रांचीः विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ कोरोना वायरस के कारण शिक्षा व्यवस्था डावांडोल ही रही. झारखंड में अभी-भी प्राइमरी स्कूलों की कक्षाओं पर ताले लटके हैं. कोरोना का खौफ भले ही कम हो गया हो. लेकिन अभिभावकों में डर अब भी बरकरार है. हाई स्कूलों में भी शत प्रतिशत बच्चे नहीं पहुंच रहे हैं. ऑनलाइन क्लास का खामियाजा सबसे ज्यादा सरकारी स्कूल के बच्चों को उठाना पड़ रहा है. मिड डे मील भी सवालों के घेरे में है.
इसे भी पढ़ें- 63 हजार पारा शिक्षकों और शिक्षाकर्मियों को मिलेगा बीमा का लाभ, झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद ने तैयार की योजना
वर्ष 2020 कोरोना महामारी से उभरा भी नहीं था कि 2021 भी पूरी तरह कोरोना के चपेट में ही रहा. विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ कोरोना महामारी का बुरा असर शिक्षा जगत पर देखने को मिला. इस वर्ष भी प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा व्यवस्था पर कोरोना का असर देखने को मिला. प्राइमरी स्कूलों की कक्षाओं पर अभी-भी ताले लटके हैं. अभिभावकों के मन में अभी भी डर बरकरार है. हाई स्कूलों में 100 फीसदी बच्चे नहीं पहुंच रहे. कोरोना काल में ऑनलाइन क्लासेस का खामियाजा सरकारी स्कूलों के बच्चों को उठाना पड़ रहा है. सरकारी स्कूलों में दी जाने वाले मिड डे मील भी अव्यवस्थित है.
समुचित तरीके से वर्ष 2021 में मिड डे मील का राशन और कुकिंग कॉस्ट की राशि भी विद्यार्थियों को नहीं मिला है और मध्यान्न भोजन व्यवस्था पर सवाल खड़े किए जाते रहे हैं. कोरोना महामारी के दौर में देशभर में स्कूलों के बंद होने से झारखंड में भी इसका बुरा प्रभाव पड़ा है. झारखंड के 14 से 18 वर्ष आयु वर्ग के करीब 80 प्रतिशत बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ा है. UNICEF के एक रिसर्च के मुताबिक पठन-पाठन में कोरोना काल में स्कूलों के बंद होने के दौरान बच्चों में सीखने का आकलन किया गया है. जिसमें ज्यादातर छात्रों और उनके अभिभावकों ने माना कि बच्चों ने महामारी से पहले की तुलना में काफी कम सीखा है. ऑनलाइन पठन-पाठन के कारण कई बुरा प्रभाव भी बच्चों पर पड़ा है और इसका असर बच्चों के सेहत पर भी देखने को मिल रहा है. सरकारी प्रयास के बावजूद कम कनेक्टिविटी और डिजिटल उपकरणों तक पहुंच ना होने से दुरुस्त शिक्षा को शुरू करने के प्रयासों में रुकावट आई.
प्रमोशन से पास हुए बच्चे
शैक्षणिक सत्र 2020-2021 में मैट्रिक और इंटर के बच्चों को प्रमोट किया गया. विश्वविद्यालयों में मिड सेमेस्टर और सेमेस्टर की परीक्षाओं को ना लेकर विद्यार्थियों को उतीर्ण किया गया. पहली कक्षा से नौवीं कक्षा तक के बच्चों को भी प्रमोट कर ही पास किया गया. शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-तैसे ऑनलाइन परीक्षाओं के जरिए परीक्षार्थी सफल घोषित किए गए और इस प्रक्रिया के कारण शिक्षा की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ा है. आने वाले समय में इस सेशन के बच्चों को कई परेशानियों से जूझना पड़ सकता है. प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के बच्चों को प्रमोशन दिया गया. प्राथमिक व माध्यमिक या उच्च शिक्षा छात्रों का पठन पाठन बुरी तरह से प्रभावित है. कुछ बड़े संस्थान ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली का इस्तेमाल कर अपने छात्रों को सहयोग करने की पूरी कोशिश की. लेकिन ऐसे संस्थान गिनती भर के ही हैं. इसके बावजूद इनको ऑनलाइन पठन-पाठन का समुचित फायदा नहीं मिला.
इसे भी पढ़ें- उपेक्षित आदिम जनजाति अब हो रहे शिक्षित, स्वयं सहायता समूह की महिलाएं जगा रहीं शिक्षा की अलख
कोचिंग संस्थानों की हालत खराब
वर्ष 2021 में भी शहर के अधिकतर कोरोना के कारण कोचिंग संस्थान बंद ही रहे. झारखंड के सभी कोचिंग संस्थानों का भविष्य अधर में लटक गया. सिर्फ रांची में ही पिछले 10 सालों में 60 से अधिक कोचिंग इंस्टिट्यूट खुले थे. इसके अलावा तकरीबन 12 से 15 ऐसे छोटे-छोटे संस्थान हैं जो 5 से 7 साल पुराने होंगे. 10 साल में भले ही 5 संस्थान बंद ना हुए हों. लेकिन कोरोना की मार से 6 महीने में 50 से अधिक कोचिंग संस्थान का शटर गिर चुका है.
झारखंड कोचिंग एसोसिएशन के अनुसार राज्य भर में 4 हजार से अधिक कोचिंग संस्थान हैं. लेकिन ना तो इन कोचिंग संस्थान के पास बच्चे हैं और ना ही ऑनलाइन क्लासेस में कोचिंग संस्थान के बच्चे रुचि दिखा रहे हैं. कोरोना संक्रमण के कारण स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थानों को पूरी तरह बंद रखा गया. ऐसे में एडमिशन भी इन कोचिंग संस्थानों में ना के बराबर हुआ. आमदनी का मूल स्रोत ही बंद हो जाने से संस्थानों की हालत खराब हो गयी जो संस्थान आठ से 10 साल पुराने हैं और सालाना औसतन 50 लाख से एक करोड़ तक की आय करते थे. उन्हें अब बिल्डिंग का किराया भी नसीब नहीं हो रहा है. हालांकि सितंबर 2021 से शिक्षा जगत को धीरे-धीरे सामान्य करने की कोशिश हुई. राज्य सरकार ने कोचिंग संस्थानों के साथ साथ सीनियर बच्चों के लिए भी स्कूल ओपन करने का निर्देश दिया. इसके बावजूद कोचिंग संस्थानों की हालत वर्ष 2021 में जस का तस ही बनी रही. अब तक प्राइमरी स्कूलों को खोले जाने का निर्णय नहीं हो सका है. उच्च शिक्षा की स्थिति भी इस वर्ष कुछ खास नहीं रहा. लेकिन नया वर्ष भी अपने साथ नया खतरा लेकर आ रहा है, ऐसे में शिक्षा व्यवस्था एक फिर से बेपटरी होने की आशंका है.