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कुम्हार की चाक पर आधुनिकता की मार, अब मिट्टी के बर्तन नहीं खरीदते लोग

कोयलांचल में आधुनिकता के इस दौर में कुम्हार जाति के लोग अब अपनी पुश्तैनी धंधे छोड़ने को मजबूर हो गए हैं. वहीं, आधुनिकता की मार ऐसी पड़ी कि अब गिने-चुने घर ही हैं जहां चाक चला कर मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं.

कुम्हार की चाक पर आधुनिकता की मार
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Published : Jun 12, 2019, 6:02 PM IST

धनबाद: कोयलांचल में कुम्हार जाति के लोग अब अपनी पुश्तैनी धंधे छोड़ने को मजबूर हो गए हैं. किसी समय कुम्हार जाति के लोग चाक चलाकर अपनी जीविका अच्छे से चलाते थे. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में इस धंधे को पूरी तरह से चौपट कर दिया है.

कुम्हार की चाक पर आधुनिकता की मार

गिने-चुने घरों में ही चाक
जिले के जियलगढ़ा गांव में कुम्हार टोला है, जहां 200 से अधिक घर कुम्हारों का है. पहले यहां सभी घरों में चाक चलता था. लेकिन इनपर आधुनिकता की मार ऐसी पड़ी कि अब गिने-चुने घर ही हैं जहां चाक चला कर मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं.

फ्रिज, चाइनीज लाइट जैसी कई तकनीकों ने धंधे को किया चौपट
बाजार में मिलने वाली नई तकनीकों ने पूरी तरह से इस धंधे को बर्बाद कर दिया है. लोग अब मिट्टी के बर्तनों की जगह ऐसी ही तकनीकों का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करते हैं. गांव के लोगों का भी यही कहना है कि अब इनका धंधा पहले की तरह अच्छा नहीं चल रहा है. उनका कहना है कि पहले दिवाली के दिन लोग दिया जलाते थे, लेकिन अब उसकी जगह चाइनीज लाइटों ने ले ली है. वहीं, घड़े की जगह भी अब फ्रिज ने ले ली है.

कुम्हार युवा भी इस धंधे में आना नहीं कर रहे पसंद
गांव के बुजुर्ग किशोर कुमार का कहना है कि अब नए लड़के इस धंधे में नहीं आना चाहते. उस तरह का लाभ भी धंधे में नहीं रह गया जिस कारण हम लोग भी बच्चों पर दबाव नहीं बना रहे हैं. वह दिन भी अब दूर नहीं जब कुम्हार जाति के बच्चे ही कुम्हार के चाक को देखने के लिए तरस जायेंगे.

धनबाद: कोयलांचल में कुम्हार जाति के लोग अब अपनी पुश्तैनी धंधे छोड़ने को मजबूर हो गए हैं. किसी समय कुम्हार जाति के लोग चाक चलाकर अपनी जीविका अच्छे से चलाते थे. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में इस धंधे को पूरी तरह से चौपट कर दिया है.

कुम्हार की चाक पर आधुनिकता की मार

गिने-चुने घरों में ही चाक
जिले के जियलगढ़ा गांव में कुम्हार टोला है, जहां 200 से अधिक घर कुम्हारों का है. पहले यहां सभी घरों में चाक चलता था. लेकिन इनपर आधुनिकता की मार ऐसी पड़ी कि अब गिने-चुने घर ही हैं जहां चाक चला कर मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं.

फ्रिज, चाइनीज लाइट जैसी कई तकनीकों ने धंधे को किया चौपट
बाजार में मिलने वाली नई तकनीकों ने पूरी तरह से इस धंधे को बर्बाद कर दिया है. लोग अब मिट्टी के बर्तनों की जगह ऐसी ही तकनीकों का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करते हैं. गांव के लोगों का भी यही कहना है कि अब इनका धंधा पहले की तरह अच्छा नहीं चल रहा है. उनका कहना है कि पहले दिवाली के दिन लोग दिया जलाते थे, लेकिन अब उसकी जगह चाइनीज लाइटों ने ले ली है. वहीं, घड़े की जगह भी अब फ्रिज ने ले ली है.

कुम्हार युवा भी इस धंधे में आना नहीं कर रहे पसंद
गांव के बुजुर्ग किशोर कुमार का कहना है कि अब नए लड़के इस धंधे में नहीं आना चाहते. उस तरह का लाभ भी धंधे में नहीं रह गया जिस कारण हम लोग भी बच्चों पर दबाव नहीं बना रहे हैं. वह दिन भी अब दूर नहीं जब कुम्हार जाति के बच्चे ही कुम्हार के चाक को देखने के लिए तरस जायेंगे.

Intro:धनबाद :कोयलांचल धनबाद में कुम्हार जाति के लोग आज अपने पुश्तैनी धंधे में आधुनिकता की मार झेल रहे हैं. कुम्हार जाति के लोग चाक चलाकर मिट्टी के बर्तन बनाया करते हैं लेकिन आधुनिकता की इतनी जबरदस्त मार इन लोगों पर पड़ी है कि आने वाले दिनों में अब लोग कुम्हार के चाक देखने के लिए तरस जायेंगे.


Body:200 से अधिक घरों में अब सिर्फ गिने-चुने एक-दो घर में मिलते हैं चाक

जी हां आप जो तस्वीर देख रहे हैं यह किसी गाड़ी का पहिया नहीं बल्कि कुम्हार का चाक है. जिस चाक से कुम्हार का पेट चलता है लेकिन अब कुम्हार जाति के लोग इस चाक से अपना जीवन व्यतीत करने में असमर्थ हो रहे हैं क्योंकि अब इनका धंधा पहले की तरह अच्छा नहीं चल रहा है. यह नजारा कोयलांचल धनबाद के जियलगढ़ा गांव के कुम्हार टोला का है.जहां पर 200 से अधिक घरों में कुम्हार जाति के लोग गांव में निवास करते हैं .पहले इन सभी घरों में यह चाक चलता था लेकिन अब गिने-चुने एक दो घर में ही इस चौक को चलाकर मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं वह भी कभी-कभार.

फ्रिज, चाइनीज लाइट और एसवेस्टर आदि ने किया धंधे को गंदा

गांव के लोग बताते हैं कि अब यह धंधा चलने वाला नहीं है. क्योंकि सबसे पहले तो मिट्टी की दिक्कत होने लगी है उसके बाद कोयले की भी दिक्कत और इतनी दिक्कतों के बावजूद भी अगर किसी तरह बर्तन बना लिए जाते हैं तो बाजार में इसकी मांग नहीं है. दिवाली के दिन में जहां पहले लोग दिया जलाते थे अब चाइनीस लाइट की भरमार है. गर्मी के दिनों में घड़ा बनता था लोग घड़ा का पानी पीते थे लेकिन अब लोग फ्रिज का पानी पीना पसंद करते हैं.पहले गांव में खपरैल घर होते थे जो मिट्टी के होते थे लेकिन अब लोग एस्वेटर और चदरा का सीट से घर बानाना पसंद करते हैं.ऐसे में अब हम लोग कैसे इस धंधे को करें समझ में नहीं आ रहा.

नए लोग भी धंधे में आना नहीं कर रहे पसंद

गांव के बुजुर्ग किशोर कुमार का कहना है कि अब नए लड़के इस धंधे में नहीं आना चाहते. उस तरह का लाभ भी धंधे में नहीं रह गया जिस कारण हम लोग भी बच्चों पर दबाव नहीं बना रहे हैं. वह दिन भी अब दूर नहीं जब कुम्हार जाति के बच्चे ही कुम्हार के चाक को देखने के लिए तरस जायेंगे.


Conclusion:जिस तरह से पुश्तैनी धंधों में आधुनिकता की मार पड़ रही है ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले दिनों में कुम्हार के चाक, लोहार की भन्थि आदि अनेकों चीज इतिहास के पन्नों में ही सिमट जाएंगे. भारतीय सभ्यता संस्कृति के प्रतीक इन धंधों में सरकार को ध्यान देने की जरूरत है ताकि इन धंधों को बचाया जा सके.
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