचटीयू थाने काम कर रहे हैं. तस्करी में शामिल बड़े लोगों को चिन्हित किया जा रहा है. उन्हें पकड़ने और उनके खिलाफ जांच में दूसरी एजेंसियों की भी मदद ली जा रही है. इसके अलावा झारखंड के बच्चियों को मानव तस्करों से बचाने के लिए रेलवे स्टेशन बस स्टैंड और दूसरे जगहों पर विशेष नजर रखी जा रही है.
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कड़ी कार्रवाई के मूड में पुलिस
एनसीआरबी के डाटा में मानव तस्करी के मामले में एक नंबर रहने के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मामले को लेकर कई बार खुले मंच से झारखंड के डीजीपी से अपील की थी कि वे मानव तस्करों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करें. मुख्यमंत्री के इस अपील के बाद झारखंड के डीजीपी ने बकायदा एक आदेश भी जारी किया, जिसमें महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कार्रवाई नहीं करने वाले थाना प्रभारियों पर कड़ी कार्रवाई का निर्देश दिया है. डीजीपी ने यह भी आदेश दिया है कि महिलाएं चाहे कहीं की भी रहने वाली हो, वह किसी भी थाने में मामला दर्ज करवा सकती हैं. इसके अलावा डीजीपी ने यह भी आदेश दिया है कि मानव तस्करों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए ईडी के सहयोग से उनकी संपत्ति भी जब्त की जाए. डीजीपी के अनुसार, अगर मानव तस्करों के तार अंतरराज्यीय गिरोह से जुड़े होंगे तो इसमें एनआईए की भी मदद ली जाएगी. एनआईए के साथ मिलकर उन पर कार्रवाई की जाएगी.