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लॉकडाउन के बोझ तले दबते कुली, नहीं भर पा रहे परिवार का पेट

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Published : Jul 20, 2020, 4:04 PM IST

Updated : Jul 22, 2020, 5:22 PM IST

लोग आते हैं, लोग जाते हैं, सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं, लेकिन हमारा बोझ कौन उठाएगा. ये कहना है संताल परगना का एक मात्र A ग्रेड रेलवे स्टेशन जसीडीह के कुलियों का. लॉकडाउन ने इन्हें भूखमरी के कगार पर ला दिया है.

Coolie is under burden of lockdown in jasidih deoghar
लॉकडाउन के दौरान कुली

देवघर: कोलकाता-दिल्ली मुख्य रेल मार्ग का जसीडीह स्टेशन जहां लाखों लोग रोजाना आना जाना करते थे, लेकिन फिलहाल कोरोना में लगाए गए लॉकडाउन के कारण सभी रेल सेवाएं बंद हैं, इसलिए यहां के कुलियों की माली हालत भी दयनिय हो गई है. संताल परगना का एक मात्र A ग्रेड रेलवे स्टेशन हैं जसीडीह. जहां सैकड़ों की संख्या में रेल का परिचालन होता है. फिलहाल महज एक्का-दुक्का ट्रेनों का ही परिचालन हो रही है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

चार महीना बीतने को है और रेल पर निर्भर कुली जो हमेशा दूसरों का बोझ उठाते थे. आज लॉकडाउन के कारण भुखमरी के कगार पर हैं. देवघर से महज 7 किलोमीटर दूर स्थित जसीडीह स्टेशन जहां कुल 72 कुली रेल के सहारे अपना जीविकोपार्जन करते थे. लॉकडाउन के पहले यहां से लगभग 60 से 70 ट्रेने गुजरती थी, लेकिन अब सिर्फ दो ट्रेन यहां से गुजर रही हैं. फिलहाल चल रही ट्रेनों में पटना हावड़ा जन सताब्दी एक्सप्रेस और हफ्ते में दो दिन हावड़ा-नई दिल्ली पूर्वा एक्सप्रेस है. ये कुली कोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन में भुखमरी के कगार पर आ गए हैं. जसीडीह स्टेशन के कुली बताते हैं कि पिछले चार महीने से लॉकडाउन की मार झेल रहे हैं. अब अगर एक दो ट्रेन चल भी रही हैं तो यात्री खुद अपना सामान ढो लेते हैं.

ये भी पढ़ें- कोरोना काल में भुखमरी के कगार पर पहुंचे पेड़ा व्यवसायी, वैकल्पिक उपाय ढूंढने को मजबूर

वहां के कुलियों ने कहा कि रेल प्रशाशन हमें प्लेटफार्म पर जाने की इजाजत नहीं दे रही है. 200-400 रुपये कमाकर अपना रोजी-रोटी चलाते थे, लेकिन कुछ महीनों से रेल परिचालन ठप होने के कारण भुखमरी की स्थिति हो गई है. कुलियों ने कहा कि दिहाड़ी मजदूरी में भी काम नहीं मिल रहा है. ऐसे में अब परिवार चलाने में काफी कठिनाई हो रही है. इसके बाद भी आज तक किसी ने सुध नहीं लिया. जसीडीह स्टेशन के कुलियों ने रेल सरकार से कुछ आर्थिक मदद की भी मांग की है.

सिर्फ नाम का है कुली यूनियन

जसीडीह में कुली यूनियन भी है, लेकिन सिर्फ नाम का. न ही कुलियों के लिए कोई फंड है और ना ही कोई उपाय. जसीडीह कुली यूनियन के अध्यक्ष नंदन दुबे बताते हैं कि कुलियों की स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई है. कुछ कुली तो बीमार भी हो गए हैं. सभी भुखमरी के कगार पर हैं. दिहाड़ी मजदूरी करने पर विवश हैं, लेकिन वह भी नहीं मिल रहा है. रेल प्रशासन और समाजसेवी से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि से भी कुलियों की माली हालत को देखते हुए गुहार लगाए हैं. मगर आज तक कोई सामने नहीं आया.

ये भी पढ़ें- वीरान हुआ बाबाधाम, देवनगरी में छाई मायूसी

उन्होंने कहा कि सिर्फ एक बार ईटीवी भारत की पहल पर एक समाजसेवी ने सप्ताह भर का अनाज मुहैया कराया था. फिर आज तक किसी ने कोई सुध नहीं लिया. कुली यूनियन के अध्यक्ष नंदन दुबे ने सरकार से मांग कि है कि कुलियों के लिए कोई उचित कदम उठाया जाए. कहीं दुसरों का बोझ उठाने वाले कुली लॉकडाउन के बोझ तले न दब जाएं.

कुल मिलाकर जसीडीह स्टेशन पर रेल के भरोसे अपना जीविकोपार्जन के लिए 72 कुली निर्भर करते हैं. ये लोग अब लॉकडाउन के बोझ तले दबे जा रहे हैं. ऐसे में रेल सरकार इन कुलियों के लिए क्या कदम उठाती है. यह तो समय ही बताएगा.

देवघर: कोलकाता-दिल्ली मुख्य रेल मार्ग का जसीडीह स्टेशन जहां लाखों लोग रोजाना आना जाना करते थे, लेकिन फिलहाल कोरोना में लगाए गए लॉकडाउन के कारण सभी रेल सेवाएं बंद हैं, इसलिए यहां के कुलियों की माली हालत भी दयनिय हो गई है. संताल परगना का एक मात्र A ग्रेड रेलवे स्टेशन हैं जसीडीह. जहां सैकड़ों की संख्या में रेल का परिचालन होता है. फिलहाल महज एक्का-दुक्का ट्रेनों का ही परिचालन हो रही है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

चार महीना बीतने को है और रेल पर निर्भर कुली जो हमेशा दूसरों का बोझ उठाते थे. आज लॉकडाउन के कारण भुखमरी के कगार पर हैं. देवघर से महज 7 किलोमीटर दूर स्थित जसीडीह स्टेशन जहां कुल 72 कुली रेल के सहारे अपना जीविकोपार्जन करते थे. लॉकडाउन के पहले यहां से लगभग 60 से 70 ट्रेने गुजरती थी, लेकिन अब सिर्फ दो ट्रेन यहां से गुजर रही हैं. फिलहाल चल रही ट्रेनों में पटना हावड़ा जन सताब्दी एक्सप्रेस और हफ्ते में दो दिन हावड़ा-नई दिल्ली पूर्वा एक्सप्रेस है. ये कुली कोरोना के कारण लगाए गए लॉकडाउन में भुखमरी के कगार पर आ गए हैं. जसीडीह स्टेशन के कुली बताते हैं कि पिछले चार महीने से लॉकडाउन की मार झेल रहे हैं. अब अगर एक दो ट्रेन चल भी रही हैं तो यात्री खुद अपना सामान ढो लेते हैं.

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वहां के कुलियों ने कहा कि रेल प्रशाशन हमें प्लेटफार्म पर जाने की इजाजत नहीं दे रही है. 200-400 रुपये कमाकर अपना रोजी-रोटी चलाते थे, लेकिन कुछ महीनों से रेल परिचालन ठप होने के कारण भुखमरी की स्थिति हो गई है. कुलियों ने कहा कि दिहाड़ी मजदूरी में भी काम नहीं मिल रहा है. ऐसे में अब परिवार चलाने में काफी कठिनाई हो रही है. इसके बाद भी आज तक किसी ने सुध नहीं लिया. जसीडीह स्टेशन के कुलियों ने रेल सरकार से कुछ आर्थिक मदद की भी मांग की है.

सिर्फ नाम का है कुली यूनियन

जसीडीह में कुली यूनियन भी है, लेकिन सिर्फ नाम का. न ही कुलियों के लिए कोई फंड है और ना ही कोई उपाय. जसीडीह कुली यूनियन के अध्यक्ष नंदन दुबे बताते हैं कि कुलियों की स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई है. कुछ कुली तो बीमार भी हो गए हैं. सभी भुखमरी के कगार पर हैं. दिहाड़ी मजदूरी करने पर विवश हैं, लेकिन वह भी नहीं मिल रहा है. रेल प्रशासन और समाजसेवी से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि से भी कुलियों की माली हालत को देखते हुए गुहार लगाए हैं. मगर आज तक कोई सामने नहीं आया.

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उन्होंने कहा कि सिर्फ एक बार ईटीवी भारत की पहल पर एक समाजसेवी ने सप्ताह भर का अनाज मुहैया कराया था. फिर आज तक किसी ने कोई सुध नहीं लिया. कुली यूनियन के अध्यक्ष नंदन दुबे ने सरकार से मांग कि है कि कुलियों के लिए कोई उचित कदम उठाया जाए. कहीं दुसरों का बोझ उठाने वाले कुली लॉकडाउन के बोझ तले न दब जाएं.

कुल मिलाकर जसीडीह स्टेशन पर रेल के भरोसे अपना जीविकोपार्जन के लिए 72 कुली निर्भर करते हैं. ये लोग अब लॉकडाउन के बोझ तले दबे जा रहे हैं. ऐसे में रेल सरकार इन कुलियों के लिए क्या कदम उठाती है. यह तो समय ही बताएगा.

Last Updated : Jul 22, 2020, 5:22 PM IST
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