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जिंदगी को अपने हाथों में घुमाकर नेशनल खिलाड़ी बनी अनु, मां-बाप भीख मांगकर करते हैं गुजारा

रांची के धुर्वा इलाके की रहने वाली अनु उरांव गोविंदपुर में हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई कर रही है. इतना ही नहीं आज वो राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बन चुकी है. कड़ी मेहनत से हासिल की मंजिल.

बुलंद हौसले की मिसाल
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Published : Feb 28, 2019, 9:01 PM IST

Updated : Mar 1, 2019, 10:50 AM IST

धनबाद:जिले के गोविंदपुर इलाके में रहने वाली 17 वर्षीय अनु उरांव आज लड़कियों के लिए मिसाल बन चुकी है. मुफलिसी में जिंदगी गुजारकर भी उसने खुद की पहचान बना ली है. जो सबके लिए प्रेरणादायक है.

देखें पूरी खबर

रांची के धुर्वा इलाके की रहने वाली अनु उरांव गोविंदपुर में हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई कर रही है. इतना ही नहीं आज वो राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बन चुकी है. अनु जब 4 साल की थी, उसी समय से धनबाद में रह रही है. गरीबी के कारण उसके माता-पिता ने उसकी बेहतर जिंदगी के लिए धनबाद के गोविंदपुर स्थित हॉस्टल भेज दिया. जहां वो रहकर अपनी पढ़ाई कर रही है. यहीं पर वह बास्केटबॉल का प्रशिक्षण भी लेती हैं.

अनु के माता-पिता कुष्ठ रोगी हैं. रांची के धुर्वा में कुष्ठ कॉलोनी में रहते हैं. भीख मांगकर अपनी जिंदगी काटते हैं. जब उन्हें पता चला कि धनबाद में एक संस्था है जहां कुष्ठ रोगियों के बाल-बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खाना-पीना, रहना सबकुछ फ्री में मिलता है. उसके बाद अपने दिल पर पत्थर रखकर अनु के माता-पिता ने उसे अपने से अलग कर दिया, ताकि वह अच्छी तरह से पढ़ाई कर सके. अनु ने भी आज अपने माता पिता का सपना साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अनु के माता-पिता आज भी रांची के धुर्वा इलाके में ही रहते हैं.

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स्कूल में रहकर अनु ने पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी अच्छा प्रदर्शन किया. अनु ने मेट्रिक में फर्स्ट डिवीजन किया है. जिसके बाद आज धनबाद के एक स्कूल के द्वारा इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी उसे फ्री में दी जा रही है. साथ ही साथ बास्केटबॉल में अनु का चयन बेंगलुरु में हुए अंडर 18 इंडिया कैंप में भी हुआ था. झारखंड से इस कैंप में जाने वाली एकमात्र खिलाड़ी थी.
हालांकि अनु का सपना भारतीय टीम के लिए खेलना संभव नहीं हो पाया. लेकिन उसका कहना है कि बेंगलुरु में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. मैं आकर स्कूल में भी दूसरे बच्चों को बास्केटबॉल के वो सभी गुर सिखा रही हूं. मेरी कोशिश जारी है. मैं एक दिन भारतीय टीम में जरूर खेलूंगी.

स्कूल के फादर जेम्स का कहना है कि अनु पर हमें गर्व है. अनु ने हमारे स्कूल का नाम ऊंचा किया है और एक दिन वो भारतीय टीम में जरूर जाएगी. वहीं अनु के स्पोर्ट्स टीचर एंथोनी फ्रांसिस का कहना है कि वो काफी प्रतिभावान खिलाड़ी है. उसके अंदर काफी क्षमता है. ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षा देने से हमें भी गर्व हो रहा है.

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धनबाद:जिले के गोविंदपुर इलाके में रहने वाली 17 वर्षीय अनु उरांव आज लड़कियों के लिए मिसाल बन चुकी है. मुफलिसी में जिंदगी गुजारकर भी उसने खुद की पहचान बना ली है. जो सबके लिए प्रेरणादायक है.

देखें पूरी खबर

रांची के धुर्वा इलाके की रहने वाली अनु उरांव गोविंदपुर में हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई कर रही है. इतना ही नहीं आज वो राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बन चुकी है. अनु जब 4 साल की थी, उसी समय से धनबाद में रह रही है. गरीबी के कारण उसके माता-पिता ने उसकी बेहतर जिंदगी के लिए धनबाद के गोविंदपुर स्थित हॉस्टल भेज दिया. जहां वो रहकर अपनी पढ़ाई कर रही है. यहीं पर वह बास्केटबॉल का प्रशिक्षण भी लेती हैं.

अनु के माता-पिता कुष्ठ रोगी हैं. रांची के धुर्वा में कुष्ठ कॉलोनी में रहते हैं. भीख मांगकर अपनी जिंदगी काटते हैं. जब उन्हें पता चला कि धनबाद में एक संस्था है जहां कुष्ठ रोगियों के बाल-बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ खाना-पीना, रहना सबकुछ फ्री में मिलता है. उसके बाद अपने दिल पर पत्थर रखकर अनु के माता-पिता ने उसे अपने से अलग कर दिया, ताकि वह अच्छी तरह से पढ़ाई कर सके. अनु ने भी आज अपने माता पिता का सपना साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अनु के माता-पिता आज भी रांची के धुर्वा इलाके में ही रहते हैं.

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स्कूल में रहकर अनु ने पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी अच्छा प्रदर्शन किया. अनु ने मेट्रिक में फर्स्ट डिवीजन किया है. जिसके बाद आज धनबाद के एक स्कूल के द्वारा इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी उसे फ्री में दी जा रही है. साथ ही साथ बास्केटबॉल में अनु का चयन बेंगलुरु में हुए अंडर 18 इंडिया कैंप में भी हुआ था. झारखंड से इस कैंप में जाने वाली एकमात्र खिलाड़ी थी.
हालांकि अनु का सपना भारतीय टीम के लिए खेलना संभव नहीं हो पाया. लेकिन उसका कहना है कि बेंगलुरु में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. मैं आकर स्कूल में भी दूसरे बच्चों को बास्केटबॉल के वो सभी गुर सिखा रही हूं. मेरी कोशिश जारी है. मैं एक दिन भारतीय टीम में जरूर खेलूंगी.

स्कूल के फादर जेम्स का कहना है कि अनु पर हमें गर्व है. अनु ने हमारे स्कूल का नाम ऊंचा किया है और एक दिन वो भारतीय टीम में जरूर जाएगी. वहीं अनु के स्पोर्ट्स टीचर एंथोनी फ्रांसिस का कहना है कि वो काफी प्रतिभावान खिलाड़ी है. उसके अंदर काफी क्षमता है. ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षा देने से हमें भी गर्व हो रहा है.

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Intro:धनबाद:जिले के गोविंदपुर इलाके मे रहने वाली 17 वर्षीय अनु उराँव ने ऐसा कारनामा कर दिया है जो एक मिसाल है और दूसरे बच्चों के लिए एक प्रेरणा है. इस लड़की के मां-पिता कुष्ठ रोगी हैं और दोनों भीख मांगकर कर अपनी जीविका चलाते हैं.लेकिन अपने मां बाप को खुशहाल जीवन देने की चाहत में यह लड़की अब बहुत आगे निकल चुकी है. आज अनु के माता-पिता को भी अपनी इस बेटी पर गर्व है.


Body:रांची के धुर्वा इलाके की रहने वाली अनु उराँव का कहना है कि जब वह 4 साल की थी उसी समय से धनबाद में रह रही है.गरीबी के कारण उसके माँ-पिता ने उसे अपने से अलग कर दिया. और आज अनु धनबाद के गोविंदपुर इलाके के निर्मला स्कूल के हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई कर रही है और यहीं पर वह बास्केटबॉल का प्रशिक्षण भी लेती है.

अनु जब 4 साल की थी तो उसके माता-पिता गरीबी के कारण उसे पढ़ाने और खाना दे पाने में असमर्थ थे. अनु के माता पिता रांची के धुर्वा इलाके के इंदिरानगर, जगन्नाथपुर में कुष्ठ कॉलोनी में रहकर भीख मांग कर अपना गुजर-बसर करते थे. फिर उन्हें किसी तरह यह जानकारी मिली कि धनबाद में एक ऐसी संस्था है जंहा कुष्ठ रोगियों के बाल बच्चों के लिए धनबाद के निर्मला स्कूल में शिक्षा के साथ साथ खाना-पीना रहना रहना सब फ्री में होता है. अपने दिल पर पत्थर रखकर अनु के पिता टुनवा उराँव और माता बाबी देवी ने अनु को अपने से अलग कर दिया ताकि वह अच्छी तरह से पढ़ाई कर सकें और उसका पालन हो सके. अनु ने भी आज अपने माता पिता का सपना साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अनु के माता-पिता आज भी रांची के धुर्वा इलाके में ही रहते हैं.

बता दें कि 4 साल की उम्र से ही इस स्कूल में रहकर अनु ने पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी अच्छा प्रदर्शन किया.अनु ने मेट्रिक में फर्स्ट डिवीजन किया है. जिसके बाद आज धनबाद के एक स्कूल के द्वारा इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी उसे फ्री में दी जा रही है. साथ ही साथ बास्केटबॉल में अनु का चयन बेंगलुरु में हुए अंडर 18 इंडिया कैंप में भी हुआ था. झारखंड से इस केम्प में जाने वाली एकमात्र खिलाड़ी थी. लेकिन अनु का सपना भारतीय टीम के लिए खेलना संभव नहीं हो पाया. हालांकि अनु का कहना है कि बेंगलुरु में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला और मैं आकर स्कूल में भी और बच्चे को बास्केटबॉल के वो सभी गुर सिखा रही हूं. और मेरी प्रयास भी जारी है. मैं 1 दिन भारतीय टीम में जरूर खेलूंगी.

वहीं निर्मला स्कूल के फादर जेम्स का कहना है कि अनु पर हमें गर्व है. अनु ने हमारे स्कूल का नाम ऊंचा किया है और एक दिन अनु भारतीय टीम में जरूर जाएगी. वहीं अनु के स्पोर्ट्स टीचर एंथोनी फ्रांसिस का कहना है कि अनु काफी प्रतिभावान खिलाड़ी है. अनु के अंदर ऐसी क्षमता है जो झारखंड में और किसी लड़की में नहीं दिखता. ऐसे छात्रों को शिक्षा देने से हमें भी गर्व हो रहा है जब छात्र कुछ अच्छा करते हैं तो एक शिक्षक को काफी गर्व महसूस होता है.


Conclusion:एक बात सही है कि अगर मन में सच्ची लगन हो और कुछ कर गुजरने की जुनून हो तो कुछ भी संभव हो सकता है. ऐसा अनु ने कर दिखाया है अनु ने वह कारनामा कर दिखाया है जो दूसरे बच्चों को प्रेरित करने के लिए मजबूर करेंगे. आज इस मुकाम पर देखकर अनु के माता-पिता को भी अपनी बेटी पर गर्व महसूस हो रहा.
Last Updated : Mar 1, 2019, 10:50 AM IST
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