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सूरजी की मौत के बाद भी नहीं बदली लक्ष्मीबथान गांव की सूरत, आजादी के 75 वर्ष बाद भी टापूनुमा जिंदगी जी रहे हैं यहां के लोग

आजादी के 75 वर्ष हो चुके हैं. देश में आज Azadi Ka Amrit Mahotsav मनाया जा रहा है लेकिन अभी भी ऐसे कई गांव के जहां के लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है. ऐसा ही एक गांव तिसरी प्रखंड का लक्ष्मीबथान हैं. यहां के लोगों को बिजली, पानी क्या एक पगडंडी भी नसीब नहीं हैं. यहीं की एक गर्भवती महिला की मौत खाट पर अस्पताल लाने के क्रम में हो गई थी. इस घटना के डेढ़ वर्ष बाद ईटीवी भारत की टीम ने गांव के हालात का जायजा लिया.

Lack of basic facilities in Laxmibathan village
Lack of basic facilities in Laxmibathan village
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Published : Aug 13, 2022, 8:19 PM IST

Updated : Aug 13, 2022, 10:12 PM IST

गिरिडीह: देश में आज आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मनाया जा रहा है लेकिन अभी भी ऐसे कई गांव के जहां के लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित (Deprived Of Basic Amenities) रहना पड़ रहा है. गिरिडीह जिले के गावां-तिसरी प्रखंड की सीमा पर (Border Of Gawan-Tisri Block) है लक्ष्मीबथान गांव (Laxmibathan village). यहां से बिहार की भी दूरी अधिक नहीं है. लगभग डेढ़ वर्ष पहले यह गांव चर्चे में तब आया था जब यहां की एक गर्भवती महिला सूरजी देवी और उसके पेट में पल रहे बच्चे की मौत हो गई. सूरजी की मौत ने व्यवस्था को जोर का तमाचा था. दरअसल सूरजी जिस गांव में रहती थी वहां तक पहुंचने का कोई साधन ही नहीं हैं. सड़क तो क्या पगडंडी भी नहीं हैं.

ये भी पढ़ें: खाट पर स्वास्थ्य व्यवस्थाः प्रसूता को मौत के बाद भी नहीं मिल सकी एंबुलेंस, जानें पूरी बात

सूरजी के गांव जाने के लिए पहाड़ और जंगल से होकर जाना पड़ता है. पैदल लगभग 6 से 7 किलोमीटर चलना पड़ता है, तब जाकर सड़क मिलती है. घटना के दिन (फरवरी 2021) सूरजी को प्रसव पीड़ा हुआ था. साधन नहीं रहने के कारण परिजन खाट पर ही लादकर सूरजी को लेकर गावां के सरकारी अस्पताल तक चले. घंटों चलने बाद सूरजी को गावां के सरकारी अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन उसने दम तोड़ दिया.

देखें वीडियो

ईटीवी भारत की खबर से मचा था हड़कंप: इस घटना की खबर सबसे पहले ईटीवी भारत ने ही उस वक्त प्रकाशित की थी. खबर प्रकाशित होने के बाद प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मच गया. अधिकारी डैमेज कंट्रोल में जुट गए. दूसरे दिन ही अधिकारियों की टीम जैसे तैसे पैदल ही गांव पहुंची. यहां विकास का सपना दिखाया गया. सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य की सुविधा देने का भरोसा दिया गया, लेकिन सरकारी वायदों का क्या. इसे पूरा होने में भी तो लंबा समय चाहिए. हुआ भी ऐसा ही. सूरजी की मौत के डेढ़ वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां की व्यवस्था जस की तस बनी हुई है. आज भी यहां जाने के लिए जंगल और पहाड़ से होकर गुजरना पड़ता है. यहां के लोग नदी का ही पानी पीते हैं. बिजली तो बस सपना मात्र है. रोजगार का साधन नहीं है. विकास के नाम पर बस एक स्कूल है जहां शिक्षक आते हैं लेकिन विद्यार्थियों की संख्या पर्याप्त नहीं हो पाती.

बाबूलाल मरांडी और अन्नपूर्णा देवी का क्षेत्र: लक्ष्मीबथान गांव (Laxmibathan village) धनवार विधानसभा और कोडरमा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. धनवार के विधायक बाबूलाल मरांडी हैं जबकि कोडरमा की सांसद केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी हैं. दोनों दिग्गज नेता हैं. सूरजी की मौत के बाद बाबूलाल मरांडी यहां आए थे और लोगों से उनकी समस्या को सुनी थी. बाबूलाल ने यहां के लोगों को भरोसा दिया है कि क्षेत्र का विकास होगा. कहा जा रहा है कि यहां के विकास को लेकर रिपोर्ट तैयार की गई लेकिन उसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है.

लोगों को है उम्मीद कि होगा विकास: यहां गांव जिला मुख्यालय से लगभग 90 किमी की दूरी पर स्थित है. 30 घरों की इस बस्ती में ज्यादातर आदिवासी ही रहते हैं. गांव से नजदीक गावां प्रखंड पड़ता है लेकिन 7 किमी का दूभर रास्ता तय करना पड़ता है. इस दौरान नदी और नाला भी पार करना पड़ता है. यहां के ग्रामीण बुधन, कैला टुडू, बाजो सोरेन, जागो मुर्मू बताते हैं कि सूरजी जब मरी तो काफी कुछ वादा किया गया. लगा कि मरते मरते सूरजी ने प्रशासनिक व्यवस्था को जगा दिया, लेकिन ऐसा हो ना सका. समय गुजरता गया और इस गांव को लोग भूलते गए. लोगों का कहना है कि पहले सड़क और पानी की व्यवस्था हो जाती तो जिंदगी कुछ सुगम रहती. काम करने भी लोग जा सकते थे. लोगों का कहना है कि उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और क्षेत्र के विधायक बाबूलाल मरांडी से काफी उम्मीदें हैं. उन्हें यकीन है कि एक दिन यहां के लोगों की जिंदगी में खुशहाली आएगी.

गिरिडीह: देश में आज आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मनाया जा रहा है लेकिन अभी भी ऐसे कई गांव के जहां के लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित (Deprived Of Basic Amenities) रहना पड़ रहा है. गिरिडीह जिले के गावां-तिसरी प्रखंड की सीमा पर (Border Of Gawan-Tisri Block) है लक्ष्मीबथान गांव (Laxmibathan village). यहां से बिहार की भी दूरी अधिक नहीं है. लगभग डेढ़ वर्ष पहले यह गांव चर्चे में तब आया था जब यहां की एक गर्भवती महिला सूरजी देवी और उसके पेट में पल रहे बच्चे की मौत हो गई. सूरजी की मौत ने व्यवस्था को जोर का तमाचा था. दरअसल सूरजी जिस गांव में रहती थी वहां तक पहुंचने का कोई साधन ही नहीं हैं. सड़क तो क्या पगडंडी भी नहीं हैं.

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सूरजी के गांव जाने के लिए पहाड़ और जंगल से होकर जाना पड़ता है. पैदल लगभग 6 से 7 किलोमीटर चलना पड़ता है, तब जाकर सड़क मिलती है. घटना के दिन (फरवरी 2021) सूरजी को प्रसव पीड़ा हुआ था. साधन नहीं रहने के कारण परिजन खाट पर ही लादकर सूरजी को लेकर गावां के सरकारी अस्पताल तक चले. घंटों चलने बाद सूरजी को गावां के सरकारी अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन उसने दम तोड़ दिया.

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ईटीवी भारत की खबर से मचा था हड़कंप: इस घटना की खबर सबसे पहले ईटीवी भारत ने ही उस वक्त प्रकाशित की थी. खबर प्रकाशित होने के बाद प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मच गया. अधिकारी डैमेज कंट्रोल में जुट गए. दूसरे दिन ही अधिकारियों की टीम जैसे तैसे पैदल ही गांव पहुंची. यहां विकास का सपना दिखाया गया. सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य की सुविधा देने का भरोसा दिया गया, लेकिन सरकारी वायदों का क्या. इसे पूरा होने में भी तो लंबा समय चाहिए. हुआ भी ऐसा ही. सूरजी की मौत के डेढ़ वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां की व्यवस्था जस की तस बनी हुई है. आज भी यहां जाने के लिए जंगल और पहाड़ से होकर गुजरना पड़ता है. यहां के लोग नदी का ही पानी पीते हैं. बिजली तो बस सपना मात्र है. रोजगार का साधन नहीं है. विकास के नाम पर बस एक स्कूल है जहां शिक्षक आते हैं लेकिन विद्यार्थियों की संख्या पर्याप्त नहीं हो पाती.

बाबूलाल मरांडी और अन्नपूर्णा देवी का क्षेत्र: लक्ष्मीबथान गांव (Laxmibathan village) धनवार विधानसभा और कोडरमा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. धनवार के विधायक बाबूलाल मरांडी हैं जबकि कोडरमा की सांसद केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी हैं. दोनों दिग्गज नेता हैं. सूरजी की मौत के बाद बाबूलाल मरांडी यहां आए थे और लोगों से उनकी समस्या को सुनी थी. बाबूलाल ने यहां के लोगों को भरोसा दिया है कि क्षेत्र का विकास होगा. कहा जा रहा है कि यहां के विकास को लेकर रिपोर्ट तैयार की गई लेकिन उसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है.

लोगों को है उम्मीद कि होगा विकास: यहां गांव जिला मुख्यालय से लगभग 90 किमी की दूरी पर स्थित है. 30 घरों की इस बस्ती में ज्यादातर आदिवासी ही रहते हैं. गांव से नजदीक गावां प्रखंड पड़ता है लेकिन 7 किमी का दूभर रास्ता तय करना पड़ता है. इस दौरान नदी और नाला भी पार करना पड़ता है. यहां के ग्रामीण बुधन, कैला टुडू, बाजो सोरेन, जागो मुर्मू बताते हैं कि सूरजी जब मरी तो काफी कुछ वादा किया गया. लगा कि मरते मरते सूरजी ने प्रशासनिक व्यवस्था को जगा दिया, लेकिन ऐसा हो ना सका. समय गुजरता गया और इस गांव को लोग भूलते गए. लोगों का कहना है कि पहले सड़क और पानी की व्यवस्था हो जाती तो जिंदगी कुछ सुगम रहती. काम करने भी लोग जा सकते थे. लोगों का कहना है कि उन्हें राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और क्षेत्र के विधायक बाबूलाल मरांडी से काफी उम्मीदें हैं. उन्हें यकीन है कि एक दिन यहां के लोगों की जिंदगी में खुशहाली आएगी.

Last Updated : Aug 13, 2022, 10:12 PM IST
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