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झारखंड में 1857 के क्रांति के हीरो नीलांबर पीतांबर के गांव की दुर्दशा, दम तोड़ रही विकास की राहें

1857 में हुई अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति में झारखंड के कई वीर योद्धाओं के नाम शामिल है. ऐसे ही दो भाई नीलांबर और पीतांबर जिन्होंने अपने गुरिल्ला तकनीक से अंग्रेजो के छक्के छुड़ा दिए थे. भगवान बिरसा मुंडा ने पहले दोनों ने झारखंड में अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई शुरू की थी. पूरे देश मे 1857 की क्रांति कुछ ही महीनों में कमजोर हो गई थी, लेकिन पलामू का ही एक ऐसा इलाका था जहां 1859 क्रांति की लव जलती रही इसे जलाए रखा नीलांबर और पीतांबर. लेकिन आज झारखंड में 1857 के क्रांति के हीरो नीलांबर पीतांबर के गांव की दुर्दशा को कोई देखने वाला नहीं है.

lack of basic facilities in chemo sanya village
lack of basic facilities in chemo sanya village
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Published : Dec 11, 2021, 9:14 PM IST

Updated : Dec 12, 2021, 11:54 AM IST

पलामू: इतिहास में नीलांबर पीतांबर को उतनी जगह नहीं मिली जितने वे इसके हकदार थे. आज भी नीलांबर पीतांबर का गांव चेमो सान्या उपेक्षित है. यहां तक पहुंचते-पहुंचते सारी विकास योजनाएं ठप हो जाती हैं. यह इलाका अब नक्सल हिंसा के लिए कुख्यात है और बूढापहाड़ के नजदीक है. चेमो सान्या निर्माधीन मंडल डैम के डूब क्षेत्र में आता है. आज पूरा इलाका नीलांबर पीतांबर की धरती को बचाने के लिए लड़ाई लड़ रहा है.


सिर्फ शॉल ओढ़ाने और पगड़ीपोशी के लिए परिजनों को किया जाता है याद
चेमो सान्या में आज भी वह इमली का पेड़ और टटरी मौजूद है, जहां नीलांबर पीतांबर आजादी की लड़ाई की योजना बनाते थे. आज उस जगह पर हर वर्ष गांव के लोग बड़ा समारोह आयोजित करते हैं, लेकिन इसमें कोई भी सरकारी अधिकारी या तंत्र भाग नहीं लेता है. नीलांबर पीतांबर के आठवी पीढ़ी देवनाथ सिंह और उनके भाई आज भी गांव में कच्चे मकानों में रहते हैं. सरकारी समारोहों में उन्हें सिर्फ शॉल ओढ़ाने या पगड़ीपोशी के लिए याद किया जाता है. उन्हें सरकारी योजना का कोई लाभ तक नहीं मिलता. परिजन आज भी पारंपरिक खेती करते हैं और उसी पर निर्भर है. देवनाथ सिंह का कोई भी परिवार ग्रेजुएट नहीं है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट


गांव पंहुचने से पहले ही दम तोड़ देती है विकास योजना
नीलांबर पीतांबर का गांव चेमो सान्या झारखंड की राजधानी रांची से करीब 250 किलोमीटर दूर. करीब 600 आबादी वाले इस गांव में विकास योजना पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं. गांव में पहुंचने के लिए तीन नदियों को पार करना पड़ता है. गांव में किसी भी व्यक्ति के पास पक्का मकान नहीं है ना ही किसी को सरकारी आवास योजना का लाभ मिला है. बूढ़ा पहाड़ के नजदीक होने के कारण गांव में सिर्फ और सिर्फ सुरक्षा बल के जवान ही पहुंचते हैं. गांव में कोई भी विधायक या बड़े अधिकारी नहीं जाते हैं.

ये भी पढ़ें: सादगी और ईमानदारी है खरवार जनजाति की पहचान, अमर शहीद नीलांबर- पीतांबर को मानते हैं अपना आदर्श

नीलांबर पीतांबर ने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई का फूंका था बिगुल
नीलांबर पीतांबर के पिता चेमो सिंह खरवार ने चेमो और सान्या गांव को बसाया था और वे वहां के जागीरदार थे. पिता की मौत के बाद नीलांबर ने पीतांबर को पाला था. 1857 के सैन्य विद्रोह के दौरान पीतांबर रांची में थे. वहां से लौटने जे बाद उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई की योजना तैयार की. उस दौरान दोनों भाइयों ने भोक्ता, खरवार, चेरो और आस पास के कुछ जागीरदारों के साथ मिल कर गुरिल्ला लड़ाई शुरू की. दोनों भाइयों के नेतृत्व में सैकड़ो लड़को ने 27 नवंबर 1857 को रजहरा स्टेशन पर हमला किया. यहां से अंग्रेज कोयला की ढुलाई करते थे. इसके बाद अंग्रेज बौखलाए लेफ्टिनेंट ग्राहम के नेतृत्व में एक फौज पलामू पंहुची और नीलांबर पीताम्बर के ठिकाना पलामू किला पर हमला किया. इस हमले से नीलांबर पीताम्बर के लड़ाकों का काफी नुकसान हुआ. इस दौरान नीलांबर पीतांबर के सहयोगी शेख भिखारी और उमराव सिंह पकड़े गए थे जिसके बाद दोनों को फांसी दे दी गई.

पलामू: इतिहास में नीलांबर पीतांबर को उतनी जगह नहीं मिली जितने वे इसके हकदार थे. आज भी नीलांबर पीतांबर का गांव चेमो सान्या उपेक्षित है. यहां तक पहुंचते-पहुंचते सारी विकास योजनाएं ठप हो जाती हैं. यह इलाका अब नक्सल हिंसा के लिए कुख्यात है और बूढापहाड़ के नजदीक है. चेमो सान्या निर्माधीन मंडल डैम के डूब क्षेत्र में आता है. आज पूरा इलाका नीलांबर पीतांबर की धरती को बचाने के लिए लड़ाई लड़ रहा है.


सिर्फ शॉल ओढ़ाने और पगड़ीपोशी के लिए परिजनों को किया जाता है याद
चेमो सान्या में आज भी वह इमली का पेड़ और टटरी मौजूद है, जहां नीलांबर पीतांबर आजादी की लड़ाई की योजना बनाते थे. आज उस जगह पर हर वर्ष गांव के लोग बड़ा समारोह आयोजित करते हैं, लेकिन इसमें कोई भी सरकारी अधिकारी या तंत्र भाग नहीं लेता है. नीलांबर पीतांबर के आठवी पीढ़ी देवनाथ सिंह और उनके भाई आज भी गांव में कच्चे मकानों में रहते हैं. सरकारी समारोहों में उन्हें सिर्फ शॉल ओढ़ाने या पगड़ीपोशी के लिए याद किया जाता है. उन्हें सरकारी योजना का कोई लाभ तक नहीं मिलता. परिजन आज भी पारंपरिक खेती करते हैं और उसी पर निर्भर है. देवनाथ सिंह का कोई भी परिवार ग्रेजुएट नहीं है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट


गांव पंहुचने से पहले ही दम तोड़ देती है विकास योजना
नीलांबर पीतांबर का गांव चेमो सान्या झारखंड की राजधानी रांची से करीब 250 किलोमीटर दूर. करीब 600 आबादी वाले इस गांव में विकास योजना पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं. गांव में पहुंचने के लिए तीन नदियों को पार करना पड़ता है. गांव में किसी भी व्यक्ति के पास पक्का मकान नहीं है ना ही किसी को सरकारी आवास योजना का लाभ मिला है. बूढ़ा पहाड़ के नजदीक होने के कारण गांव में सिर्फ और सिर्फ सुरक्षा बल के जवान ही पहुंचते हैं. गांव में कोई भी विधायक या बड़े अधिकारी नहीं जाते हैं.

ये भी पढ़ें: सादगी और ईमानदारी है खरवार जनजाति की पहचान, अमर शहीद नीलांबर- पीतांबर को मानते हैं अपना आदर्श

नीलांबर पीतांबर ने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई का फूंका था बिगुल
नीलांबर पीतांबर के पिता चेमो सिंह खरवार ने चेमो और सान्या गांव को बसाया था और वे वहां के जागीरदार थे. पिता की मौत के बाद नीलांबर ने पीतांबर को पाला था. 1857 के सैन्य विद्रोह के दौरान पीतांबर रांची में थे. वहां से लौटने जे बाद उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई की योजना तैयार की. उस दौरान दोनों भाइयों ने भोक्ता, खरवार, चेरो और आस पास के कुछ जागीरदारों के साथ मिल कर गुरिल्ला लड़ाई शुरू की. दोनों भाइयों के नेतृत्व में सैकड़ो लड़को ने 27 नवंबर 1857 को रजहरा स्टेशन पर हमला किया. यहां से अंग्रेज कोयला की ढुलाई करते थे. इसके बाद अंग्रेज बौखलाए लेफ्टिनेंट ग्राहम के नेतृत्व में एक फौज पलामू पंहुची और नीलांबर पीताम्बर के ठिकाना पलामू किला पर हमला किया. इस हमले से नीलांबर पीताम्बर के लड़ाकों का काफी नुकसान हुआ. इस दौरान नीलांबर पीतांबर के सहयोगी शेख भिखारी और उमराव सिंह पकड़े गए थे जिसके बाद दोनों को फांसी दे दी गई.

Last Updated : Dec 12, 2021, 11:54 AM IST
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