पलामूः पूरा देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा और इसे अमृत महोत्सव का नाम दिया गया है. लेकिन समाज में एक ऐसा तबका भी है, जिसने आजादी के 75 साल बाद इसके महत्व को जाना और समझा है. आदिम जनजाति के इस समुदाय ने अपने गांव में पहली बार राष्ट्रगान गाया है.
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झारखंड की राजधानी रांची से करीब 270 किलोमीटर दूर पलामू के मनातू थाना क्षेत्र की सरगुजा का इलाका. यह गांव आदिम जनजातियों की बहुलता वाला इलाका है और चारों तरफ से जंगल पहाड़ों से घिरा हुआ है. यह इलाका कभी नक्सलियों का सुरक्षित ठिकाना हुआ करता था और उनके ही नारे गूंजते थे. लेकिन रविवार को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर यह पूरा इलाका राष्ट्र गान और भारत माता की जय के नारों से गूंज उठा.
पहली बार हुआ झंडोत्तोलन, लोगों ने गाया राष्ट्र गान
सरगुजा में पहली बार रविवार को आजादी के 75 वर्ष बाद झंडोत्तोलन हुआ, लोगों ने पूरे जोश के साथ राष्ट्र गान किया. सरगुजा के ग्रामीण पिछले पांच दिनों से स्वतंत्रता दिवस समारोह की तैयारी कर रहे थे. सरगुजा के परहिया टोला के लोग स्वतंत्रता दिवस समारोह को लेकर लोगों में काफी उत्साह था.
जेएसएलपीएस के उड़ान प्रोजेक्ट से जुड़ी कुमारी नम्रता बताती हैं कि पिछले पांच दिनों से इलाके में स्वतंत्रता दिवस समारोह की तैयारी चल रही थी, ग्रामीण पांच दिन से राष्ट्र गान का अभ्यास कर रहे थे. ग्रामीण बच्चों के साथ कई प्रतियोगी समारोह का भी आयोजन किया गया है. इलाके के लोगों ने पहली बार समारोह को मनाया है.
पारंपरिक तरीके से मोमबत्ती उत्पादन के लिए जाना जाता है इलाका
मनातू का सरगुजा का इलाका पारंपरिक तरीके से मोमबत्ती के उत्पादन के लिए जाना जाता है. घीरसीरी पंचायत के सरगुजा और समरलेटा में आदिम जनजाति के 12 से अधिक परिवार पीढ़ियों से मधुमखी के छत्ते से मोम बनाने के काम से जुड़े हुए हैं. दोनों गांव पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर से करीब 80 और अपने प्रखंड मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है.
दोनों गांव में पहुंचने के लिए सिर्फ एक ही कच्चा रास्ता है, जहां 10 किलोमीटर का सफर तय करने में एक घंटे से अधिक लगता है. ईटीवी भारत में कुछ दिन पहले इनके पारंपरिक तरीके से मोमबत्ती के उत्पादन के खबर को दिखाया था. खबर के बाद पलामू जिला प्रशासन ने पहल करते हुए इनके उत्पादन को बिडिंग करने की घोषणा की थी.
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जेएसएलपीएस की उड़ान प्रोजेक्ट से बदल रही इलाके की तस्वीर
जेएसएलपीएस की उड़ान परियोजना के तहत इलाके की तस्वीर बदल रही है, लोग मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं. इसी की बानगी है कि आदिम जनजाति का ये तबका अब भारतीय लोकतंत्र को जानना शुरू कर दिया है. उड़ान प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर कुमारी नम्रता काफी दिनों से आदिम जनजाति परिवार के बीच काम कर रही हैं. उन्होंने बताया कि आदिम जनजाति के परिवारों को जागरूक करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं. जिससे वो अपने अधिकारों के बारे में और सरकारी योजनाओं के बारे में जानें और सजग रहें.