हजारीबाग: आविष्कार आवश्यकता की जननी होती है, इसे हजारीबाग के महेश करमाली ने सच कर दिखाया है. महेश ने अपनी सोच को धरातल पर उतारकर कम लागत में ऐसा यंत्र बनाया है जो बैल और ट्रैक्टर की जगह ले सकता है. देखिए ये रिपोर्ट
जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बसा है उच्चाधना गांव जहां पक्की सड़क भी नहीं है और सुविधा के नाम पर सिर्फ बिजली दिखती है. इसी तंग गांव के बीच महेश करमाली ने खेती के लिए अनोखा यंत्र बना लिया है. जो अब ट्रैक्टर या फिर बैल की जगह ले सकता है. महेश करमाली पेशे से दिहाड़ी मजदूर है जिसने अपने काबिलियत और हुनर के जरिए एक ऐसा यंत्र बनाया है जिसका उपयोग खेत जोतने में किया जा रहा है.
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पैसे के अभाव और गरीबी ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उसके खेत में फसल कैसे उगेगी. चूंकी खेत जोतने के लिए ट्रैक्टर या बैल की की जरूरत होती है लेकिन पैसे नहीं होने के कारण महेश कारमाली ट्रैक्टर भाड़े पर नहीं ले सकता था और ना ही उसके पास बैल थे. इसे देखते हुए उसने कबाड़ी के सामान से ट्रैक्टर नुमा छोटा सा यंत्र बनाया है. जो कम लागत में बनकर तैयार हो गया है. अब वह इस मशीन के जरिए खेतों को जोत पा रहा है, जिसे बनाने के लिए उसे महज 10 से 12 हजार रूपये खर्च करना पड़ा. पहले उन्होंने 3 हजार रूपये का इंतजाम कर सेकंड हैंड स्कूटर खरीदा और उस स्कूटर से मशीन बना डाला. जिसका नाम उसने 'पावर टिलर' दिया है. जिसके जरिए अब वह अपना खेत जोत रहे हैं और उम्मीद करता है कि इस बार बंपर फसल होगी. जिससे वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर पाएगा.
इसे बनाने के लिए वह 3 दिनों तक अपने घर भी नहीं आया और अपने दोस्त की मदद से वेल्डिंग दुकान पर रात दिन काम करता रहा. यह डीजल से चलता है और खेत जोतने के लिए काफी कम ईंधन का उपयोग होता है. उसका यह भी मानना है कि इससे ट्रैक्टर की तुलना में काफी किफायती दर में खेत जोता जा सकता है.जब वह अपने मशीन लेकर खेत में उतरा और उसके मशीन की चर्चा हर ओर होने लगी. इसे देखकर आस-पास के गांव के लोग भी उसके खेत पर पहुंचे और उसके मशीन को देखकर आश्चर्यचकित हुए.
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महेश करमाली बताते हैं कि इस मशीन के जरिए अब उसकी गरीबी दूर हो जाएगी और वह अच्छे से खेती भी कर पाएगा. तो वहीं समाज के लोगों और ग्रामीणों का कहना है कि उसने यह यह सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके गांव का लड़का ऐसा मशीन बनाएगा जो चर्चा का विषय जाएगा आलम यह है कि अब समाज के लोग उसे सम्मानित करने घर भी आ रहे हैं.
दरअसल महेश करमाली बचपन से ही पूना में रहता था. जहां उसके मां पिता मजदूरी करते थे। इसी दौरान वो एक गैराज में काम भी करता था. गेराज में काम करता था।लेकिन पैसे के अभाव में पढ़ नहीं पाया. लेकिन अपने उस अनुभव से खेत जोतने का मशीन बना लिया है.