दुमका: जनजातीय समाज पर शोध करने के लिए झारखंड सरकार द्वारा दुमका में 10 साल पहले डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान की स्थापना की गई थी. इस संस्थान का उद्देश्य जनजाति समाज से जुड़ी गतिविधियों पर रिसर्च करना था. इसके साथ-साथ जो व्यक्ति आदिवासी समुदाय के लोगों पर शोध करना चाहते हैं उनके लिए किताबें और तमाम तरह के आंकड़े उपलब्ध कराना था.
संस्थान की हाल है बदहाल
जनजातीय शोध संस्थान की बदहाली का आलम यह है कि पहले यहां नियमित अधिकारी और कर्मी पदस्थापित थे. इसके बाद रांची से अनुबंधकर्मियों को भेजा गया था. अब स्थिति यह है कि इस संस्थान की जिम्मेदारी एक सफाई कर्मी के हाथों में है.
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जनजातीय समुदाय और साहित्य से जुड़े लोगों में नाराजगी
इस शोध संस्थान के सरकारी उपेक्षा से जनजाति समाज के लोगों में काफी नाराजगी है. इसके साथ ही साहित्य से जुड़े लोग भी संस्थान की उपेक्षा की आलोचना कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि जब सरकार ने इतना बड़ा संस्थान यहां खोला जरूर है, लेकिन उसके अनुरूप व्यवस्था क्यों नहीं दी गई है. सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
अधिकारी भी हैं उदासीन
इस जनजातीय शोध संस्थान की हो रही उपेक्षा को लेकर दुमका के पदाधिकारियों का कहना है कि यह रांची से संचालित होता है इसलिए वह कुछ कह नहीं सकते हैं. संथालपरगना में जनजातीय समुदाय के लोगों की संख्या कुल आबादी की 50% से अधिक है. ऐसे में इस समाज की गतिविधियों जुड़ा यह संस्थान काफी उपयोगी साबित हो सकता है. लेकिन इस पर सरकार की उपेक्षा और उदासीनता समझ से परे है .