हजारीबाग: पेट की भूख ऐसी दर्द है जिसके चलते कोई भी व्यक्ति कुछ भी कर जाने को मजबूर हो जाता है. ऐसे में कई कुशल श्रमिक भी हैं, जो कुदाल उठाने को मजबूर हैं. ऐसे ही कुछ मजदूर हजारीबाग के मेरु पंचायत में काम कर रहे हैं. जब इनका बचाया हुआ पैसा खत्म हो गया तो इनके पास काम करना मजबूरी हो गई. काम नहीं मिला तो मुखिया ने मदद की और इन्हें मनरेगा से जोड़ दिया. ऐसे में अब ये कुदाल चलाकर 194 रुपए कमा रहे हैं. इनका कहना है कि नहीं से तो हां अच्छा होता है. घर बैठे हुए थे, पॉकेट में पैसा नहीं था. घर में अनाज की आवश्यकता है. ऐसे में हम लोगों ने कुदाल उठाया है और काम में लग गए हैं.
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केस-2
मोहम्मद जोहार मुंबई में बड़े व्यवसायी के घर में ड्राइवर का काम किया करते थे. जहां उन्हें 20 हजार रुपए वेतन मिला करता था. कोरोना का कहर ऐसा आया कि व्यवसायी घर में लॉक हो गए और इन्हें काम से बाहर कर दिया. आलम यह है कि अब यह हजारीबाग में मिट्टी खोदने का काम कर रहे हैं. इनका भी कहना है कि कोरोना ने बर्बाद कर दिया और अब मट्टी खोदने का काम कर रहे हैं. उनका यह भी कहना है कि कम से कम जीने के लिए सरकार ने मनरेगा के तहत काम तो दे दिया है, लेकिन इतने कम पैसे से न पेट की आग हमारी ठंडी होगी और न परिवारवालों की.
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विक्रम दिल्ली में प्लंबर का काम किया करते थे. कुशल श्रमिक होने के कारण दिल्ली में इन्हें अच्छा खासा पैसा भी मिला करता था. महानगर होने के कारण कमाने का विकल्प भी खुला हुआ था, लेकिन अब विक्रम दिल्ली में नहीं हजारीबाग के अपने गांव में हैं. उनका कहना है कि बड़ी मुश्किल से दिल्ली से हजारीबाग पहुंचे हैं. 2 महीना तक दिल्ली में लॉकडाउन था और वे अपने खोली में कैद थे. सरकार ने मदद किया और गांव पहुंचे हैं. लेकिन अब पैसा नहीं है. इसलिए अपने मुखिया के पास गए और मुखिया ने काम पर लगाया. आज मिट्टी काटने को विवश हैं, क्योंकि दूसरा विकल्प नहीं है.
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'रोजगार देने का काम जरूर कर रहे हैं'
वहीं, मुखिया भी कहती हैं कि कई लोग रोजगार मांगने के लिए पहुंच रहे हैं. ऐसे में कुशल श्रमिक की संख्या भी अच्छी खासी है. लेकिन फिलहाल लोगों के पास दूसरा वैसा काम नहीं है कि उन्हें रोजगार दें. ऐसे में मनरेगा ही एकमात्र रोजगार देने का साधन है. मुखिया ने कहा कि सरकार ने जो व्यवस्था दिया है, उसके तहत उन्हें वे रोजगार देने का काम जरूर कर रहे हैं.
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