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सिक्कों की खनक से खनकती है इनकी जिंदगी, दो वक्त की रोटी का है सवाल - जमशेदपुर

सड़क किनारे भीख मांगने वाले बच्चे मजबूरी में ही भीख मांगते हैं. दो वक्त की रोटी की खातिर वो लोगों के आगे हाथ फैलाते हैं.

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Published : Mar 5, 2019, 10:12 PM IST

जमशेदपुरः भीख मांगकर गुजारा करना किसी का शौक नहीं, बल्कि उसकी मजबूरी होती है. सड़क किनारे भीख मांगते बच्चे भी उसी मजबूरी के शिकार हैं. जो दो वक्त की रोटी की खातिर लोगों के आगे हाथ फैलाते हैं.

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लौहनगरी के जुबली पार्क के मनोरम दृश्यों को देखने लोगों की भीड़ आती है. तो वहीं दूसरी तरफ चंद मासूम बच्चे अपने परिजनों के साथ दो वक्त की रोटी की तलाश में आते हैं. शाम के 6 बजे से ये लोग सड़क के किनारे बैठकर भीख मांगते हैं. इसी से इनकी जिंदगी चलती है.


ये बच्चे गरीब हैं. कुछ बच्चे दिव्यांग हैं, इनकी दिनचर्या पैसे जुटाकर अपना भरण-पोषण करना होता है. हालांकि लोगों का कहना है कि ऐसे बच्चों की परवरिश पर विशेष ध्यान देना चाहिए, इससे इनकी जिंदगी संवर जाएगी.

इन बच्चों के पुनर्वास के लिए ढेर सारी प्रक्रिया है. बाल कल्याण समिति का काम होता है कि बच्चों को रेस्क्यू करके संबंधित थाना के द्वारा बाल कल्याण को सुपुर्द करना. सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए पुनर्वास का काम किया जाता है. हालांकि बच्चों के स्वतंत्रता को नहीं छीना जा सकता है.

बच्चे अगर बाल कल्याण समिति के पास आते हैं, उसके बाद बच्चों को स्कूल में नामांकन कराने के साथ शिक्षा से जोड़ा जाता है. बच्चों की प्रॉपर काउंसलिंग की जाती है. जो बच्चे पढ़ना चाहते हैं, उन्हें पढ़ाया जाता है. सरकार के द्वारा संचालित अनाथालय और बाल गृह में उनकी देखभाल की जाती है.

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बेशक इन बच्चों के लिए कई योजनाएं चल रही हैं. काम भी बहुत हो रहे हैं. लेकिन कहीं न कहीं इन बच्चों तक वो योजनाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. या फिर सरकारी तंत्र की पहुंच से वो दूर रह जा रहे हैं.

जमशेदपुरः भीख मांगकर गुजारा करना किसी का शौक नहीं, बल्कि उसकी मजबूरी होती है. सड़क किनारे भीख मांगते बच्चे भी उसी मजबूरी के शिकार हैं. जो दो वक्त की रोटी की खातिर लोगों के आगे हाथ फैलाते हैं.

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लौहनगरी के जुबली पार्क के मनोरम दृश्यों को देखने लोगों की भीड़ आती है. तो वहीं दूसरी तरफ चंद मासूम बच्चे अपने परिजनों के साथ दो वक्त की रोटी की तलाश में आते हैं. शाम के 6 बजे से ये लोग सड़क के किनारे बैठकर भीख मांगते हैं. इसी से इनकी जिंदगी चलती है.


ये बच्चे गरीब हैं. कुछ बच्चे दिव्यांग हैं, इनकी दिनचर्या पैसे जुटाकर अपना भरण-पोषण करना होता है. हालांकि लोगों का कहना है कि ऐसे बच्चों की परवरिश पर विशेष ध्यान देना चाहिए, इससे इनकी जिंदगी संवर जाएगी.

इन बच्चों के पुनर्वास के लिए ढेर सारी प्रक्रिया है. बाल कल्याण समिति का काम होता है कि बच्चों को रेस्क्यू करके संबंधित थाना के द्वारा बाल कल्याण को सुपुर्द करना. सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए पुनर्वास का काम किया जाता है. हालांकि बच्चों के स्वतंत्रता को नहीं छीना जा सकता है.

बच्चे अगर बाल कल्याण समिति के पास आते हैं, उसके बाद बच्चों को स्कूल में नामांकन कराने के साथ शिक्षा से जोड़ा जाता है. बच्चों की प्रॉपर काउंसलिंग की जाती है. जो बच्चे पढ़ना चाहते हैं, उन्हें पढ़ाया जाता है. सरकार के द्वारा संचालित अनाथालय और बाल गृह में उनकी देखभाल की जाती है.

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बेशक इन बच्चों के लिए कई योजनाएं चल रही हैं. काम भी बहुत हो रहे हैं. लेकिन कहीं न कहीं इन बच्चों तक वो योजनाएं नहीं पहुंच पा रही हैं. या फिर सरकारी तंत्र की पहुंच से वो दूर रह जा रहे हैं.

Intro:एंकर-- सिक्कों के खनक ने से खनकती है इनकी जिंदगी, दो जून की रोटी के लिए जदोजहद कर रहे हैं,ये बच्चे।एक रिपोर्ट


Body:वीओ1--यह तस्वीर है लौहनगरी के जुबली पार्क की जहाँ एक तरफ जुबली पार्क के मनोरम दृश्यों को देखने लोगों की भीड़ आती है. तो वहीं दूसरी तरफ इन बच्चों के साथ उनकी माताएँ दो वक्त की रोटी की तलाश में है.शाम के छः बजे से ये लोग सड़क के किनारे बैठकर सिक्कों की तलाश में जुट जाते हैं.एक तरफ करोड़ो रुपए खर्च करके उत्सव रूपी मनाया जा रहा है.वहीं दूसरी तरफ ऐसे भी बच्चे हैं. जो गरीब बच्चे हैं। कुछ बच्चे शरीर से अपाहिज हैं जिनकी दिनचर्या पैसे जुटाकर ही अपना भरण-पोषण करना होता है. कुछ बच्चे अपाहिज भी होते हैं जो काम धाम नहीं कर पाते हैं ऐसे बच्चों के लिए चिंतन करना चाहिए। जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए,पढ़ने लिखने एवं उनकी परवरिश अच्छी हो सके इसका ध्यान प्रशाषन को रखना चाहिए.
बाइट--विनोद कुमार(स्थानीय निवासी)
वीओ2-- बच्चों के पुनर्वास के लिए ढेर सारी प्रक्रिया है.बाल कल्याण समिति का काम होता है बच्चों को रेस्क्यू करके संबंधित थाना के द्वारा बाल कल्याण को सुपुर्द करना.सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए पुनर्वास का काम किया जाता है.हालांकि बच्चों के स्वतंत्रता को नहीं छीना जा सकता है।बच्चे अगर बाल कल्याण समिति के पास आते हैं उसके बाद बच्चों को स्कूल में नामांकन कराने के साथ शिक्षा से जोड़ा जाता है।बच्चों की प्रॉपर काउंसलिंग की जाती है एवं जो बच्चे पढ़ना चाहते हैं उन्हें पढ़ाया जाता है। सरकार के द्वारा संचालित अनाथालय तथा बाल गृह में उनकी देखभाल की जाती है।
बाइट--चंचल कुमारी(बाल संरक्षण पदाधिकारी)


Conclusion:बहरहाल इन बच्चों के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए क्योंकि इनका जीवन सड़कों पर भीख मांगते हुए गुजर रहा है।
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