रांची: यह कहा जाए कि इस तस्वीर में अनमोल प्रेम का रहस्य छिपा है तो शायद गलत नहीं होगा. ऐसे ही नहीं कहते हैं कि झारखंड के प्रभारी मुख्य सचिव रहे सजल चक्रवर्ती सच्चे पशु प्रेमी थे. सजल दा की तस्वीर के सामने बैठे इस बेजुबान का नाम है 'बाबू'. कुछ साल पहले सड़क पर लड़खड़ाते हुए चलता देख सजल उसे अपने घर ले आए थे. इसे अपनी औलाद की तरह पाला और नाम दिया 'बाबू'.
यह तस्वीर सजल चक्रवर्ती के बचपन के दोस्त प्रदीप घोष की पत्नी ने 16 नवंबर 2020 को ली है. तब बंगाली रीति रिवाज के अनुसार श्राद्ध कर्म के बाद नियम भंग का अनुष्ठान हो रहा था. इस अनुष्ठान के दौरान बेहद करीबी लोग मछली खाते हैं. समझ सकते हैं कि जिस घर में मछली की खुशबू तैर रही थी, उस वक्त यह बेजुबान अपने मालिक की तस्वीर निहार रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे सजल चक्रवर्ती से बातें कर रहा हो.
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ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत के दौरान प्रदीप घोष ने बताया कि सजल चक्रवर्ती के दीपाटोली स्थित घर में बाबू के अलावा लंगड़ा, कलुआ, माही और जीमी भी रहते हैं. इनकी देखरेख कुसुम नाम की आया करती है. उनके फ्लैट में 15 खरगोश भी हैं. इन बेजुबानों के लिए उन्होंने एक अलग फंड बना रखा था. प्रदीप घोष ने बताया कि जब सजल चक्रवर्ती चाईबासा में उपायुक्त थे, तब उन्होंने सड़कों पर बेहाल पड़े करीब 30 कुत्तों को अपने घर में जगह दी थी. वे जब सर्ड के निदेशक थे तो 8 आवारा कुत्तों को कैंपस में पाले हुए थे. एविएशन निदेशक रखते हुए 10 आवारा कुत्तों को नई जिंदगी दी थी.
सजल चक्रवर्ती को असहाय आवारा कुत्तों से लगाव था. उनकी पहल से ही रांची नगर निगम क्षेत्र में कुत्तों की नसबंदी का काम शुरू हुआ था. उनका पशु प्रेम ऐसा था कि इन आवारा कुत्तों को उनके बेडरूम में बेड पर भी बैठने की पूरी छूट थी. सजल चक्रवर्ती को चारा घोटाला के चाईबासा कोषागार से अवैध निकासी मामले में सजा हुई थी. कोर्ट में आना जाना लगा रहता था लेकिन उन्होंने कभी वकील नियुक्त नहीं किया. अपना पक्ष खुद रखा. 5 नवंबर को निधन के बाद राजकीय सम्मान के साथ सजल चक्रवर्ती का अंतिम संस्कार हुआ था. उन्हें उनके मौसेरे भाई, ममेरे भाई और कोलकाता के एक मित्र ने मुखाग्नि दी थी. सजल दा को जानने वाले कहते हैं कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी शीर्ष पदों पर रहते हुए भी सिर्फ दो चीजें ही कमाई है, चंद दोस्त और चंद बेजुबान.