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कण-कण में राम! संतोष ने प्रभु श्रीराम की बांस से बनी प्रतिमा में फूंकी जान

कहते हैं हुनर उम्र का मोहताज नहीं होता. एक हुनरमंद छात्र ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है. गिरिडीह का संतोष बांस से कलाकृतियां बनाता है. संतोष के हाथ से बनी बांस की प्रभु श्रीराम की प्रतिमा ऐसी कि मानो अभी बोल उठेंगी.

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बांस से कलाकृतियां
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Published : Oct 25, 2021, 5:48 PM IST

गिरिडीहः हुनरमंद संतोष बांस से ही किसी की प्रतिमा को जीवंत कर देता है. पढ़ाई के साथ-साथ वह पार्ट टाइम में बांस की प्रतिमा और सजावट का सामान बनाता है. इस दीपावली पर संतोष ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की एक जानदार प्रतिमा बनाई है. बांस की चमक और सजावट ऐसी कि मानो ये जीवंत प्रतिमा हो.

इसे भी पढ़ें- 'बांस' बना स्वावलंबन का आधार, 'मन की बात' कार्यक्रम में पीएम मोदी मीरा देवी से करेंगे बात

ग्रामीण परिवेश में प्रतिभा देखने को मिलती है ऐसे ही प्रतिभा के धनी हैं संतोष महली. संतोष बांस से किसी की प्रतिमा बना देते हैं. कई दिनों की मेहनत के बाद एक प्रतिमा को बनाने में संतोष कामयाब होता है लेकिन इस मेहनत की कद्र नहीं है. इस बार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की प्रतिमा संतोष ने बनायी है. इस प्रतिमा से संतोष को काफी उम्मीदें हैं. उसे उम्मीद है कि जिस भगवान के अयोध्या वापस आने पर दीपों का पर्व दीपावली मनाया जाता है उसी भगवान की प्रतिमा से शायद उसके घरों में दीया जले और ये दीपावली बेहतर हो और खुशहाली आए.

देखें पूरी खबर
खानदानी है बांस का कारोबार
संतोष महली गिरिडीह के सदर प्रखंड अंतर्गत पांडेयडीह पंचायत के फुलजोरी निवासी हैं. उनके पिता राजकुमार महली और मां जहरी देवी दशकों से बांस का सूप, दउरा बनाकर बेचते रहे हैं. हालांकि इस कारोबार से उन्हें बहुत ज्यादा कमाई नहीं होती है, बमुश्किल उनका घर चलता है.
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बांस से बनी प्रभु श्रीराम और बजरंग बली की प्रतिमा
पढ़ाई के साथ काम करता है संतोष

इतिहास विषय में स्नातक की पढ़ाई कर चुका संतोष भी घर को संभालने में लगा है. संतोष बताता है कि मां-पिता के साथ सूप, टोकरी नहीं बनाता है. उसके पास जो कोई ऑर्डर आता है तो वह काम कर देता है. यह भी बताया कि एक प्रतिमा को बनाने में 7-15 दिनों तक का समय लगता है.

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बांस से बनी राधा-कृष्ण की मूर्ति


बहुत कम मिलता है ऑर्डर
संतोष का यह भी कहना है कि उसकी बनायी गयी मूर्तियों या अन्य कलाकृति की तारीफ तो सभी करते हैं लेकिन काम के लिए ऑर्डर कम मिलता है. उसने कहा कि झारखंड सरकार भी उन हुनरमंदों की तरफ ध्यान नहीं देती. जबकि असम या अन्य राज्यों में बांस से जुड़े उद्योग को सरकार सहयोग कर रही है. झारखंड सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए. दूसरी तरफ स्थानीय समाजसेवी कहते हैं कि सरकार को इस दिशा में ध्यान देने की जरूरत है. प्रणय प्रबोध नामक युवक का कहना है कि हुनरमंदों को लेकर समाज को भी बेहतर सोचने की दरकार है.

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बांस से बना खिलौना

इसे भी पढ़ें- बांस के सहारे महिलाएं चलाती है अपनी रोजी-रोटी, आत्मनिर्भर भारत का सपना हो रहा साकार

बांसः आदिम संस्कृति और परंपरा का द्योतक

बांस, जंगलों में पाया जाने वाला सर्वसुलभ पेड़. बांस आदिम परंपरा और संस्कृति का द्योतक है. आदिम जमाने से लोगों ने बांस को जीवन का आधार बनाया. बदलते वक्त के साथ बांस से तरह-तरह की जरूरत की चीजों का निर्माण लोगों ने किया. झारखंड में बांस से बनी चीजों का काफी महत्व है. यहां दैनिक जीवन में भी इसका काफी उपयोग है. पूजा-पाठ हो या कोई सामाजिक आयोजन बांस से बनी चीजें शुद्ध मानी जाती है. इसलिए ऐसे पावन मौके पर बांस से बनी चीजों का इस्तेमाल होता है. आज बदलते वक्त के साथ बांस की कलाकृति भी काफी मशहूर है. बांस से बनी सजावट की सामग्री का डंका विदेशों में भी बज रहा है.

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बांस से बनी फूल

बांस से बने सामान

  • बड़ी टोकरी
  • छोटी टोकरी
  • खांची
  • सुप
  • दाड़ी पल्ला तराजू
  • धान खोचा

गिरिडीहः हुनरमंद संतोष बांस से ही किसी की प्रतिमा को जीवंत कर देता है. पढ़ाई के साथ-साथ वह पार्ट टाइम में बांस की प्रतिमा और सजावट का सामान बनाता है. इस दीपावली पर संतोष ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की एक जानदार प्रतिमा बनाई है. बांस की चमक और सजावट ऐसी कि मानो ये जीवंत प्रतिमा हो.

इसे भी पढ़ें- 'बांस' बना स्वावलंबन का आधार, 'मन की बात' कार्यक्रम में पीएम मोदी मीरा देवी से करेंगे बात

ग्रामीण परिवेश में प्रतिभा देखने को मिलती है ऐसे ही प्रतिभा के धनी हैं संतोष महली. संतोष बांस से किसी की प्रतिमा बना देते हैं. कई दिनों की मेहनत के बाद एक प्रतिमा को बनाने में संतोष कामयाब होता है लेकिन इस मेहनत की कद्र नहीं है. इस बार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की प्रतिमा संतोष ने बनायी है. इस प्रतिमा से संतोष को काफी उम्मीदें हैं. उसे उम्मीद है कि जिस भगवान के अयोध्या वापस आने पर दीपों का पर्व दीपावली मनाया जाता है उसी भगवान की प्रतिमा से शायद उसके घरों में दीया जले और ये दीपावली बेहतर हो और खुशहाली आए.

देखें पूरी खबर
खानदानी है बांस का कारोबारसंतोष महली गिरिडीह के सदर प्रखंड अंतर्गत पांडेयडीह पंचायत के फुलजोरी निवासी हैं. उनके पिता राजकुमार महली और मां जहरी देवी दशकों से बांस का सूप, दउरा बनाकर बेचते रहे हैं. हालांकि इस कारोबार से उन्हें बहुत ज्यादा कमाई नहीं होती है, बमुश्किल उनका घर चलता है.
santosh-made-idol-of-lord-shri-ram-from-bamboo-in-giridih
बांस से बनी प्रभु श्रीराम और बजरंग बली की प्रतिमा
पढ़ाई के साथ काम करता है संतोष

इतिहास विषय में स्नातक की पढ़ाई कर चुका संतोष भी घर को संभालने में लगा है. संतोष बताता है कि मां-पिता के साथ सूप, टोकरी नहीं बनाता है. उसके पास जो कोई ऑर्डर आता है तो वह काम कर देता है. यह भी बताया कि एक प्रतिमा को बनाने में 7-15 दिनों तक का समय लगता है.

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बांस से बनी राधा-कृष्ण की मूर्ति


बहुत कम मिलता है ऑर्डर
संतोष का यह भी कहना है कि उसकी बनायी गयी मूर्तियों या अन्य कलाकृति की तारीफ तो सभी करते हैं लेकिन काम के लिए ऑर्डर कम मिलता है. उसने कहा कि झारखंड सरकार भी उन हुनरमंदों की तरफ ध्यान नहीं देती. जबकि असम या अन्य राज्यों में बांस से जुड़े उद्योग को सरकार सहयोग कर रही है. झारखंड सरकार को इस दिशा में पहल करनी चाहिए. दूसरी तरफ स्थानीय समाजसेवी कहते हैं कि सरकार को इस दिशा में ध्यान देने की जरूरत है. प्रणय प्रबोध नामक युवक का कहना है कि हुनरमंदों को लेकर समाज को भी बेहतर सोचने की दरकार है.

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बांस से बना खिलौना

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बांसः आदिम संस्कृति और परंपरा का द्योतक

बांस, जंगलों में पाया जाने वाला सर्वसुलभ पेड़. बांस आदिम परंपरा और संस्कृति का द्योतक है. आदिम जमाने से लोगों ने बांस को जीवन का आधार बनाया. बदलते वक्त के साथ बांस से तरह-तरह की जरूरत की चीजों का निर्माण लोगों ने किया. झारखंड में बांस से बनी चीजों का काफी महत्व है. यहां दैनिक जीवन में भी इसका काफी उपयोग है. पूजा-पाठ हो या कोई सामाजिक आयोजन बांस से बनी चीजें शुद्ध मानी जाती है. इसलिए ऐसे पावन मौके पर बांस से बनी चीजों का इस्तेमाल होता है. आज बदलते वक्त के साथ बांस की कलाकृति भी काफी मशहूर है. बांस से बनी सजावट की सामग्री का डंका विदेशों में भी बज रहा है.

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बांस से बनी फूल

बांस से बने सामान

  • बड़ी टोकरी
  • छोटी टोकरी
  • खांची
  • सुप
  • दाड़ी पल्ला तराजू
  • धान खोचा

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