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होलिका दहन में बुटझंगरी जलाने की परंपरा, जानिए आखिर क्या है इसके पीछे मान्यता

होलिका दहन 17 मार्च 2022 को है उसके अलगे दिन यानी 18 मार्च हो होली का त्योहार है. होलिका से जुड़ी कई मान्यताएं और परंपराए हैं. हजारीबाग में होलिका दहन से जुड़ी एक खास परंपरा है. इस दिन लोग होलिका में चने जिसे स्थानीय भाषा में बूट झंगरी करते हैं जलाई जाती है.

tradition of burning boot jhangri in Holika Dahan in Hazaribag
tradition of burning boot jhangri in Holika Dahan in Hazaribag
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Published : Mar 17, 2022, 4:08 PM IST

Updated : Mar 17, 2022, 4:35 PM IST

हजारीबाग: रंगों का त्योहार होली हिंदुओं का महत्वपूर्ण त्योहार में से एक है. इसके एक दिन पहले होलिका दहन पर्व मनाया जाता है. इस पर्व के साथ कुछ परंपरा जुड़ी रहती है. हजारीबाग में होलिका दहन से भी एक परंपरा सदियों से चली आ रही है. हिंदू धर्म मानने वाले होलिका दहन के बाद बूट झंगरी जिसे चना भी कहा जाता है उसे होलिका में जलाते हैं. फिर प्रसाद स्वरूप उसे खाया जातै है.


हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहार होली का बेहद खास महत्व है. होलिका दहन के बाद नए साल की शुरुआत होती है. ऐसे में कुछ परंपरा भी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली जा रही है. उनमें से एक है होलिका दहन के दौरान बूट झंगरी जिसे चना भी कहा जाता है उसे जलाने की. हजारीबाग में शायद ही ऐसा कोई चौक चौराहा हो जहां किसान चना बेचते नजर ना आए. हजारीबाग में चने को स्थानीय भाषा में लोग बूट झंगरी भी कहते हैं. होलिका दहन के समय चना आग में डालने की परंपरा है. इसके बाद सुबह होली शुरू होने के पहले परिवार के लोग प्रसाद स्वरूप उस चने को खाते हैं. कहा जाए तो पहला निवाला नया साल का होता है. हजारीबाग के प्रसिद्ध महावीर स्थान के पुजारी भी बताते हैं कि यह सदियों पुरानी परंपरा है. जिसका निर्वाहन यहां के लोग करते आ रहे हैं. यह पहली फसल होती है जिसे अग्नि देवता को समर्पित की जाती है. इस कारण इसका विशेष महत्व भी है.

देखें वीडियो

ये भी पढ़ें: जानें कहां से हुई थी होलिका दहन की शुरुआत, यहां आज भी राख से खेली जाती है होली

हर एक घर में आज के दिन लोग चना खरीद कर लाते हैं. हजारीबाग के विभिन्न चौक चौराहों पर किसान चना बेचते हुए भी नजर आते हैं. इस दिन लाखों रुपए के चने की बिक्री होती है. किसान भी कहते हैं कि यह सदियों पुरानी परंपरा है. लोग होलिका दहन के दिन अपने खेतों से चने लाकर बाजार में बेचते हैं. शाम होते-होते पूरी फसल बिक जाती है. ग्राहक भी बताते हैं कि यह वे सदियों से इस परंपरा को निभा रहे हैं. वे कहते हैं कि 'हमारे पिताजी चना होलिका में जलाया करते थे आज हम लोग जला रहे हैं.' लोगों का कहना है कि रीति रिवाज हमारी सभ्यता संस्कृति को जीवित रखती है. हमारा भी ये दायित्व है कि हम अपनी पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी परंपरा को जीवित रखें.

हजारीबाग: रंगों का त्योहार होली हिंदुओं का महत्वपूर्ण त्योहार में से एक है. इसके एक दिन पहले होलिका दहन पर्व मनाया जाता है. इस पर्व के साथ कुछ परंपरा जुड़ी रहती है. हजारीबाग में होलिका दहन से भी एक परंपरा सदियों से चली आ रही है. हिंदू धर्म मानने वाले होलिका दहन के बाद बूट झंगरी जिसे चना भी कहा जाता है उसे होलिका में जलाते हैं. फिर प्रसाद स्वरूप उसे खाया जातै है.


हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहार होली का बेहद खास महत्व है. होलिका दहन के बाद नए साल की शुरुआत होती है. ऐसे में कुछ परंपरा भी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली जा रही है. उनमें से एक है होलिका दहन के दौरान बूट झंगरी जिसे चना भी कहा जाता है उसे जलाने की. हजारीबाग में शायद ही ऐसा कोई चौक चौराहा हो जहां किसान चना बेचते नजर ना आए. हजारीबाग में चने को स्थानीय भाषा में लोग बूट झंगरी भी कहते हैं. होलिका दहन के समय चना आग में डालने की परंपरा है. इसके बाद सुबह होली शुरू होने के पहले परिवार के लोग प्रसाद स्वरूप उस चने को खाते हैं. कहा जाए तो पहला निवाला नया साल का होता है. हजारीबाग के प्रसिद्ध महावीर स्थान के पुजारी भी बताते हैं कि यह सदियों पुरानी परंपरा है. जिसका निर्वाहन यहां के लोग करते आ रहे हैं. यह पहली फसल होती है जिसे अग्नि देवता को समर्पित की जाती है. इस कारण इसका विशेष महत्व भी है.

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हर एक घर में आज के दिन लोग चना खरीद कर लाते हैं. हजारीबाग के विभिन्न चौक चौराहों पर किसान चना बेचते हुए भी नजर आते हैं. इस दिन लाखों रुपए के चने की बिक्री होती है. किसान भी कहते हैं कि यह सदियों पुरानी परंपरा है. लोग होलिका दहन के दिन अपने खेतों से चने लाकर बाजार में बेचते हैं. शाम होते-होते पूरी फसल बिक जाती है. ग्राहक भी बताते हैं कि यह वे सदियों से इस परंपरा को निभा रहे हैं. वे कहते हैं कि 'हमारे पिताजी चना होलिका में जलाया करते थे आज हम लोग जला रहे हैं.' लोगों का कहना है कि रीति रिवाज हमारी सभ्यता संस्कृति को जीवित रखती है. हमारा भी ये दायित्व है कि हम अपनी पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी परंपरा को जीवित रखें.

Last Updated : Mar 17, 2022, 4:35 PM IST
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