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सार्वजनिक परिवहन बंद होने पर ईंधन खर्च में इजाफा, लोगों की जेब पर पड़ रहा अतिरिक्त बोझ

कोरोनावायरस संक्रमण के कारण लॉकडाउन की वजह से मार्च अप्रैल महीने में ईंधन की मांग में गिरावट दर्ज की गई, लेकिन मई में लॉकडाउन की शर्तों में कुछ ढील दिए जाने के बाद ईंधन की खपत फिर से पहले की अपेक्षा एक बार फिर से बढ़ रही है. ईंधन की खपत बढ़ने की मुख्य कारण यह भी है कि इस महामारी के डर से अधिक से अधिक लोग निजी वाहनों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं.

Fuel spending increases when public transport stops in chaibasa
सार्वजनिक परिवहन बंद होने पर ईंधन खर्च में इजाफा
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Published : Aug 10, 2020, 7:24 PM IST

चाईबासा: कोरोना महामारी से पहले जिले में सैकड़ों बसें प्रतिदिन चला करती थीं, जिससे स्थानीय लोग अपने कार्यस्थल तक यात्रा कर पहुंचा करते थे. लेकिन इस कोरोना महामारी के दौर में संक्रमण की रोकथाम के मद्देनजर परिवहन पर प्रतिबंध लगा दिए गए. ऐसी स्थिति में लोग अपने कार्यस्थलों तक निजी वाहन से पहुंच रहे हैं, जिससे ईंधन खर्च में वृद्धि हो रही है.

ईंधन वृद्ध पर स्पेशल रिपोर्ट
कोरोनावायरस संक्रमण के कारण लॉकडाउन की वजह से मार्च अप्रैल महीने में ईंधन की मांग में गिरावट दर्ज की गई, लेकिन मई में लॉकडाउन की शर्तों में कुछ ढील दिए जाने के बाद ईंधन की खपत फिर से पहले की अपेक्षा एक बार फिर से बढ़ रही है. ईंधन की खपत बढ़ने की मुख्य कारण यह भी है कि इस महामारी के डर से अधिक से अधिक लोग निजी वाहनों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- अब मशीनों में भी होगी इंसानों जैसी समझ, NIT में हो रही रिसर्च


हालांकि लोगों के निजी वाहनों के इस्तेमाल किए जाने से घर के बजट पर भी प्रभाव पड़ रहा है. आम लोगों की जेब पर ईंधन का बोझ बढ़ गया है. इसके बावजूद भी लोग सतर्कता बरतते हुए निजी वाहनों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं. लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद सरकार की ओर से डीजल और पेट्रोल के दाम में भी इजाफा कर दिया गया. इसका सीधा असर लोगों की जेब पर पड़ रहा है.

क्या कहते हैं पेट्रोल पंप संचालक
पेट्रोल पंप संचालक अनिरुद्ध चौधरी बताते हैं कि लॉकडाउन से पहले गाड़ियों की संख्या जिस अनुपात में थी उसके अनुसार गाड़ियों की संख्या काफी घट गई है. जिस कारण डीजल की बिक्री घट गई है. दोपहिया और चार पहिया वाहनों के चलने पर पेट्रोल की बिक्री में कुछ हद तक इजाफा हुआ है. अंतरराज्यीय गाड़ियां नहीं चल रही हैं, जिले के ही अन्य क्षेत्रों से ग्रामीण नहीं पहुंच रहे हैं. लॉकडाउन से पहले की बिक्री के अनुपात में फिलहाल बिक्री बहुत अच्छी नहीं है फिर भी कुछ हद तक इजाफा हो रहा है. प्रतिदिन पेट्रोल 1000 लीटर और डीजल 7 से 800 लीटर की बिक्री हो रही है. लॉकडाउन से पहले पेट्रोल और डीजल प्रतिदिन 2-2 हजार लीटर की बिक्री हुआ करती थी. अंतर राज्य और जिले की बसें चला करती थी जिससे डीजल की बिक्री थी, लेकिन अब बसें और दूसरे वाहन के बंद होने की वजह से डीजल की बिक्री में गिरावट आ रही है. इसके बावजूद भी लॉकडाउन मार्च अप्रैल महीने की बिक्री से अभी लगभग 56 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले समय में कुछ दिनों में पहले से अधिक खपत बढ़ेगा.

जिले में कितने हैं पेट्रोल पंप
पश्चिम सिंहभूम में लगभग 55 पेट्रोल पंप हैं. पहले औसतन एक पेट्रोल पंप पर प्रतिदिन 2000 से अधिक पेट्रोल डीजल की खपत होती थी. जो लॉकडाउन में 300 से 400 लीटर ही बची थी, लेकिन अब फिर से वाहन की आवाजाही शुरू हो गई है और पेट्रोल डीजल की खपत भी बढ़ गई है. कोरोना महामारी से पहले 270 छोटी बड़ी बसें चला करती थीं. 4 यात्री ट्रेनें प्रतिदिन जिला मुख्यालय होकर गुजरती थी. इससे लगभग 3500 यात्री सफर किया करते थे, लेकिन अब यात्री बसें और ट्रेनों पर प्रतिबंध लगाया गया. जिस कारण लोग अपनी क्षमता अनुसार और निजी वाहन वहन कर जिला मुख्यालय एवं अपने निजी कार्य को करने के लिए घर से निकल रहे हैं.

लोगों का क्या है कहना
थॉमस बताते हैं कि वो नोवामुंडी से प्रतिदिन अपने ड्यूटी करने जिला मुख्यालय आना पड़ता है. बसें बंद होने के कारण उन्हें अपने दोपहिया वाहन से वो प्रतिदिन आते हैं ऐसे में उन पर अतिरिक्त इंधन का बोझ पड़ रहा है. पहले बसें चला करती थी जिसके जरिए वह कम खर्च में ही जिला मुख्यालय पहुंच जाया करते थे. इस लॉकडाउन में बसों के बंद होने के कारण सभी निजी वाहन का इस्तेमाल कर रहे हैं.

शेख नसीम ने बताया कि वो ओडिशा के बोलनी से आए हैं बसे नहीं चल रही हैं, जिस कारण निजी वाहन भाड़े पर लेकर जिला मुख्यालय आए हैं. इसके लिए उन्हें अतिरिक्त भाड़ा भी देना पड़ा. बस में 100 से 200 के किराए में काम चल जाया करता था, लेकिन अब उन्हें 3 से 5 हजार रुपये भाड़ा देकर आना पड़ता है.

हरिचरण बानरा बताते हैं कि वो तांतनगर से रोजाना आना-जाना कर अपनी ड्यूटी कर रहे हैं. उसके लिए उन्हें प्रतिदिन 100 रुपये पेट्रोल में खर्च करने पड़ रहे हैं. पहले उन्हें 10 या 20 रुपये देकर यात्री वाहन से जिला मुख्यालय आ जाते थे. हालांकि नेशनल हाई-वे से लगे पेट्रोल पंप पर सामान्य दिनों से थोड़ी कम होने लगी है. जिले के पेट्रोल पंप पर अभी सामान्य दिनों जैसे खपत नहीं हो रही है, लेकिन पहले की अपेक्षा खपत बढ़ गई है.

चाईबासा: कोरोना महामारी से पहले जिले में सैकड़ों बसें प्रतिदिन चला करती थीं, जिससे स्थानीय लोग अपने कार्यस्थल तक यात्रा कर पहुंचा करते थे. लेकिन इस कोरोना महामारी के दौर में संक्रमण की रोकथाम के मद्देनजर परिवहन पर प्रतिबंध लगा दिए गए. ऐसी स्थिति में लोग अपने कार्यस्थलों तक निजी वाहन से पहुंच रहे हैं, जिससे ईंधन खर्च में वृद्धि हो रही है.

ईंधन वृद्ध पर स्पेशल रिपोर्ट
कोरोनावायरस संक्रमण के कारण लॉकडाउन की वजह से मार्च अप्रैल महीने में ईंधन की मांग में गिरावट दर्ज की गई, लेकिन मई में लॉकडाउन की शर्तों में कुछ ढील दिए जाने के बाद ईंधन की खपत फिर से पहले की अपेक्षा एक बार फिर से बढ़ रही है. ईंधन की खपत बढ़ने की मुख्य कारण यह भी है कि इस महामारी के डर से अधिक से अधिक लोग निजी वाहनों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं.

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हालांकि लोगों के निजी वाहनों के इस्तेमाल किए जाने से घर के बजट पर भी प्रभाव पड़ रहा है. आम लोगों की जेब पर ईंधन का बोझ बढ़ गया है. इसके बावजूद भी लोग सतर्कता बरतते हुए निजी वाहनों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं. लॉकडाउन में छूट मिलने के बाद सरकार की ओर से डीजल और पेट्रोल के दाम में भी इजाफा कर दिया गया. इसका सीधा असर लोगों की जेब पर पड़ रहा है.

क्या कहते हैं पेट्रोल पंप संचालक
पेट्रोल पंप संचालक अनिरुद्ध चौधरी बताते हैं कि लॉकडाउन से पहले गाड़ियों की संख्या जिस अनुपात में थी उसके अनुसार गाड़ियों की संख्या काफी घट गई है. जिस कारण डीजल की बिक्री घट गई है. दोपहिया और चार पहिया वाहनों के चलने पर पेट्रोल की बिक्री में कुछ हद तक इजाफा हुआ है. अंतरराज्यीय गाड़ियां नहीं चल रही हैं, जिले के ही अन्य क्षेत्रों से ग्रामीण नहीं पहुंच रहे हैं. लॉकडाउन से पहले की बिक्री के अनुपात में फिलहाल बिक्री बहुत अच्छी नहीं है फिर भी कुछ हद तक इजाफा हो रहा है. प्रतिदिन पेट्रोल 1000 लीटर और डीजल 7 से 800 लीटर की बिक्री हो रही है. लॉकडाउन से पहले पेट्रोल और डीजल प्रतिदिन 2-2 हजार लीटर की बिक्री हुआ करती थी. अंतर राज्य और जिले की बसें चला करती थी जिससे डीजल की बिक्री थी, लेकिन अब बसें और दूसरे वाहन के बंद होने की वजह से डीजल की बिक्री में गिरावट आ रही है. इसके बावजूद भी लॉकडाउन मार्च अप्रैल महीने की बिक्री से अभी लगभग 56 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले समय में कुछ दिनों में पहले से अधिक खपत बढ़ेगा.

जिले में कितने हैं पेट्रोल पंप
पश्चिम सिंहभूम में लगभग 55 पेट्रोल पंप हैं. पहले औसतन एक पेट्रोल पंप पर प्रतिदिन 2000 से अधिक पेट्रोल डीजल की खपत होती थी. जो लॉकडाउन में 300 से 400 लीटर ही बची थी, लेकिन अब फिर से वाहन की आवाजाही शुरू हो गई है और पेट्रोल डीजल की खपत भी बढ़ गई है. कोरोना महामारी से पहले 270 छोटी बड़ी बसें चला करती थीं. 4 यात्री ट्रेनें प्रतिदिन जिला मुख्यालय होकर गुजरती थी. इससे लगभग 3500 यात्री सफर किया करते थे, लेकिन अब यात्री बसें और ट्रेनों पर प्रतिबंध लगाया गया. जिस कारण लोग अपनी क्षमता अनुसार और निजी वाहन वहन कर जिला मुख्यालय एवं अपने निजी कार्य को करने के लिए घर से निकल रहे हैं.

लोगों का क्या है कहना
थॉमस बताते हैं कि वो नोवामुंडी से प्रतिदिन अपने ड्यूटी करने जिला मुख्यालय आना पड़ता है. बसें बंद होने के कारण उन्हें अपने दोपहिया वाहन से वो प्रतिदिन आते हैं ऐसे में उन पर अतिरिक्त इंधन का बोझ पड़ रहा है. पहले बसें चला करती थी जिसके जरिए वह कम खर्च में ही जिला मुख्यालय पहुंच जाया करते थे. इस लॉकडाउन में बसों के बंद होने के कारण सभी निजी वाहन का इस्तेमाल कर रहे हैं.

शेख नसीम ने बताया कि वो ओडिशा के बोलनी से आए हैं बसे नहीं चल रही हैं, जिस कारण निजी वाहन भाड़े पर लेकर जिला मुख्यालय आए हैं. इसके लिए उन्हें अतिरिक्त भाड़ा भी देना पड़ा. बस में 100 से 200 के किराए में काम चल जाया करता था, लेकिन अब उन्हें 3 से 5 हजार रुपये भाड़ा देकर आना पड़ता है.

हरिचरण बानरा बताते हैं कि वो तांतनगर से रोजाना आना-जाना कर अपनी ड्यूटी कर रहे हैं. उसके लिए उन्हें प्रतिदिन 100 रुपये पेट्रोल में खर्च करने पड़ रहे हैं. पहले उन्हें 10 या 20 रुपये देकर यात्री वाहन से जिला मुख्यालय आ जाते थे. हालांकि नेशनल हाई-वे से लगे पेट्रोल पंप पर सामान्य दिनों से थोड़ी कम होने लगी है. जिले के पेट्रोल पंप पर अभी सामान्य दिनों जैसे खपत नहीं हो रही है, लेकिन पहले की अपेक्षा खपत बढ़ गई है.

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