जमशेदपुर: संथाली भाषा के विद्वान शिक्षाविद और पद्मश्री से सम्मानित प्रोफेसर दिगंबर हांसदा का करनडीह सारजोमटोला स्थित निवास स्थान पर निधन हो गया. उनके निधन पर राज्य के मुख्यमंत्री ने शोक व्यक्त किया है. शुक्रवार 20 नवंबर को करनडीह क्षेत्र में राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार होगा.
उनके निधन पर संथाली समाज के अलावा राजनीतिक गैर राजनीतिक क्षेत्र में शोक की लहर है. वहीं, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री समेत कई नेताओं ने उनके आवास पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी है, जबकि राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके निधन पर दुख व्यक्त किया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि संताली भाषा को विश्व पटल पर ले जाने में हांसदा जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है. उनका निधन शिक्षा और साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है. परमात्मा उनकी आत्मा को शांति प्रदान कर परिवार को दुःख की इस घड़ी को सहन करने की शक्ति दें.
प्रोफेसर दिगंबर हासंदा का जन्म 16 अक्टूबर 1939 में टाटा-घाटशिला एनएच-33 के किनारे बसा डोबापानी गांव में एक गरीब किसान परिवार के घर में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा राजनगर के राजदोहा स्थित मामा के घर में हुआ था. पोटका के मानपुर से हाई स्कूल से पास करने के बाद प्रोफेसर हांसदा चाईबासा चले गए. चाईबासा के टाटा कॉलेज में उन्होने स्नातक की पढाई की. स्नातक के बाद वे रांची विश्व विद्यालय से एमए की डिग्री लेने के बाद संताली भाषा पर रिर्सच करना शुरु कर दिया. प्रोफेसर दिगंबर को बचपन से ही अपने संताली भाषा से बेहद लगाव था. बचपन से ही उन्हें किताब लिखने का शौक था और इसी उद्देश्य से उन्होंने संताली भाषा में कई किताब भी लिख डाली.
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संताली भाषा में लिखी कई किताब
प्रोफेसर हासंदा ने सताली भाषा में कई पुस्तकें भी लिखी है, जिनमें प्रमुख रूप सरना, गड़या-पड़या (सग्रह), संताली लोक कथा का संग्रह, भारोत्तेर लौकीक देव देवी, गंगा माला शामील है. प्रोफेसर हांसदा ने हिन्दी, अंग्रेजी, बंग्ला और ओड़िया भाषाओं के महत्वपूर्ण किताबों का अनुवाद किया. 2018 में सरकार द्वारा 73 लोगों को पद्मश्री से नवाजा गया था, जिनमें दिगंबर हांदसा का भी नाम शामिल था. उन्हें राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था.