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दुमका: गार्ड के हाथों में जनजातीय शोध संस्थान की जिम्मेदारी, लोगों में नाराजगी - जनजातीय शोध संस्थान उपेक्षित

दुमका का  डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान सरकारी उपेक्षा की मार झेल रहा है. बदहाली का आलम यह है कि संस्थान की जिम्मेदारी एक सफाई कर्मी के हाथों में है, जिसे लेकर लोगों में काफी नाराजगी है.

दुमका में बदहाल है जनजातीय शोध संस्थान
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Published : Sep 12, 2019, 7:59 PM IST

दुमका: जनजातीय समाज पर शोध करने के लिए झारखंड सरकार द्वारा दुमका में 10 साल पहले डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान की स्थापना की गई थी. इस संस्थान का उद्देश्य जनजाति समाज से जुड़ी गतिविधियों पर रिसर्च करना था. इसके साथ-साथ जो व्यक्ति आदिवासी समुदाय के लोगों पर शोध करना चाहते हैं उनके लिए किताबें और तमाम तरह के आंकड़े उपलब्ध कराना था.

दुमका में बदहाल है जनजातीय शोध संस्थान

संस्थान की हाल है बदहाल
जनजातीय शोध संस्थान की बदहाली का आलम यह है कि पहले यहां नियमित अधिकारी और कर्मी पदस्थापित थे. इसके बाद रांची से अनुबंधकर्मियों को भेजा गया था. अब स्थिति यह है कि इस संस्थान की जिम्मेदारी एक सफाई कर्मी के हाथों में है.

ये भी पढ़ें - पुलिस की सक्रियता से टली मॉब लिंचिंग की घटना, धार्मिक स्थल में शराब पीते देख युवक की पिटाई

जनजातीय समुदाय और साहित्य से जुड़े लोगों में नाराजगी

इस शोध संस्थान के सरकारी उपेक्षा से जनजाति समाज के लोगों में काफी नाराजगी है. इसके साथ ही साहित्य से जुड़े लोग भी संस्थान की उपेक्षा की आलोचना कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि जब सरकार ने इतना बड़ा संस्थान यहां खोला जरूर है, लेकिन उसके अनुरूप व्यवस्था क्यों नहीं दी गई है. सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

अधिकारी भी हैं उदासीन

इस जनजातीय शोध संस्थान की हो रही उपेक्षा को लेकर दुमका के पदाधिकारियों का कहना है कि यह रांची से संचालित होता है इसलिए वह कुछ कह नहीं सकते हैं. संथालपरगना में जनजातीय समुदाय के लोगों की संख्या कुल आबादी की 50% से अधिक है. ऐसे में इस समाज की गतिविधियों जुड़ा यह संस्थान काफी उपयोगी साबित हो सकता है. लेकिन इस पर सरकार की उपेक्षा और उदासीनता समझ से परे है .

दुमका: जनजातीय समाज पर शोध करने के लिए झारखंड सरकार द्वारा दुमका में 10 साल पहले डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान की स्थापना की गई थी. इस संस्थान का उद्देश्य जनजाति समाज से जुड़ी गतिविधियों पर रिसर्च करना था. इसके साथ-साथ जो व्यक्ति आदिवासी समुदाय के लोगों पर शोध करना चाहते हैं उनके लिए किताबें और तमाम तरह के आंकड़े उपलब्ध कराना था.

दुमका में बदहाल है जनजातीय शोध संस्थान

संस्थान की हाल है बदहाल
जनजातीय शोध संस्थान की बदहाली का आलम यह है कि पहले यहां नियमित अधिकारी और कर्मी पदस्थापित थे. इसके बाद रांची से अनुबंधकर्मियों को भेजा गया था. अब स्थिति यह है कि इस संस्थान की जिम्मेदारी एक सफाई कर्मी के हाथों में है.

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जनजातीय समुदाय और साहित्य से जुड़े लोगों में नाराजगी

इस शोध संस्थान के सरकारी उपेक्षा से जनजाति समाज के लोगों में काफी नाराजगी है. इसके साथ ही साहित्य से जुड़े लोग भी संस्थान की उपेक्षा की आलोचना कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि जब सरकार ने इतना बड़ा संस्थान यहां खोला जरूर है, लेकिन उसके अनुरूप व्यवस्था क्यों नहीं दी गई है. सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

अधिकारी भी हैं उदासीन

इस जनजातीय शोध संस्थान की हो रही उपेक्षा को लेकर दुमका के पदाधिकारियों का कहना है कि यह रांची से संचालित होता है इसलिए वह कुछ कह नहीं सकते हैं. संथालपरगना में जनजातीय समुदाय के लोगों की संख्या कुल आबादी की 50% से अधिक है. ऐसे में इस समाज की गतिविधियों जुड़ा यह संस्थान काफी उपयोगी साबित हो सकता है. लेकिन इस पर सरकार की उपेक्षा और उदासीनता समझ से परे है .

Intro:दुमका -
जनजातीय समाज पर शोध करने के लिए झारखंड सरकार द्वारा दुमका में 10 वर्ष पहले डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान की स्थापना की गई थी । इस शोध संस्थान में जनजाति समाज से जुड़े तमाम गतिविधियां जैसे उनका ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, उनकी वर्तमान स्थिति , उनके सामाजिक तौर तरीके उनके लिए बनाए जाने वाले विकास योजनाओं जैसी तमाम तथ्यों का रिसर्च करना था । साथ ही साथ जो व्यक्ति ट्राइबल समुदाय के लोगों पर रिसर्च करना चाहते हैं या कर रहे हैं उनके लिए पुस्तकें और तमाम तरह के आंकड़े उपलब्ध कराना था ।

संस्थान की हालत दिन-ब-दिन होती गई बदहाल ।
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इस जनजातीय शोध संस्थान की हालत दिन-ब-दिन बदहाल होती चली गई । पहले सरकार द्वारा यहां नियमित अधिकारी और कर्मी पदस्थापित थे । बाद में रांची से अनुबंधकर्मियों को भेजा गया अब स्थिति तो यह है कि सिर्फ एक झाड़ूदार के जिम्मे यह शोध संस्थान संचालित है ।


Body:जनजातीय समुदाय और साहित्य से जुड़े लोगों में नाराजगी ।
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इस शोध संस्थान के सरकारी उपेक्षा से जनजाति समाज के लोगों में काफी नाराजगी है । इसके साथ ही साहित्य से जुड़े लोग भी इसकी अवहेलना की आलोचना कर रहे हैं । लोगों का कहना है कि जब सरकार ने इतना बड़ा संस्थान यहां खोला तो उस अनुरूप व्यवस्था क्यों नहीं दी , जो इस तरह इसे उपेक्षित छोड़ दिया गया है । वे सरकार से इस पर ध्यान देने की मांग कर रहे हैं ।
बाईंट - मृत्यंजय उरांव , स्थानीय नागरिक
बाईंट - अमरेन्द्र सुमन , साहित्यकार


Conclusion:दुमका के अधिकारी कुछ भी नहीं कहना चाहते ।
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झारखंड सरकार के इस जनजातीय शोध संस्थान की हो रही उपेक्षा की वजह को लेकर जब हमने जिले के प्रशासनिक पदाधिकारी से बात की तो उनका साफ कहना है कि यह रांची से संचालित होता है इसलिए हम कुछ नहीं कह सकते ।

फाईनल वीओ -
संथालपरगना में जनजातीय समाज की संख्या कुल आबादी के लगभग 50% से अधिक है । ऐसे में इस समाज की गतिविधियों जुड़ा यह संस्थान काफी उपयोगी साबित होता । लेकिन इस पर सरकार की उपेक्षा और उदासीनता समझ से परे है ।

मनोज केशरी ,
ईटीवी भारत
दुमका

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