जामा, दुमकाः जिले के जामा विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति बहुल है. यहां संथाल और पहाड़िया समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 50% है. अन्य पिछड़ी जाति की संख्या लगभग 25% हैं. शेष अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक और सामान्य जाति के लोग निवास करते हैं. जामा विधानसभा क्षेत्र में दो प्रखंड जामा और रामगढ़ है. यहां की कुल वोटर्स की संख्या1 लाख 87 हजार 170 है. जबकि पुरुष मतदाता 94 हजार 542 और महिला मतदाता 92 हजार 627 है.
एक भी नहीं है डिग्री कॉलेज
जामा विधानसभा क्षेत्र की जनता बुनियादी सुविधा कोसो दूर है. यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सिंचाई व्यवस्था सभी निम्न स्तर का है. शिक्षा की स्थिति कितनी दयनीय है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इस क्षेत्र में एक भी डिग्री कॉलेज नहीं है, छात्र-छात्राओं को 12वीं की पढ़ाई के बाद 20 से 30 किलोमीटर दूर दुमका जिला मुख्यालय में जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है. गरीब छात्र रोज दुमका आने-जाने का किराया वहन नहीं कर पाते हैं जिसके कारण उन्हें अपना पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ती है. ऐसे में छात्रों का कहना है कि सरकार हमारे लिए डिग्री कॉलेज खुलवाए.
सिंचाई की नहीं है व्यवस्था, लोग पलायन के लिए मजबूर
जामा विधानसभा क्षेत्र में एक भी वृहद सिंचाई परियोजना या स्वच्छ पेयजल का प्लांट नहीं है. लोग चापाकल और अन्य छोटे जलाशयों पर निर्भर रहते हैं. क्षेत्र में मयूराक्षी नदी है, लेकिन उसमें भी पूरे वर्ष पानी नहीं रहता. कृषि कार्य के लिए लोग सीधे वर्षा के जल पर निर्भर रहते हैं उद्योग धंधा के नाम पर पूरा इलाका जीरो है, इधर सिंचाई की व्यवस्था नहीं रहने से कृषि कार्य भी सही ढंग से नहीं हो पाता. नतीजतन लोग दूसरे प्रदेशों में पलायन के लिए मजबूर हैं. अन्य प्रमुख समस्या में बेहतर सड़क आज भी इस क्षेत्र के लोगों का सपना है, लोग कच्ची सड़कों पर चलने को मजबूर हैं.
जेएमएम का गढ माना जाता है जामा विधानसभा
जामा विधानसभा झारखंड मुक्ति मोर्चा का गढ़ माना जाता है. इसकी बड़ी वजह भी है. यहां से जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन और उसके पुत्र दुर्गा सोरेन जामा के विधायक रह चुके हैं. पिछले दो विधानसभा चुनाव से शिबू सोरेन की पुत्रवधू सीता सोरेन यहां की एमएलए हैं. हालांकि जेएमएम के इस गढ़ में 2005 में सेंधमारी हुई थी. जब भाजपा के सुनील सोरेन ने दुर्गा सोरेन को हराया था. उसके बाद 2009 और 2014 में यह सीट जेएमएम के खाते में चली गई और सीता सोरेन दोनों बार विधायक बनी.
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सीता सोरेन का है दावा- फिर होगी जीत
जामा विधायक सीता सोरेन का कहना है कि उन्होंने 10 साल के कार्यकाल में काफी काम किए हैं. उन्होंने कहा कि मयूराक्षी नदी की वजह से सालों तक टापू की जिंदगी जीते थे. उस जगह में बड़े-बड़े पुलों का निर्माण कराया गया. इसके साथ ही विकास के कई काम किए. सीता सोरेन का दावा है कि आगामी 2019 के विधानसभा चुनाव में भी जनता उनको फिर से चुनेगी और वह फिर विधायक बनेगी.
विधायक के प्रति जनता की है मिली जुली प्रतिक्रिया
विधायक सीता सोरेन के कार्यों पर जनता की मिलती जुली प्रतिक्रिया है. कुछ लोगों का कहना हैं कि यह सीट सीता सोरेन को अनुकंपा पर मिली है. इसलिए वह यहां से ज्यादा मतलब नहीं रखते. अनुकंपा का तात्पर्य है कि यहां से दुर्गा सोरेन चुनाव जीतते थे और उनके निधन के बाद ही सीता सोरेन यहां का प्रतिनिधित्व कर रही है. जामा विधानसभा क्षेत्र के कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सीता सोरेन की तारीफ करते हुए कहते हैं कि हर समय वह हमारे साथ रहती है.
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क्या कहती है बीजेपी
जामा विधानसभा चुनाव में पिछले दो दशक से मुख्य मुकाबला जेएमएम और बीजेपी के बीच रहा है. 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सुरेश मुर्मू लगभग ढाई हजार मतों से सीता सोरेन से हार गए थे. वहीं, सुरेश मुर्मू का कहना है कि सीता सोरेन चुनाव जीती जरूर है, लेकिन उसके बाद क्षेत्र की जनता को दर्शन नहीं दिया. सुरेश मुर्मू का कहना है कि इस बार 2019 के चुनाव में भाजपा का परचम लहराएगा.
जनता का फैसला
जामा विधानसभा की विधायक सीता सोरेन का दावा है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें फिर से जीत मिलेगी. बीजेपी का कहना है कि सीता सोरेन ने अपने विधानसभा क्षेत्र में कोई भी काम नहीं किया और क्षेत्र में भी नजर नहीं आई. जो भी काम हुआ वह सीएम रघुवर दास के प्रयास से हो सका है. अब जनता किस पर मुहर लगाती है यह विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद ही पता चल पाएगा.