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रईसों सी थी जिंदगी, घाटे ने गरीबी की ओर धकेला तो महिला ने जिम्मेदारी उठाई और बदल दी घर की तस्वीर

रश्मि सिंह ने परिवार की जिम्मेदारी अपने ऊपर उठाई. एक गाय से शुरू कर आज पूरा डेयरी फॉर्म खोल दिया. आज इनकी डेयरी में 35 से 40 गाय है और प्रत्येक दिन लगभग 200 लीटर दूध का व्यवसाय होता है.

देखिए स्पेशल स्टोरी
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Published : Mar 7, 2019, 8:15 PM IST

धनबाद: घर की महिला अगर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए, तो फिर उस परिवार कोई आफत नहीं आ सकती है. तमाम मुश्किलें चुटकियों में दूर हो जाते हैं. ऐसी ही एक महिला हैं धनबाद की रश्मि सिंह. आइए जानते हैं उनकी कहानी.

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धनबाद के कुसुम विहार इलाके की रहने वाली रश्मि सिंह की जब शादी हुई थी तो वह एक पेट्रोल पंप की मालकिन हुआ करती थी. लेकिन कुछ ही दिनों के बाद परिवार पर आफत आ पड़ी, पेट्रोल पंप का व्यवसाय इतना मंदा हो गया कि परिवार सड़क पर आने को मजबूर हो गया. अपनी बेचैनी दूर भगाने और दूसरी जगह मन लगाने के लिए 2007 में उन्होंने एक गाय खरीदी. आज वो एक डेयरी फार्म की मालकिन हैं.

रश्मि सिंह के पति शैलेंद्र सिंह ने 6 दिसंबर 1996 को धनबाद के बाघमारा इलाके में एक पेट्रोल पंप खोला था. लेकिन उधारी की समस्या और स्टाफ की बेईमानी के कारण पेट्रोल पंप का व्यवसाय कभी भी ढंग से नहीं चल पाया. अंततः शैलेंद्र सिंह के ऊपर डेड करोड़ रुपए का लोन हो गया. पेट्रोल पंप को बंद करना पड़ा.

तंगहाली के दौर में पटना के बेली रोड आशियाना मोड़ पर अवस्थित इनको अपना एक फ्लैट भी 2009 में ओने-पौने दाम में बेचना पड़ गया. इनकी जितनी जमा पूंजी थी सब खत्म हो गई. यह अपना जीवन भी व्यतीत कर पाने में असमर्थ थे.

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जिसके बाद रश्मि सिंह ने परिवार की जिम्मेदारी अपने ऊपर उठाई. एक गाय से शुरू कर आज पूरा डेयरी फॉर्म खोल दिया. आज इनकी डेयरी में 35 से 40 गाय है और प्रत्येक दिन लगभग 200 लीटर दूध का व्यवसाय होता है. डेयरी फॉर्म की बदौलत आज बैंकों का सारा लोन भी क्लियर हो चुका है. और फिर से एक नया जीवन जी रहे हैं.

वहीं रश्मि सिंह के पति शैलेंद्र सिंह का कहना है कि भगवान सभी को रश्मि सिंह जैसी ही पत्नी दे. क्योंकि रश्मि ने कभी भी दुख हो या सुख हो साथ नहीं छोड़ा है. आज इसी के दम पर हम अपने पैरों पर फिर से खड़े हो पाने में समर्थ हुए हैं. वहीं शैलेंद्र सिंह ने बताया कि इतना दुख झेलने के बाद मुझे अपने पिता की कुछ बातें याद आती हैं. मैं अपने पिता के नाम से एक संस्था भुवनदीप भी चला रहा हूं. उसमें वैसे लोग जो होनहार हैं, लेकिन पढ़ाई करने में सक्षम नहीं हैं, रोजगार करना चाहते हैं, डेयरी फॉर्म खोलना चाहते हैं सभी प्रकार की जानकारी और सुविधाएं उनको उपलब्ध कराई जायेगी.

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शैलेंद्र सिंह मूलतः बिहार के मुंगेर के रहने वाले हैं. शैलेंद्र सिंह के पिता स्वर्गीय भुवनेश्वर प्रसाद सिंह फ्रीडम फाइटर थे जिनको स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कालापानी की सजा भी हुई थी. परंतु भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के कारण उनकी कालापानी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि हजारीबाग जेल में रहते हुए जब सभी कैदी जेल से भाग रहे थे, तो भागने के क्रम में जयप्रकाश नारायण का पैर टूट गया तब उनके पिता भुनेश्वर प्रसाद सिंह उन्हें अपने कंधे पर बैठा कर वहां से भाग गए और उनका इलाज भी करवाया.

धनबाद: घर की महिला अगर अपने पैरों पर खड़ी हो जाए, तो फिर उस परिवार कोई आफत नहीं आ सकती है. तमाम मुश्किलें चुटकियों में दूर हो जाते हैं. ऐसी ही एक महिला हैं धनबाद की रश्मि सिंह. आइए जानते हैं उनकी कहानी.

देखिए स्पेशल स्टोरी

धनबाद के कुसुम विहार इलाके की रहने वाली रश्मि सिंह की जब शादी हुई थी तो वह एक पेट्रोल पंप की मालकिन हुआ करती थी. लेकिन कुछ ही दिनों के बाद परिवार पर आफत आ पड़ी, पेट्रोल पंप का व्यवसाय इतना मंदा हो गया कि परिवार सड़क पर आने को मजबूर हो गया. अपनी बेचैनी दूर भगाने और दूसरी जगह मन लगाने के लिए 2007 में उन्होंने एक गाय खरीदी. आज वो एक डेयरी फार्म की मालकिन हैं.

रश्मि सिंह के पति शैलेंद्र सिंह ने 6 दिसंबर 1996 को धनबाद के बाघमारा इलाके में एक पेट्रोल पंप खोला था. लेकिन उधारी की समस्या और स्टाफ की बेईमानी के कारण पेट्रोल पंप का व्यवसाय कभी भी ढंग से नहीं चल पाया. अंततः शैलेंद्र सिंह के ऊपर डेड करोड़ रुपए का लोन हो गया. पेट्रोल पंप को बंद करना पड़ा.

तंगहाली के दौर में पटना के बेली रोड आशियाना मोड़ पर अवस्थित इनको अपना एक फ्लैट भी 2009 में ओने-पौने दाम में बेचना पड़ गया. इनकी जितनी जमा पूंजी थी सब खत्म हो गई. यह अपना जीवन भी व्यतीत कर पाने में असमर्थ थे.

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जिसके बाद रश्मि सिंह ने परिवार की जिम्मेदारी अपने ऊपर उठाई. एक गाय से शुरू कर आज पूरा डेयरी फॉर्म खोल दिया. आज इनकी डेयरी में 35 से 40 गाय है और प्रत्येक दिन लगभग 200 लीटर दूध का व्यवसाय होता है. डेयरी फॉर्म की बदौलत आज बैंकों का सारा लोन भी क्लियर हो चुका है. और फिर से एक नया जीवन जी रहे हैं.

वहीं रश्मि सिंह के पति शैलेंद्र सिंह का कहना है कि भगवान सभी को रश्मि सिंह जैसी ही पत्नी दे. क्योंकि रश्मि ने कभी भी दुख हो या सुख हो साथ नहीं छोड़ा है. आज इसी के दम पर हम अपने पैरों पर फिर से खड़े हो पाने में समर्थ हुए हैं. वहीं शैलेंद्र सिंह ने बताया कि इतना दुख झेलने के बाद मुझे अपने पिता की कुछ बातें याद आती हैं. मैं अपने पिता के नाम से एक संस्था भुवनदीप भी चला रहा हूं. उसमें वैसे लोग जो होनहार हैं, लेकिन पढ़ाई करने में सक्षम नहीं हैं, रोजगार करना चाहते हैं, डेयरी फॉर्म खोलना चाहते हैं सभी प्रकार की जानकारी और सुविधाएं उनको उपलब्ध कराई जायेगी.

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शैलेंद्र सिंह मूलतः बिहार के मुंगेर के रहने वाले हैं. शैलेंद्र सिंह के पिता स्वर्गीय भुवनेश्वर प्रसाद सिंह फ्रीडम फाइटर थे जिनको स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कालापानी की सजा भी हुई थी. परंतु भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के कारण उनकी कालापानी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि हजारीबाग जेल में रहते हुए जब सभी कैदी जेल से भाग रहे थे, तो भागने के क्रम में जयप्रकाश नारायण का पैर टूट गया तब उनके पिता भुनेश्वर प्रसाद सिंह उन्हें अपने कंधे पर बैठा कर वहां से भाग गए और उनका इलाज भी करवाया.

Intro:धनबाद: अगर परिवार में कोई आफत आती है तो महिलाएं साक्षात देवी का भी रूप ले लेती है. यह कहानी इसी प्रकार की एक महिला की है जिसने अपने दम पर अपने परिवार पर आई आफत को बड़े ही सहज तरीके से टाल दिया.आज यह महिला हंसी- खुशी अपने परिवार के साथ सुखी पूर्वक रह रही है. धनबाद के कुसुम विहार इलाके की रहने वाली रश्मि सिंह कि क्या है कहानी, आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में

जी हां हम बात कर रहे हैं धनबाद जिले की रहने वाली रश्मि सिंह की जब रश्मि सिंह की शादी हुई थी तो वह एक पेट्रोल पंप की मालकिन हुआ करती थी. लेकिन कुछ ही दिनों के बाद परिवार पर ऐसी आफत आ पड़ी और पेट्रोल पंप का व्यवसाय इतना मंदा हो गया कि यह परिवार सड़क पर आने को मजबूर हो गए. इस महिला ने बताया कि उस समय रात रात भर नींद भी नहीं आती थी और पूरा परिवार बेचैन रहता था. अपनी बेचैनी और दूसरे जगह मन लगाने के लिए 2007 में एक गाय को खरीदा और आज एक डेयरी फार्म की मालकिन यह महिला खुद बन बैठी है. जिस डेयरी फार्म के कारण बैंक का सारा लोन चुका कर आज सुखी जीवन व्यतीत भी कर रही है.

रश्मि सिंह के पति शैलेंद्र सिंह ने 6 दिसंबर 1996 को धनबाद के बाघमारा इलाके में एक पेट्रोल पंप खोला था लेकिन उधारी की समस्या और स्टाफ की बेईमानी के कारण पेट्रोल पंप का व्यवसाय कभी भी ढंग से नहीं चल पाया और अंततः शैलेंद्र सिंह के ऊपर डेड करोड़ों रुपए का लोन हो गया. ओर पेट्रोल पंप बंद करना पड़ा. शैलेंद्र सिंह का 1988 में मध्य प्रदेश पब्लिक सर्विस कमिशन में भी जॉब हो चुका था लेकिन बिहार से प्यार की चाहत में उन्होंने यह नौकरी नहीं की.


Body:धनबाद के कुसुम विहार इलाके के रहने वाले शैलेंद्र सिंह का परिवार धनबाद में रहता है शैलेंद्र सिंह उनकी पत्नी रश्मि सिंह और एक बेटी और एक बेटा इनके परिवार में है. शैलेंद्र सिंह मूलतः बिहार के मुंगेर के रहने वाले हैं.शैलेंद्र सिंह के पिता स्वर्गीय भुवनेश्वर प्रसाद सिंह फ्रीडम फाइटर थे जिनको स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कालापानी की सजा भी हुई थी. परंतु भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के कारण उनकी कालापानी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. शैलेंद्र सिंह बताते हैं कि हजारीबाग जेल में रहते हुए जब एक बार सभी कैदी जेल से भाग रहे थे तो भागने के क्रम में जयप्रकाश नारायण का पैर टूट गया और उनके पिता भुनेश्वर प्रसाद सिंह ने अपने कांधे पर बैठा कर वहां से भाग गए और उनका इलाज भी करवाया.

लेकिन एक कहावत है ना कि समय एक जैसा नहीं होता .धनबाद में हंसी खुशी रहने वाला यह परिवार पेट्रोल पंप का व्यापार कर गुजर बसर कर रहा था.लेकिन समय की मार के चलते लगभग डेढ़ करोड़ की बकाया राशि बैंकों की हो गई .जिसे जुटा पाने में शैलेंद्र सिंह असमर्थ हो गए . उसी दौरान पटना के बेली रोड आशियाना मोड़ पर अवस्थित इनको एक अपना फ्लैट भी 2009 में ओने-पौने दाम में बेचना पड़ गया. इनकी जितनी जमा पूंजी थी सब खत्म हो गई. यह अपना जीवन भी व्यतीत कर पाने में असमर्थ थे और इनका पेट्रोल पंप बंद हो गया.जिसके बाद रश्मि सिंह ने अपने परिवार की जिम्मेदारी अपने ऊपर उठाई और एक गाय से शुरू कर आज पूरा डेयरी फार्म खोल दिया. आज इनकी डेयरी में 35 से 40 गाय है और प्रत्येक दिन लगभग 200 लीटर दूध का व्यवसाय होता है. डेयरी फार्म के बदौलत आज बैंकों का सारा लोन भी क्लियर हो चुका है. और फिर से एक नया जीवन जी रहे हैं.


Conclusion:वहीं रश्मि सिंह के पति शैलेंद्र सिंह का कहना है कि भगवान सभी को रश्मि सिंह जैसा ही पत्नी दे. क्योंकि रश्मि ने कभी भी दुख हो या सुख हो हमारा साथ नहीं छोड़ा है. और आज इसी के दम पर हम अपने पैरों पर फिर से खड़े हो पाने में समर्थ हुए हैं. वहीं शैलेंद्र सिंह ने बताया कि इतना दुख झेलने के बाद मुझे अपने पिता की कुछ बातें याद आती है और मैं अपने पिता के नाम से एक संस्था भुवनदीप भी चला रहा हूं. उसमें वैसे लोग जो होनहार हैं लेकिन पढ़ाई करने में सक्षम नहीं है,रोजगार करना चाहते हैं, डेयरी फार्म खोलना चाहते हैं सभी प्रकार की जानकारी और सुविधाएं उनको उपलब्ध कराया जायेगा.
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