धनबाद: कोयलांचल में कुम्हार जाति के लोग अब अपनी पुश्तैनी धंधे छोड़ने को मजबूर हो गए हैं. किसी समय कुम्हार जाति के लोग चाक चलाकर अपनी जीविका अच्छे से चलाते थे. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में इस धंधे को पूरी तरह से चौपट कर दिया है.
गिने-चुने घरों में ही चाक
जिले के जियलगढ़ा गांव में कुम्हार टोला है, जहां 200 से अधिक घर कुम्हारों का है. पहले यहां सभी घरों में चाक चलता था. लेकिन इनपर आधुनिकता की मार ऐसी पड़ी कि अब गिने-चुने घर ही हैं जहां चाक चला कर मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं.
फ्रिज, चाइनीज लाइट जैसी कई तकनीकों ने धंधे को किया चौपट
बाजार में मिलने वाली नई तकनीकों ने पूरी तरह से इस धंधे को बर्बाद कर दिया है. लोग अब मिट्टी के बर्तनों की जगह ऐसी ही तकनीकों का इस्तेमाल करना ज्यादा पसंद करते हैं. गांव के लोगों का भी यही कहना है कि अब इनका धंधा पहले की तरह अच्छा नहीं चल रहा है. उनका कहना है कि पहले दिवाली के दिन लोग दिया जलाते थे, लेकिन अब उसकी जगह चाइनीज लाइटों ने ले ली है. वहीं, घड़े की जगह भी अब फ्रिज ने ले ली है.
कुम्हार युवा भी इस धंधे में आना नहीं कर रहे पसंद
गांव के बुजुर्ग किशोर कुमार का कहना है कि अब नए लड़के इस धंधे में नहीं आना चाहते. उस तरह का लाभ भी धंधे में नहीं रह गया जिस कारण हम लोग भी बच्चों पर दबाव नहीं बना रहे हैं. वह दिन भी अब दूर नहीं जब कुम्हार जाति के बच्चे ही कुम्हार के चाक को देखने के लिए तरस जायेंगे.