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क्या नक्सली विचारधारा से जुड़े नेताओं की राजनीति खत्म हो रही है! जानें, क्या कहते हैं पूर्व माओवादी नेता

झारखंड राजनीति की प्रयोगशाला है. जनता ने उन्हें भी चुना, जिनके विचार अलग रहे. क्या आज माओवाद विचारधारा से जुड़ी राजनीति हाशिए पर है?

Is political career of leaders associated with Naxal ideology coming to an end in Jharkhand
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 2 hours ago

पलामूः 2009 में देश के इतिहास में पहली बार माओवाद विचारधारा वाले कामेश्वर बैठा सांसद चुने गए. कामेश्वर बैठा जेएमएम के टिकट पर पलामू से लोकसभा का चुनाव जीते थे. कामेश्वर बैठा के चुनाव जीतने के बाद देशभर में माओवाद विचारधारा वाले नेताओं की राजनीति शुरू हुई थी और इनका केंद्र पलामू बना था.

साल 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में माओवाद विचारधारा वाले कई नेताओं ने चुनाव लड़ा, लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिली. झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में माओवाद विचारधारा से प्रभावित रहे कोई भी व्यक्ति इस बार चुनाव मैदान में नहीं है. इस विचारधारा से प्रभावित कई नेता विभिन्न राजनीतिक दल में हैं लेकिन किसी को टिकट नहीं मिला. इसको बारीकी से समझने के लिए ईटीवी भारत संवाददाता नीरज कुमार ने खास बातचीत की पूर्व माओवादी नेता सह आजसू नेता सतीश कुमार से.

पूर्व माओवादी नेता सह आजसू नेता सतीश कुमार के साथ ईटीवी भारत की खास बातचीत (ETV Bharat)

2009 में बना झारखंड विकास पार्टी, बाद में जेएमएम में हुआ विलय

कामेश्वर बैठा के सांसद बनने के बाद माओवाद विचारधारा से प्रभावित कई नेताओं ने राजनीति की शुरुआत की. सभी नेता एक मंच पर जुटे और झारखंड विकास पार्टी का गठन किया, जिसका बाद में विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा में विलय हो गया. उस दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा ने झारखंड विकास पार्टी से संबंध रखने वाले सतीश कुमार को डालटनगंज और युगल पाल को बिश्रामपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया गया था. उस दौरान युगल पाल, सतीश कुमार, कामेश्वर बैठा, केश्वर यादव, विनोद कुमार शर्मा, प्रशांत ठाकुर, समेत कई नेता एकजुट हुए थे.

कामेश्वर बैठा के अलावा कोई भी नहीं जीत पाया चुनाव

कामेश्वर बैठा पहली बार 2007 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लोकसभा का उपचुनाव लड़ा था और दूसरे स्थान पर रहे थे. 2009 में हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर सांसद चुने गए. बाद में नक्सल विचारधारा से प्रभावित कोई भी व्यक्ति सांसद या विधायक नहीं बन पाया. डालटनगंज से सतीश कुमार, बिश्रामपुर से युगल पाल, शोभा पाल, पांकी से केश्वर यादव चुनाव लड़ते रहे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. सतीश कुमार अब आजसू में हैं जबकि केश्वर यादव समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. कामेश्वर बैठा ने कुछ दिनों पहले जेएमएम की सदस्यता ग्रहण कर ली है.

माओवाद विचार भटका और चुनाव में धनबल बनी ताकत

माओवादियों के यू थ्री (उत्तरी बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तरी छत्तीसगढ़) कमिटी के सदस्य रहे सतीश कुमार बताते हैं कि माओवाद अपना रास्ता भटक गया, 2009 में माओवाद विचारधारा वाले कामेश्वर बैठा सांसद चुने गए. उनका अधिकांश कार्यकाल जेल में ही गुजर गया. बाद में चुनाव में धनबल भी हावी होती गई जिस कारण चुनाव लड़ना मुश्किल होता गया. टिकट के लिए भी काफी ताकत लगानी पड़ती है. कामेश्वर बैठा के जेल में रहने के दौरान जो कुछ हुआ जिससे उन लोगों की भी राजनीति प्रभावित हुई. सतीश कुमार बताते हैं कि झामुमो की टिकट पर वे चुनाव लड़े थे लेकिन धीरे-धीरे चुनाव से उन लोगों का मोह भंग होता गया.

लूटपाट करने वाले माओवाद में रहे, ऐसा नहीं करने वालों ने चुनाव लड़ा

सतीश कुमार बताते हैं कि आज माओवाद विचारधारा से भटक गया है. जिन्होंने लूटपाट किया वह माओवाद में बना रहे जिन लोगों ने लूटपाट नहीं किया वे मुख्यधारा में शामिल हुए और चुनाव लड़े. सतीश कुमार बताते हैं कि उस दौरान चुनाव लड़ने वाले नेताओं के खिलाफ माओवादियों की तरफ से फरमान भी जारी किया गया था. यह फरमान लूटपाट करने वाले माओवादियों के नेताओं की तरफ से जारी किया गया था. यही कारण है कि आज इनकी दुर्गति हो गई है और वे कहीं के नहीं रहे हैं.

इसे भी पढ़ें- झारखंड विधानसभा चुनाव: 'गन से गणतंत्र' तक का सफर, उग्रवादी संगठन में रहते रांची-दिल्ली तक का किया सफर

इसे भी पढ़ें- 2009 में माओवादी नेता कामेश्वर बैठा ने लोकसभा चुनाव में हासिल की थी जीत, लेकिन उनके बाद नक्सल विचारधारा वाले नेता नहीं हुए सफल - Naxalite leader in politics

इसे भी पढ़ें- नौजवान नक्सल कैडरों का संगठन से हुआ मोह भंग, माओवाद का आखिरी किला भी ध्वस्त होने के कगार पर - Young Naxal cadre desperate

पलामूः 2009 में देश के इतिहास में पहली बार माओवाद विचारधारा वाले कामेश्वर बैठा सांसद चुने गए. कामेश्वर बैठा जेएमएम के टिकट पर पलामू से लोकसभा का चुनाव जीते थे. कामेश्वर बैठा के चुनाव जीतने के बाद देशभर में माओवाद विचारधारा वाले नेताओं की राजनीति शुरू हुई थी और इनका केंद्र पलामू बना था.

साल 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में माओवाद विचारधारा वाले कई नेताओं ने चुनाव लड़ा, लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिली. झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में माओवाद विचारधारा से प्रभावित रहे कोई भी व्यक्ति इस बार चुनाव मैदान में नहीं है. इस विचारधारा से प्रभावित कई नेता विभिन्न राजनीतिक दल में हैं लेकिन किसी को टिकट नहीं मिला. इसको बारीकी से समझने के लिए ईटीवी भारत संवाददाता नीरज कुमार ने खास बातचीत की पूर्व माओवादी नेता सह आजसू नेता सतीश कुमार से.

पूर्व माओवादी नेता सह आजसू नेता सतीश कुमार के साथ ईटीवी भारत की खास बातचीत (ETV Bharat)

2009 में बना झारखंड विकास पार्टी, बाद में जेएमएम में हुआ विलय

कामेश्वर बैठा के सांसद बनने के बाद माओवाद विचारधारा से प्रभावित कई नेताओं ने राजनीति की शुरुआत की. सभी नेता एक मंच पर जुटे और झारखंड विकास पार्टी का गठन किया, जिसका बाद में विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा में विलय हो गया. उस दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा ने झारखंड विकास पार्टी से संबंध रखने वाले सतीश कुमार को डालटनगंज और युगल पाल को बिश्रामपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया गया था. उस दौरान युगल पाल, सतीश कुमार, कामेश्वर बैठा, केश्वर यादव, विनोद कुमार शर्मा, प्रशांत ठाकुर, समेत कई नेता एकजुट हुए थे.

कामेश्वर बैठा के अलावा कोई भी नहीं जीत पाया चुनाव

कामेश्वर बैठा पहली बार 2007 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लोकसभा का उपचुनाव लड़ा था और दूसरे स्थान पर रहे थे. 2009 में हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर सांसद चुने गए. बाद में नक्सल विचारधारा से प्रभावित कोई भी व्यक्ति सांसद या विधायक नहीं बन पाया. डालटनगंज से सतीश कुमार, बिश्रामपुर से युगल पाल, शोभा पाल, पांकी से केश्वर यादव चुनाव लड़ते रहे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. सतीश कुमार अब आजसू में हैं जबकि केश्वर यादव समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. कामेश्वर बैठा ने कुछ दिनों पहले जेएमएम की सदस्यता ग्रहण कर ली है.

माओवाद विचार भटका और चुनाव में धनबल बनी ताकत

माओवादियों के यू थ्री (उत्तरी बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तरी छत्तीसगढ़) कमिटी के सदस्य रहे सतीश कुमार बताते हैं कि माओवाद अपना रास्ता भटक गया, 2009 में माओवाद विचारधारा वाले कामेश्वर बैठा सांसद चुने गए. उनका अधिकांश कार्यकाल जेल में ही गुजर गया. बाद में चुनाव में धनबल भी हावी होती गई जिस कारण चुनाव लड़ना मुश्किल होता गया. टिकट के लिए भी काफी ताकत लगानी पड़ती है. कामेश्वर बैठा के जेल में रहने के दौरान जो कुछ हुआ जिससे उन लोगों की भी राजनीति प्रभावित हुई. सतीश कुमार बताते हैं कि झामुमो की टिकट पर वे चुनाव लड़े थे लेकिन धीरे-धीरे चुनाव से उन लोगों का मोह भंग होता गया.

लूटपाट करने वाले माओवाद में रहे, ऐसा नहीं करने वालों ने चुनाव लड़ा

सतीश कुमार बताते हैं कि आज माओवाद विचारधारा से भटक गया है. जिन्होंने लूटपाट किया वह माओवाद में बना रहे जिन लोगों ने लूटपाट नहीं किया वे मुख्यधारा में शामिल हुए और चुनाव लड़े. सतीश कुमार बताते हैं कि उस दौरान चुनाव लड़ने वाले नेताओं के खिलाफ माओवादियों की तरफ से फरमान भी जारी किया गया था. यह फरमान लूटपाट करने वाले माओवादियों के नेताओं की तरफ से जारी किया गया था. यही कारण है कि आज इनकी दुर्गति हो गई है और वे कहीं के नहीं रहे हैं.

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